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मां गढ़देवी मंदिर : लोग इसे कुलदेवी के रूप में पूजते हैं

मां गढ़देवी मंदिर : लोग इसे कुलदेवी के रूप में पूजते हैं

गढ़वा जिला मुख्यालय स्थित मां गढ़देवी मंदिर में गुरुवार को महाष्टमी के अवसर पर 50 हजार श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना कर सुख शांति और समृद्धि की कामना की. मां गढ़देवी मंदिर समीपवर्ती चार राज्यों, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. करीब 200 वर्ष पुराने इस मंदिर को स्थानीय लोग अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. मां गढ़देवी की पूजा गढ़वा के गढ़ की देवी के रूप में की जाती है. यह मंदिर पूरे क्षेत्र के श्रद्धालुओं के लिए गहरी आस्था का केंद्र है.

मंदिर का ऐतिहासिक महत्व : वर्ष 1914 में गढ़वा के राजा बाबू अमर दयाल सिंह ने पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए बंगाली पद्धति से मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत की थी. तब से यह परंपरा लगातार चली आ रही है. अब इसके 110 वर्ष पूरे हो चुके हैं. इस मंदिर में होने वाली दुर्गा पूजा क्षेत्र के लोगों के लिए खूब महत्व रखती है.

नवरात्र में होता है विशेष आयोजन : नवरात्रि के दौरान मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं, विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन. सप्तमी से दशमी के बीच हर दिन करीब 50 हजार से अधिक भक्त यहां पहुंचते हैं. विसर्जन के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को कंधा देने के लिए भक्तों के बीच प्रतिस्पर्धा रहती है. यह आयोजन मंदिर की महत्ता और भव्यता को और बढ़ा देता है.

भैंस की बलि अब नहीं दी जाती : मंदिर में नवमी के दिन भैंसे की बलि देने की प्रथा अब बंद कर दी गयी है. वर्ष 2000 में मंदिर के धार्मिक न्यास के अध्यक्ष बनने पर विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी की पहल से इसे समाप्त कर दिया गया. हालांकि नवमी के दिन बकरे की बलि की प्रथा आज भी कायम है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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