मनोज सिंह, रांची
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गढ़वा के पाचाडुमर बालू घाट अवैध खनन मामले की जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनायी है. कमेटी की रिपोर्ट सरकार को एनजीटी में 24 नवंबर तक सौंपनी थी. रिपोर्ट जमा नहीं कर पाने के कारण सरकार ने एनजीटी से समय मांगा है. इस मामले की अगली सुनवाई अब 12 जनवरी को होगी.
जानकारी के अनुसार, भूमि अधिग्रहण विस्थापन एवं पुनर्वास किसान समिति ने इस मामले में झारखंड स्टेट माइंस डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (जेएसएमडीसी) पर ही बालू उत्खनन प्रक्रिया के लिए गढ़वा के वन प्रमंडल पदाधिकारी का फर्जी सर्टिफिकेट इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. समिति ने बिहार के कैमूर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और झारखंड के गढ़वा में बालू के अवैध खनन से होनेवाले पर्यावरण नुकसान का मामला भी उठाया है.
समिति ने कहा है कि कैमूर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी इको सेंसेटिव जोन में आता है. जबकि अवैध बालू का खनन इसकी सीमा से 900 मीटर की दूरी पर हो रहा है. उत्तर प्रदेश में पड़नेवाले कैमूर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर दिया गया है. वहीं, बिहार वाले इलाके का ड्राफ्ट नोटिफिकेशन अभी तक नहीं हुआ है.
जेएसएमडीसी ने राज्य के 177 बालू घाटों के खनन की प्रक्रिया 21 नवंबर 2017 में शुरू की थी. यह बालू घाट राज्य के 19 जिलों में पड़ता है. इसी में गढ़वा का पाचाडुमर बालू घाट भी शामिल है. इसके लिए स्टेट इनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (सिया) ने पर्यावरण स्वीकृति दे दी है. याचिकाकर्ता का आरोप है कि इसमें गढ़वा वन प्रमंडल नार्थ डिविजन का फर्जी प्रमाण पत्र उपयोग किया गया है. यह मामला नौ अगस्त 2018 का है.
सभी पक्षों को सुनने के बाद एनजीटी ने पांच सदस्यीय कमेटी बनायी. इसमें राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरीय वैज्ञानिक, गढ़वा के डीसी या उनके द्वारा नामित एडीएम स्तर के पदाधिकारी, जिला खनन पदाधिकारी या उनके ऊपर स्तर के अधिकारी, सिया के वरीय वैज्ञानिक व गढ़वा नॉर्थ के डीएफओ शामिल हैं.