श्री रामलला मंदिर में तीसरे और चौथे दिन राम कथा का आयोजन किया गया. वृंदावन से पधारे कृष्णकांत ने कहा कि यज्ञ मानव कल्याण के लिए किये जाते हैं. इससे प्राणियों में सद्भावना आती है तथा वे धर्म के मार्ग के मर्म को भी जान पाते हैं. ईश्वर की आराधना तथा कलयुग में भगवान को प्राप्त करने का साधन यज्ञ से ही प्राप्त होता है. लेकिन खुद भगवान शंकर ने ही अपने दूत वीरभद्र को भेजकर राजा प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करा दिया. इस चर्चा में महाराज ने कहा कि प्रजापति को जब दक्ष का पद मिला, तो उन्होंने अपने सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया. इसमें सभी देवी देवताओं को बुलाया गया. जब दक्ष सभा स्थल पहुंचे, तो सभी देवताओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर उनका अभिवादन किया. लेकिन भगवान शिव अपने स्थान पर ही बैठे रहे. यह देखकर प्रजापति दक्ष को काफी बुरा लगा. उनके मन में यह बात घर करने लगी कि खुद उनके दामाद ने ही उन्हें अपमानित कर दिया. समारोह समाप्त होने के बाद प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को बहुत भला-बुरा कहा, लेकिन भगवान शिव ने उनकी एक बात नहीं सुनी. क्योंकि उस समय वह अपनी पत्नी सती को अपने अन्तः मन से श्री राम कथा सुना रहे थे. उन्हें पता ही नहीं चला कि दक्ष क्या बोल रहे थे.
उपस्थित लोग : मौके पर समिति के संरक्षक विश्वनाथ सिंह, अध्यक्ष अलखनाथ पांडेय,सचिव धनंजय सिंह, सुदर्शन सिंह, सत्यनारायण दुबे, धनन्जय गोंड, धनंजय ठाकुर, दिलीप कमलापुरी, मनीष कमलापुरी व मदन कमलापुरी उपस्थित थे.