11 लाख का इनामी है सिद्धू, झारखंड-बिहार के सीमावर्ती जिलों में रहा है वर्चस्व
राकेश सिन्हा/श्रवण, गिरिडीह : झारखंड और बिहार की सीमावर्ती जिलों में हार्डकोर व इनामी नक्सली सिद्धू कोड़ा के नाम का खौफ ऐसा है कि उसके नाम से ही लेवी के रूप में विभिन्न योजनाओं से मोटी रकम की उगाही की जाती रही है. झारखंड और बिहार की पुलिस ने सिद्धू कोड़ा पर 11 लाख रुपये […]
राकेश सिन्हा/श्रवण, गिरिडीह : झारखंड और बिहार की सीमावर्ती जिलों में हार्डकोर व इनामी नक्सली सिद्धू कोड़ा के नाम का खौफ ऐसा है कि उसके नाम से ही लेवी के रूप में विभिन्न योजनाओं से मोटी रकम की उगाही की जाती रही है. झारखंड और बिहार की पुलिस ने सिद्धू कोड़ा पर 11 लाख रुपये का इनाम भी घोषित कर रखा है.
विभिन्न चर्चित नरसंहारों में शामिल सिद्धू कोड़ा हाल के दिनों में सैक का सचिव था. हाल के दिनों में झारखंड-बिहार की सीमा पर पुलिस की सक्रियता के कारण इस इलाके में वह लुका-छिपी का खेल खेल रहा था. सिद्धू कोड़ा का दस्ता जमुई जिले के चकाई थाना क्षेत्र के तेलंगा, मंझलाडीह, गुरुड़बाद बरामोरिया, बोंगी, पोझा के इलाकों के साथ ही गिरिडीह के भेलवाघाटी थाना क्षेत्र के पहाड़ी और जंगली इलाकों में काफी सक्रिय है.
परिवार हुआ प्रताड़ना का शिकार तो सिद्धू बना नक्सली : बिहार के जमुई जिला में अवस्थित निहालडीह गांव के एक साधारण किसान का परिवार जब प्रताड़ना का शिकार हुआ तो परिवार के एक युवक सिद्धू कोड़ा ने नक्सलवाद का रास्ता अपना लिया. जानकारी के मुताबिक वर्ष 2003-2004 में एक कथित नक्सली कुंदन सिद्धू कोड़ा के परिवार के सदस्य को प्रताड़ित कर रहा था.
इससे परेशान सिद्धू वर्ष 2003-2004 में भाकपा माओवादियों के संपर्क में आ गया. माओवादी संगठन से जुड़ने के बाद सिद्धू तत्कालीन एरिया कमांडर रामचंद्र महतो उर्फ प्रमोद महतो उर्फ चिराग उर्फ बड़का दा के संपर्क में आ गया. चिराग के संपर्क में आने के बाद सिद्धू संगठन में अपनी मजबूत पकड़ बनाने लगा. वर्ष 2006 तक सिद्धू, चिराग व बशीर के बाद तीसरा सबसे कुख्यात नक्सली बन गया.
इस दौरान उसके परिवार के सदस्य के साथ गलत हरकत करने वाले कथित नक्सली को मारकर परिवार के सदस्य के साथ हुई प्रताड़ना का बदला ले लिया. इसके बाद चिराग के दस्ते में शामिल रहने वाला सिद्धू एक से एक बड़ी घटनाओं को अंजाम देता चला गया और इस इलाके में अपनी मजबूत पकड़ बना ली. इसके बाद वह संगठन का प्रमुख सदस्य बन गया.
चिराग व सुरंग के बाद सिद्धू ने संभाला मोर्चा
वर्ष 2010 के बाद पुलिस ने बड़ी कार्रवाई शुरू की और नक्सली धरे जाते रहे. इलाके में दहशत का दूसरा नाम बन चुके चिराग को पुलिस ने जमुई इलाके में मार गिराया. जनवरी 2016 की इस घटना के बाद कई महीने तक क्षेत्र में संगठन को मजबूत नेता की तलाश रही. बाद में सुरंग यादव व सिद्धू को इलाके का जिम्मा सौंपा गया.
2017 में भाकपा माओवादी को उस वक्त झटका लगा जब सुरंग ने भी जमुई पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. सैक का सचिव सिद्धू कोड़ा एरिया कमांडर चिराग की हत्या और सुरंग के आत्मसमर्पण के बाद झारखंड और बिहार के सीमा पर संगठन की ओर से मोर्चा संभाला.
जिम्मेदारी मिलने के बाद सिद्धू कोड़ा नक्सली लालमोहन यादव व दरोगी यादव के साथ घटनाओं को अंजाम देकर संगठन को धारधार बनाने में जुट गया. वर्ष 2018 में भेलवाघाटी थाना क्षेत्र के कारीझाल से लालमोहन यादव व लोका गांव के दरोगी यादव की गिरफ्तारी के बाद नक्सली मनोज सोरेन के नेतृत्व में मारक दस्ता तैयार कर गुरिल्ला वार कर ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम देता चला गया.
सिद्धू के विरुद्ध भेलवाघाटी व चिलखारी नरसंहार के अलावे हीरा कुमार झा की हत्या का आरोप है. जबकि देवरी के सोनरे नदी पर अवस्थित पुल में बम लगाने, भेलवाघाटी के मुखिया प्रभावती बर्णवाल के पुत्र सुभाष बर्णवाल व श्यामसुंदर पंडित की हत्या करने, भतुआकुरहा में हुए मुठभेड़ आदि में भी सिद्धू कोड़ा व इसके दस्ते की संलिप्तता की बात सामने आयी है.
सुशील और इलियास भी आये पकड़ में
सुशील हेम्ब्रम और इलियास हेम्ब्रम को भी जमुई की एसअीएफ टीम ने हिरासत में लेकर पूछताछ कर कर रही है. हालांकि इन दोनों की पुष्टि अधिकारियों ने नहीं की है.