25 साल बाद भी गढ़वा जिले में नहीं बना बाइपास
17 अक्तूबर 2001 को ही तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने किया था शिलान्यास सरकार व जनप्रतिनिधियों के आश्वासन से उब चुके हैं गढ़वावासी मुश्किल हो जाता है दिन में गढ़वा शहर से गुजरना उत्तर प्रदेश, बिहार व छत्तीसगढ़ तीन राज्यों की सीमा से सटा है गढ़वा शहर गढ़वा : गढ़वा को जिला बनने के 25 […]
17 अक्तूबर 2001 को ही तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने किया था शिलान्यास
सरकार व जनप्रतिनिधियों के आश्वासन से उब चुके हैं गढ़वावासी
मुश्किल हो जाता है दिन में गढ़वा शहर से गुजरना
उत्तर प्रदेश, बिहार व छत्तीसगढ़ तीन राज्यों की सीमा से सटा है गढ़वा शहर
गढ़वा : गढ़वा को जिला बनने के 25 साल गुजर जाने के बाद भी गढ़वा शहर के लिए बाइपास का निर्माण नहीं हो पाया है़ इसके कारण गढ़वा शहर से होकर गुजरना किसी भी वाहन चालक के लिए सिरदर्द रहता है़ बाइपास नहीं होने के कारण एक तरफ जहां तकरीबन दो किमी के गढ़वा शहर से गुजरने के लिए घंटों समय लगता है. वहीं, मुख्य मार्ग पर भारी वाहनों के भीड़ के कारण दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है़
विदित हो कि गढ़वा शहर उत्तर प्रदेश, बिहार व छत्तीसगढ़ तीन राज्यों की सीमा से लगा हुआ जिला है़
गढ़वा शहर से गुजरनेवाला पड़वा-मुड़ीसेमर मार्ग एनएच-75 में आता है़ वहीं गढ़वा से रंका होते हुए अंबिकापुर जानेवाला मार्ग एनएच-343 पड़ता है़. इसके कारण जिला मुख्यालय से होकर इन तीनों राज्यों की यात्री बसें व मालवाहक गाड़ियां भी काफी संख्या में गुजरते
रहती है.
गढ़वा शहर के बीच सड़क काफी संकरा होने के कारण इन वाहनों के गुजरने के दौरान अस्त-व्यस्त स्थिति बन जाती है़ इसके कारण गढ़वा शहर को पार करना बाहर की गाड़ियों के लिये समस्या हो जाती है़ कभी-कभी उन्हें घंटों जाम में फंसना पड़ता है़ वहीं स्थानीय लोगों को भी सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता है़ साथ ही शहर के दोनों किनारे स्थित व्यवसायिक प्रतिष्ठानों एवं आवासों के लोगों को भी काफी परेशानी झेलनी पड़ती है़ गढ़वा को जिला बनने के बाद से ही शहर के बाइपास के लिए मांग होती रही़
विशेषकर झारखंड अलग राज्य बनने के बाद मांग और बढ़ गयी़ लेकिन आजतक बाइपास का निर्माण तो दूर, अभी तक इसके लिए होमवर्क भी पूरा नहीं किया जा सका है़
नो इंट्री के बाद भी परेशानी कम नहीं हुई
दिन में वाहनों की भीड़ हो जाने के कारण घंटों लगे सड़क जाम से निजात के लिए प्रशासन ने मालवाहक गाड़ियों के लिए दिन में अलग-अलग मार्गों से आनेवाली गाड़ियों के लिये शहर में नो इंट्री की शुरूआत की है़ इस क्रम में रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक छोड़ कर शेष समय में नो इंट्री लागू होता है़ इस दौरान प्रशासन दोपहर में गढ़वा-रंका मार्ग एवं गढ़वा-रेहला मार्ग की तरफ की मालवाहक गाड़ियों के लिए डेढ़-डेढ़ घंटे के लिए नो इंट्री खोलता है़ इससे बहुत हद तक राहत मिलती है.
बावजूद जाम की स्थिति से मुकम्मल निजात नहीं मिल पाया है़ नो इंट्री यात्री बसों के लिए नहीं किया गया है़ वहीं इस मार्ग से लंबे रूट की काफी संख्या में यात्री बसें चलती हैं. शहर में एक तो सड़क पहले से संकुचित है,
दूसरी ओर यत्र-तत्र वाहनों की किये गये पार्किंग व सड़क के दुकानदारों द्वारा नालियों के आगे तक दुकान फैलाकर रखने के कारण इन यात्री बसों को गुजरना मुश्किल हो जाता है़ जब दोपहर में नो इंट्री टूटती है, तो शहर में और विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है़ नो इंट्री टूटते ही ट्रक एवं बड़ी लॉरियां, टैंकर आदि शहर में प्रवेश करते हैं. इससे पूरे शहर की स्थिति अस्त-व्यस्त हो जाती है़ इससे पूरा शहर धूल से भर जाता है और पैदल अथवा दो पहिया वाहन से भी गुजरना मुश्किल हो जाता है़
सरकार को भेजा गया है : गढ़वा बाईपास के निर्माण के मामले में 100 दिन चले ढाई कोस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है़ इस संबंध में स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बात करने पर हमेशा कहा जाता है कि इसके लिए पहल की गयी है़ राज्य बनने के बाद प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी जब 17 अक्तूबर 2001 को गढ़वा आये थे, उन्होंने गढ़वा बाइपास का शिलान्यास किया था़
लेकिन शिलान्यास के बाद बाइपास का काम शुरू होने की बात तो दूर, चिनिया नहर रोड के पास उनका लगा हुआ शिलापट्ट भी कब का टूट कर अस्तित्वहीन हो गया़ पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा जितने बार गढ़वा आये, पत्रकार वार्ता के दौरान हर बार उन्हें गढ़वा बाइपास के विषय में सवाल किये गये़ मुख्यमंत्री ने हर बार आश्वासन दिया कि गढ़वा का बाइपास शीघ्र बनेगा़ लेकिन इस पर कोई काम शुरू नहीं हुआ़