नरगिर आश्रम में चल रहे रामकथा में रविवार की शाम अयोध्या से आये कथावाचक बाल स्वामी अवधेंद्र प्रपन्नाचार्य ने रामजी के बाल चरित्र एवं राम विवाह के प्रसंग पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भगवान शिव ने केवल सती के शरीर का ही त्याग नहीं किया, वरन श्रीराम की सेवा के लिए स्वयं के शरीर का भी त्याग कर दिया. वानर रूप हनुमान बनकर भगवान शंकर ने श्री राम व उनके परिवार की सेवा की. आज भी कर रहे हैं और भविष्य में भी अनंतकाल तक करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि श्री रामलला के दर्शन के लिए अवध की गलियों में भोलेनाथ भी घूमे. वह काकभुशुंडी के साथ बहुत समय तक अयोध्या की गलियों में घूम-घूमकर आनंद लूटते रहे. एक बार शंकर जी काकभुशुंडी को बालक बनाकर और स्वयं त्रिकालदर्शी वृद्ध ज्योतिषी का वेष धारण कर शिशुओं का फलादेश बताने के बहाने अयोध्या के रनिवास में प्रवेश कर गये. श्रीराम की शिशु क्रीड़ा देखकर परमानंद में डूबे भोलेनाथ व माता कौशल्या ने जैसे ही शिशु श्रीराम को ज्योतिषी की गोद में बिठाया, तो शंकर जी का रोम-रोम पुलकित हो उठा.
प्रपन्नाचार्य ने अपने भजनों के माध्यम से कहा कि अपने जीवन में सुकृत अर्जित करनी चाहिए. सत्कर्म अनिष्ट से हमारी रक्षा करता है. विषम परिस्थितियों में सत्कर्म एक कवच की तरह कार्य करता है. मनुष्य को हमेशा सत्कर्म की ओर प्रवृत्त होना चाहिए. विश्वामित्र जी अपने शिष्यों के साथ राजा दशरथ के पास पहुंचते हैं और उनसे राम-लक्ष्मण को मांगते हैं. इसपर राजा दशरथ पहले तो इनकार करते हैं, लेकिन बाद में गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र जी के हाथ में सौंप देते हैं. इसके बाद श्रीराम तथा लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में चले जाते हैं. वहां विश्वामित्र के निर्देश पर यज्ञ में विघ्न डालने वाले ताड़का व सुबाहू का वध किया जाता है तथा मारीच वाण से सौ योजन दूर जाकर गिरता है.
राम विवाह की झांकी निकाली गयी
राम विवाह के अवसर पर बच्चों ने सुंदर झांकी के साथ-साथ गढ़देवी मंदिर से बारात निकाली. इसमें दशरथ जी की तरफ से द्वारकानाथ पांडेय, दिलीप पाठक, राजन पांडेय, चंदन जायसवाल, अवधेश कुशवाहा व मनीष कमलापुरी थे तथा जनक जी के तरफ से दिलीप श्रीवास्तव, श्रीपति पांडेय, अमित पाठक, नितेश कुमार, दीनानाथ बघेल व गुड्डू हरि समधी की भूमिका में शामिल हुए. पुष्प वृष्टि द्वारा झांकी तथा नाच-गान कर रहे बारातियों का स्वागत किया गया.