केतार प्रखंड के सुप्रसिद्ध मां चतुर्भुजी मंदिर में चैत्र नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं के द्वारा जल यात्रा निकाली जायेगी. इसको लेकर मंदिर समिति की ओर से नारियल एवं कलश वितरण किया जायेगा. उल्लेखनीय है कि केतार प्रखंड क्षेत्र का मां चतुर्भुजी मंदिर कई दशकों से झारखंड सहित सीमावर्ती राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ के लोगों की आस्था का केंद्र रहा है. यहां नवरात्रि के अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर मां काली का दर्शन एवं पूजन करते हैं. चैत्र नवरात्रि के दिन से यहां लगातार एक महीने तक मंदिर परिसर के बाहर मेले का आयोजन होता है. खासकर रामनवमी के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. इसको देखते हुए यहां लगने वाले मेले को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए मंदिर समिति एवं प्रशासन ने तैयारी कर ली है.
केतार स्थित मां चतुर्भुजी मंदिर का इतिहास 300 साल पुराना है. बताया जाता है कि वर्तमान में मां चतुर्भुजी मंदिर स्थल से डेढ़ किलोमीटर पश्चिम दिशा में भैंसहट घाट की पहाड़ी से सोनपुरवा स्टेट के राजा एवं जगजीवन बैग ने सपने में देवी की प्रतिमा देखी. इसके बाद बाजे-गाजे के साथ हाथी पर बैठाकर मां काली के काले रंग की मूर्ति उक्त स्थल से पूरी विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना कर सोनपुरवा स्टेट के राजा के यहां ले जायी जा रही थी. इसी क्रम में हाथी डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद केतार स्थित उक्त स्थल पर केंदू के वृक्ष के नीचे बैठ गया. काफी प्रयत्न के बाद भी हाथी आगे नहीं बढ़ा. इसके कारण माता की मूर्ति इसी स्थल के समीप प्रतिष्ठापित की गयी. बाद में सन 1988 में यहां कार सेवा के द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कर सांकेतिक गुंबद एवं इसके ठीक सामने शिवलिंग प्रतिष्ठापित किया गया.
सिंदूर है मुख्य प्रसाद : मंदिर का मुख्य प्रसाद सिंदूर है. जबकि यहां मिट्टी के घोड़े, इलायची दाना व चुंदरी चढ़ाये जाते हैं. यहां मंदिर परिसर में ही मनौती के रूप में नारियल, बंधन एवं बकरे की बलि दी जाती है.