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घाटशिला विधानसभा में अब नहीं गूंजता मजदूरों का मुद्दा, खदानों की बंदी से श्रमिकों की संख्या घटी

Jharkhand Chunav 2024: मुसाबनी ग्रुप ऑफ माइंस में एक समय 12 हजार से अधिक मजदूर थे, आज 1200 हैं. मऊभंडार कारखाना में 2000 से अधिक मजदूर थे, अब 200 रह गये हैं.

Jharkhand Chunav 2024|Jharkhand Assembly Election 2024|Ghatshila Vidhan Sabha|घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज/ललन सिंह : पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में कभी मजदूरों का मुद्दा अहम होता था. ट्रेड यूनियन के नेता टीकाराम मांझी, केपी सिंह और अशोक मिश्रा जैसे नेता मजदूरों के मसीहा हुआ करते थे. बाद में एक-एक कर खदानों की बंदी से मजदूरों की संख्या कम होती गयी. आउटसोर्स को बढ़ावा मिला. ठेका मजदूरी का प्रचलन बढ़ा. इससे ट्रेड यूनियन कमजोर होती चली गयी.

अलग-अलग मुद्दों पर केंद्रित हुई घाटशिला की राजनीति

अब चुनाव में मजदूरों का मुद्दा नहीं गूंजता. क्षेत्र की राजनीति अलग-अलग मुद्दों पर केंद्रित हो गयी है. जब मजदूर अधिक थे, तो ट्रेड यूनियन से जुड़े नेता चुनाव लड़ते थे. टीकाराम मांझी, अशोक मिश्रा और केपी सिंह ऐसे ही मजदूर नेता थे. मुसाबनी ग्रुप ऑफ माइंस में एक समय 12 हजार से अधिक मजदूर थे, आज 1200 हैं. मऊभंडार कारखाना में 2000 से अधिक मजदूर थे, अब 200 रह गये हैं.

Jharkhand Assembly Election 2024 Photo
घाटशिला विधानसभा में अब नहीं गूंजता मजदूरों का मुद्दा, खदानों की बंदी से श्रमिकों की संख्या घटी 2

बड़ी संख्या में हुआ मजदूरों का पलायन

झारखंड बनने के बाद एक-एक कर खदानों की बंदी से बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ. मुसाबनी ग्रुप ऑफ माइंस में एक समय 12 हजार से अधिक मजदूर थे. अब 1200 हैं. वह भी सुरदा और मुसाबनी प्लांट चालू होगा, तो इतने मजदूर काम कर पायेंगे. इसमें अधिकांश ठेका मजदूर बनकर रह गये हैं. कुछ ऐसा हाल मऊभंडार कारखाना है.

धालभूमगढ़ स्पीलर फैक्ट्री 15 साल से बंद

कभी यहां 2000 से अधिक मजदूर थे. आज 200 रह गये हैं. धालभूमगढ़ स्पीलर फैक्ट्री 15 साल से बंद. धालभूमगढ़ स्थित स्पीलर फैक्ट्री में एक समय 600 के करीब मजदूर कार्यरत थे. यह 15 साल से प्लांट बंद है. यहां कार्यरत मजदूर पलायन कर गये या दूसरे जगह मजदूरी कर गुजारा कर रहे हैं. झारखंड स्लीपर मजदूर यूनियन के अध्यक्ष चंपाई सोरेन हैं और सचिव घनश्याम महतो.

बदलते दौर में मजदूरों का नेतृत्व करना बड़ी चुनौती : यूनियन नेता

यूनियन नेता मानते हैं कि बदलाव के इस दौर में मजदूरों का नेतृत्व करना बड़ी चुनौती है. आइसीसी वर्कर्स यूनियन के महासचिव ओमप्रकाश सिंह, अध्यक्ष वीरेंद्र नारायण सिंह, इंटक महासचिव काल्टू चक्रवर्ती, एससीएल-आइसीसी श्रमिक संघ के अध्यक्ष काजल डॉन का कहना है कि मजदूर हित में हमेशा आवाज उठती रही है. चुनाव में दूसरे मुद्दे हावी हो जा रहे हैं. इसलिए मजदूरों की अवाज दब जा रही है.


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