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घड़ा-सुराही की कम बिक्री से निराश है कुम्हार समुदाय

घड़ा-सुराही की कम बिक्री से निराश है कुम्हार समुदाय

देसी फ्रिज कहलाने वाले मिट्टी के घड़े का कारोबार साल दर साल कम होता जा रहा है. मिट्टी का बर्तन बनाकर बेचने वाले कारीगर इन दिनों खाली बैठे हैं. उनका कहना है कि बाजार में मौजूद फ्रिज, वाटर कूलर व थरमस जैसे उपकरण ने उनके घड़े और सुराही की मांग घटा दी है. यही वजह है की मिट्टी का घड़ा और सुराही बनाने वाले कुम्हार इस कारोबार के प्रति अब पहले जैसे उत्साहित नहीं हैं. उनका कहना है कि कुछ वर्ष पहले तक गर्मी का मौसम शुरू होते ही मिट्टी के घड़ो की मांग बढ़ जाती थी. गर्मी शुरू होने के पहले से ही वह लोग बड़े पैमाने पर मिट्टी के घड़े व सुराही बनाने का काम शुरू कर देते थे. लेकिन अब थोड़ा-बहुत काम करते हैं. उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर पीने के पानी के लिए घड़ों का प्रयोग किया जाता था. लेकिन अब इसकी जगह बिजली के वाटर कूलर या फिर ठंडे पानी के फ्लास्क ने ले लिया है. इसलिए माटी की यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर है. वहीं कुम्हार भी अपने परिवार के जीविकोपार्जन के लिए अन्य रोजी-रोजगार का सहारा ले रहे हैं. लेकिन कुछ खानदानी पेशा को छोड़ना नहीं चाहते हैं. उनकी मांग है कि सरकार उनके इस काम को ध्यान दे मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को संरक्षण दे. एक दिन में मुश्किल से 5-10 घड़ा बिक रहा है. इसी तरह की पीड़ा कुम्हार दिनेश प्रजापति की भी है. उन्होंने कहा कि वह हर तरह के मिट्टी के बर्तन बनाते हैं. लेकिन बाजार मं पानी ठंडा करने के कई उपकरणों के कारण मिट्टी के बर्तनों का डिमांड कम होने लगी है. अभी वह अलग-अलग बाजारों में दुकानों में दुकान लगाने के साथ घर-घर जाकर घड़ा बेचने को मजबूर हैं.

घड़े का दाम घटाने के बाद भी बिक्री नहीं सुदामा प्रजापति

अनुमंडल मुख्यालय स्थित नरही गांव के दर्जनों कुम्हार परिवार का चूल्हा आज भी मिट्टी के चक्र से ही चलता है. वह मिट्टी से घड़े और सुराही सहित अन्य सामान बनाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं. गांव के सुदामा प्रजापति ने कहा कि एक घड़े की कीमत 30 रु होने के बावजूद घड़ा नहीं बिक रहा है. ज्यादा गर्मी होने पर कभी-कभी बिक्री में उछाल आता है. लेकिन एक-दो दिन की बिक्री से परिवार नहीं चलने वाला. कभी-कभी ऐसा होता है कि बाजार लाये गये सभी घड़े और सुराही वापस घर ले जाना पड़ता है.

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