न बोनस, न समर्थन मूल्य, धान बेचने के आठ महीने बाद भी गढ़वा के किसानों के हाथ खाली
पिछले साल सुखाड़ की स्थिति में भी गढ़वा जिले के 472 किसानों ने 25132 क्विंटल धान बेचा था. धान बेचे आठ-नौ महीने बीतने के बाद भी अभी तक सिर्फ 62 किसानों को ही धान का पूरा समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है
पीयूष तिवारी, गढ़वा :
किसानों ने बिचड़े तैयार कर लिये हैं और एक सप्ताह में गढ़वा जिले में धान की रोपाई जोर-शोर से शुरू होने की संभावना है. लेकिन सरकार पिछले साल 2022-23 में गढ़वा जिले के धान बेचनेवाले किसानों को अभी तक पूर्व के बेचे गये धान का ही भुगतान नहीं कर सकी है. इस वजह से किसानों को इस समय संतोषजनक बारिश होने के बावजूद बुआई-जोताई व रोपाई को लेकर आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले साल सुखाड़ की स्थिति में भी गढ़वा जिले के 472 किसानों ने 25132 क्विंटल धान बेचा था. धान बेचे आठ-नौ महीने बीतने के बाद भी अभी तक सिर्फ 62 किसानों को ही धान का पूरा समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है. शेष 410 किसान अभी भी धान का मूल्य पाने के लिए प्रतीक्षारत हैं. जिन 62 किसानों को पूरा समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है, उन्हें भी बोनस के रूपये प्राप्त नहीं हुए हैं. यहां यह भी गौरतलब है कि पिछले साल सुखाड़ की स्थिति में सरकार ने 1.50 रुपये प्रति किलो की दर से मिलनेवाले बोनस को घटाकर मात्र 10 पैसे प्रतिकिलो कर दिया था, लेकिन यह रुपये भी अभी तक एक भी किसान को भुगतान नहीं किये गये हैं.
शर्त की पेचीदगी में फंसा है मामला :
गढ़वा जिले के किसानों से जो धान खरीदे गये हैं, वह धान अभी भी गढ़वा जिले के पैक्स गोदाम में ही पड़े हुए हैं. वर्तमान समय में बरसात की वजह से धान में नमी हो रही है और उसमें अंकुरण भी आने लगा है. इससे उसके बरबाद होने की संभावना है. खरीदे गये 25132 क्विंटल धान में से 10 जुलाई तक मात्र 5162 क्विंटल धान का ही उठाव हो सकता है. शेष 19970 क्विंटल धान अभी भी उठाव का इंतजार जोह रहे हैं. क्रय करनेवाले 24 में से एक भी पैक्स ऐसा नहीं है, जहां से शत-प्रतिशत धान का उठाव कर लिया गया हो.
बताया गया कि धान मिलर की ओर से धान का उठाव करने में सुस्ती दिखायी जा रही है. इस वजह से क्रय करने के बाद इतना लंबे समय मिलने के बाद धान गोदामों में ही पड़े हुुए हैं. यहां यह गौरतलब है कि मिलर द्वारा धान उठाव का मामला किसानों के समर्थन मूल्य भुगतान से भी जुड़ा हुआ है. सरकार ने तय किया है कि प्रथम की किस्त की राशि धान खरीदने के बाद तथा द्वितीय किस्त की राशि मिलर द्वारा धान उठाव के बाद किया जाता है.
जबकि द्वितीय किस्त की राशि मिलने के बाद बोनस का भुगतान करने का प्रावधान किया गया है. इसका किसान एवं इससे जुड़े संगठन हमेशा विरोध करते आये हैं. उनका कहना है कि मिलर की गलती का खामियाजा उन्हें क्यों भुगतना पड़ता है. यहां मिलरों के साथ भी यह शर्त जोड़ दी गयी है कि वे जब तक सीएमआर (कस्टम मिल राईस या उसना चावल) जमा नहीं करेंगे, तब तक वे धान का उठाव नहीं कर सकते हैं. जितना वे सीएमआर जमा करेंगे, उतना ही धान उठाव (प्रति क्विंटल धान के बदले 68 किलो चावल) कर सकते हैं. इस वजह से मिलर की ओर से सुस्ती दिखायी जा रही है. कुछ किसान संगठन गलत मिलर के चयन को लेकर भी सवाल उठाते रहे हैं.