सात जिलों में नहीं संस्कृत शिक्षक, अन्य में भी यही स्थिति होने का अनुमान
सात जिलों में नहीं संस्कृत शिक्षक, अन्य में भी यही स्थिति होने का अनुमान
झारखंड प्रदेश में हो रहे संस्कृत की उपेक्षा के खिलाफ और इसके विकास को लेकर गढ़वा जिले के विभिन्न सामाजिक संगठनों की बैठक हुई. इसमें हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समाज के लोग शामिल हुए. बैठक में लोगोें ने संस्कृत भाषा की उपेक्षा के खिलाफ लगातार संघर्ष करने और उसे उसका वास्तविक स्थान दिलाने के लिए एक संगठन का गठन करने का निर्णय लिया. इसमें सर्वसम्मति से संस्कृत भाषा संरक्षण समिति का गठन किया गया. फिल्म निर्माता दयाशंकर गुप्ता को इसका अध्यक्ष बनाया गया. बैठक में झारखंड राज्य में संस्कृत और उर्दू भाषा की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गयी. गुलाम सरवर ने बताया कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत सरकार से पूरे राज्य में जिलावार संस्कृत शिक्षकों के पद के विषय में जानकारी मांगी थी. उसके आलोक में सरकार से 24 जिलों में से मात्र सात जिलों से सूचना दी गयी. इसमें बताया गया कि सात जिलों में से किसी भी जिले में संस्कृत शिक्षकों के पद ही सृजित नहीं हैं. अन्य जिलों की भी यही स्थिति होने का अनुमान है. बैठक की अध्यक्षता करते हुए दयाशंकर गुप्ता ने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है. लेकिन दुर्भाग्य है कि सरकार उसी भाषा को उपेक्षा कर उससे भावी पीढ़ी को दूर करने का प्रयास कर रही है. भारतीय समाजवादी पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष याकूब इकबाल ने कहा कि संस्कृत भाषा को जिस तरह से सरकार द्वारा उपेक्षा की जा रही है, वह एक साजिश है. इसे लेकर समाज को जागरूक करने की जरूरत है. इसके लिए व्यापक प्रचार-प्रसार करना होगा. अरविंद चौबे ने कहा कि इसको लेकर लगातार बैठक और विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम कर लोगों को जागरूक करना होगा. बैठक में राम बड़ाइक पासवान, मो मंसूर, सुजान शेख, अरूण कुमार पांडेय, तबारक हुसैन व प्रेमरंजन सिंह ने भी विचार व्यक्त किये.
गढ़वा में बंद कर दी गयी संस्कृत पाठशालाबैठक के दौरान कहा गया कि गढ़वा शहर में एकमात्र संस्कृत पाठशाला श्रीकृष्ण गोशाला परिसर में संचालित थी. पर इसे भी बंद कर दिया गया. इधर जिले के किसी भी विद्यालय में संस्कृत शिक्षक नहीं हैं. यही स्थिति प्राथमिक विद्यालय से लेकर महाविद्यालय तक की है. कहीं भी संस्कृत के शिक्षक नहीं है. इस कारण विद्यार्थियों की संस्कृत भाषा की पढ़ाई नहीं हो पा रही है. इसका असर संस्कृत के विद्यार्थियों, पठन-पाठन व इसके प्रचार-प्रसार पर पड़ रहा है.
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