सदर अस्पताल में जीवन रक्षक तो दूर, सर्दी-खांसी की भी दवा नहीं
सदर अस्पताल में जीवन रक्षक तो दूर, सर्दी-खांसी की भी दवा नहीं
गढ़वा जिले के 15 लाख की आबादी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बऐ सदर अस्पताल गढ़वा की स्थिति दिनों-दिन दयनीय होती जा रही है. अस्पताल की लचर व्यवस्था के कारण इन दिनों परिजन अपने मरीजों को सदर अस्पताल के बजाय निजी अस्पताल ले जाते हैं. तीन महीने से गढ़वा सदर अस्पताल में कई जरूरी जीवन रक्षक दवाएं भी उपलब्ध नहीं है. पर्व-त्योहार के मौके पर भी हालात में सुधार नहीं हुआ है. ओपीडी व आपातकालीन सेवा में चिकित्सकों की अनुपस्थिति आम बात हो गयी है. इस कारण मरीज के परिजन सदर अस्पताल में अक्सर हंगामा करते हैं. कभी-कभी स्थिति नियंत्रित करने के लिए पुलिस बुलानी पड़ रही है. ऐसा कोई सप्ताह नहीं गुजर रहा है, जब स्वास्थ्य सुविधा व अन्य कारणों से हंगामा न हुआ हो. अस्पताल प्रबंधन के दावे के बावजूद भर्ती मरीजों को अस्पताल से दवा नही मिल रही है. बाहर से दवा लेना मरीज व उनके परिजनों की मजबूरी बन गयी है.
गत तीन महीने से दवाएं नहीं : सदर अस्पताल में लगभग तीन महीने से आरएल, डीएनएस, मेट्रोन एनएस, स्लाइन व किट टेप आइवी सेट ग्लव्स सहित कई जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध नहीं है. यहां तक की सरकारी दवा खाने में बच्चों की सर्दी-खांसी की दवा तथा दांत से संबंधित दवा भी उपलब्ध नहीं है. प्रसव कक्ष में आयी महिलाओं को भी स्लाइन से लेकर अन्य जरूरी दवाओं का इंतजाम स्वयं करना पड़ रहा है. इस वजह से सदर अस्पताल में पहले की अपेक्षा मरीजों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है. उल्लेखनीय है कि जिले के सभी 20 प्रखंडों के अलावे पड़ोसी राज्य यूपी और छत्तीसगढ़ की सीमा क्षेत्र से भी हर रोज काफी संख्या में मरीज यहां आते हैं.दवा बाहर से खरीदनी पड़ी : मझिआंव थाना क्षेत्र के करीवाहीह गांव निवासी कृष्णा चौधरी की पत्नी शारदा देवी ने बताया कि 15 दिनों से कृष्णा चौधरी को पैर में घाव होने के बाद सदर अस्पताल में भर्ती कराया था. इसके बाद से वह अपनी बकरी बेचकर तथा पड़ोसी से कर्ज लेकर करीब पांच हजार रुपये से बाहर से दवा खरीद कर उसने पति का इलाज कराया है. उसने बताया कि उसके घर में कोई कमाने वाला भी नहीं है. पति बीमार हैं. उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं. उसने बताया कि वह बड़ी उम्मीद के साथ वह गढ़वा सदर अस्पताल आयी थी.
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