सन 1857 की क्रांति के वीर योद्धा थे नीलांबर-पीतांबर
सन 1857 की क्रांति के वीर योद्धा थे नीलांबर-पीतांबर
नीलांबर-पीतांबर का शहादत दिवस
सन 1857 की क्रांति के महान नायक गढ़वा जिले के भंडरिया थाना के चेमो सनेया गांव निवासी नीलांबर सिंह और पीतांबर सिंह की शहादत की आज 166वीं तिथि है. अंगरेजों ने आज ही के दिन 28 मार्च सन 1859 ईस्वी को दोनों भाइयों को फांसी की सजा देकर पूरे इलाके में अंग्रेजी शासन का खौफ पैदा किया था. इसके पूर्व अक्तूबर 1857 से लेकर मार्च 1859 तक अंगरेजों को नीलांबर और पीतांबर के विरोध के कारण झारखंड के इन इलाकों में अपने शासन विस्तार करने के लिए नाकों चने चबाना पड़ रहा था. इस डेढ़ साल के दौरान दोनों भाइयों को कई बार पकड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन अंगरेज बार-बार असफल होते रहे.डूब क्षेत्र में पड़ जाने के कारण विस्थापित होना पड़ा वंशजों को
गढ़वा और पलामू जिला के सीमा के पास कोयल नदी तट पर स्थित नीलांबर-पीतांबर का गांव चेमो सनेया गांव आज मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आ गया है. इस कारण नीलांबर-पीतांबर के वंशजों को न सिर्फ वहां से पलायन करना पड़ा, बल्कि इस गांव की पहचान भी मिटा दी गयी. यह अलग बात है कि वर्ष 1970 के दशक में स्वीकृत मंडल डैम आज तक न तो पूरा हुआ और न ही गांव पानी में डूबा. लेकिन इसके पहले ही नीलांबर-पीतांबर के वंशजों सहित पूरे गांव के लोगों को वहां से विस्थापित कर दिया गया. इस कारण उनके वंशजों को खोजने में परेशानी होती है. आज इस गांव में इधर-उधर से आकर अन्य लोग बस गये हैं.झारखंड बनने के बाद उचित सम्मान देने की हुई पहल
आजादी के बाद कई दशकों तक आजाद भारत में नीलांबर-पीतांबर के शहादत को उचित सम्मान नहीं दिया गया था. लेकिन झारखंड राज्य के गठन के बाद नीलांबर-पीतांबर को न सिर्फ सम्मान मिला, बल्कि विश्वविद्यालय से लेकर अनेकों संस्थान व भवनों का नामकरण उनके नाम पर कर उनकी कीर्ति को अमर बनाने का प्रयास किया गया. पलामू का विश्वविद्यालय नीलांबर-पीतांबर के नाम पर खोला गया. गढ़वा, पलामू, लातेहार व हजारीबाग सहित झारखंड के अनेकों जिलों में दोनों शहीद भाइयों की प्रतिमा अथवा कोई न कोई भवन देखने को मिल सकता है.प्रतिमा हुई स्थापित : गढ़वा जिले में भंडरिया के पास आड़ा महुआ के पास दोनों भाइयों की प्रतिमा स्थापित की गयी है. गढ़वा का नगर भवन और उद्यान नीलांबर-पीतांबर के नाम पर है. राष्ट्रीय दिवस पर नीलांबर-पीतांबर के वंशजों को बुलाकर उन्हें सम्मानित किया जाता है.