गढ़वा : नोटबंदी का दौर खत्म हो गया. सरकार ही नहीं बैंकों का भी दावा है कि सब कुछ सामान्य हो गया है. लेकिन, गढ़वा जिले में देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआइसमेत अन्य बैकों के एटीएम मेंखालीपड़े हैं. शादी-विवाह के मौसम में लोगों को कैश की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है.
यह समस्या एक-दो दिन या एक सप्ताह की नहीं है. लोग एक महीने से इस समस्या से जूझ रहे हैं. लोगों की समस्या यह है कि बैंककर्मी लगातार उन्हें कैशलेस सेवाओं को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लेकिन,समस्यायहहै कि जिले में न बिजली सेवा दुरुस्त है, नहीलोग इतने पढ़े-लिखे और जागरूक कि वे कैशलेस सेवा को अपना सकें.
इतना ही नहीं, एक और समस्या यह है कि जहां कैश की जरूरत है, वहां कोई कैसे कैशलेस सेवा अपनाये. छोटे-मोटे कामों के लिए डिजिटल भुगतान की व्यवस्था संभव नहीं है. शहर में कुछ हद तक ये चीजें हो भी जायें, लेकिन गांवों में अभी यह कतई संभव नहीं है.
विदित हो कि अप्रैलऔर मई में बड़ी संख्या में शादी-विवाह होते हैं. जिनके घरों में शादी-विवाह होता है, उनके लिए हर चीज के लिए डिजिटल भुगतान करना संभव नहीं होता. किराना से लेकर सब्जी, मिठाई आदि की खरीदारी नकद हीकरनीपड़ती है, क्योंकि अभी इस पिछड़े जिले में कैशलेस लेन-देन का प्रचलन बढ़ा नहीं है. फलस्वरूप लोगों की परेशानियां बढ़ गयी हैं.
गढ़वा प्रखंड के सुदूर गांव से एसबीआइ के मेन ब्रांच पहुंचे राजकिशोर प्रसाद ने बताया किउनकी बेटी की शादी है़ बैंक और एटीएम के चक्कर लगा रहे हैं. पैसे नहीं मिल रहे हैं. कई काम अटक गया है. रिश्तेदारों से उधार लेकर छोटे-मोटे काम निबटा रहे हैं.
देवंती देवी कहती हैं कि कई दिनों से एटीएम के चक्कर लगा रही है़ं पैसा नहीं मिल रहा. लगभग सभी एटीएम बंद हैं. कहीं खुला है, तो उसमें पर्याप्त मात्रा में पैसे नहीं हैं. लंबी-लंबी कतारें लगी हैं एटीएम के बाहर. लाइन लगाती हूं. हमारी बारी आने से पहले ही पैसे खत्म हो जाते हैं. ऐसा कई बार हुआ है. समय पर पैसे नहीं मिले, तो शादी टालने के अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा.
रमना में महिलाओं ने राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया था
एक सप्ताह से एसबीआइ का चक्कर लगा रहे रमना की दो दर्जन से अधिक महिला ग्राहकों ने पैसा नहीं मिलने से नाराज होकर राष्ट्रीय राजमार्ग-75 को डेढ़ घंटे तक जाम कर दिया था़ इन्हें आश्वासन दिया गया था कि लोगों की समस्या दूर की जायेगी, लेकिन अब तक इस दिशा में ठोस पहल नहीं हुई.
नहीं मिलते पर्याप्त पैसे
इधर, बैंककर्मी कहते हैं कि उन्हें आरबीआइ जरूरत के मुताबिक पैसे नहीं दे रहा. जरूरत से बहुत कम पैसे मिलते हैं.जितने पैसे बैंकों को मिल रहे हैं वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं.