चौथ माता से अखंड सुहाग का वर मांगा करवा चौथ. दिन भर उपवास रख कर सुहागिनों ने रात को चांद का दीदार करने के बाद की पूजा-अर्चनाचित्र परिचय : 125, 126 – पूजा-अर्चना करतीं सुहागिन महिलाएं गिरिडीह. भारतीय स्त्रियों की महान आध्यात्मिक व सांस्कृतिक परंपरा का महापर्व करवा चौथ को लेकर शुक्रवार की सुबह से ही सुहागिन महिलाओं में उत्साह देखा गया. दिन भर उपवास रख कर सुहागिनों ने रात को चांद का दीदार करने के बाद पूरी निष्ठा से पूजा-अर्चना कर व्रत तोड़ा. इस दौरान सुहागिनों ने अपने-अपने पति की आरोग्यता व लंबी आयु की कामना की. शहरी क्षेत्र के पंजाबी मुहल्ले समेत अन्य मुहल्लों की महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रखा. पंजाबी मुहल्ले की महिलाओं ने एकत्रित होकर गुरुद्वारा में पूजा-अर्चना की. रोजी दुआ, मनप्रीत कौर, नीलम, ऋतिका कौर, सोनिया वाधवा आदि ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपने पति की दीर्घायु की कामना की. डीइओ निर्मला कुमारी बरेलिया ने भी अपने परिवार की सुख-शांति व पति की दीर्घायु को लेकर करवा चौथ का व्रत किया. पूजा-अर्चना के बाद डीइओ के आवास पर ब्राह्मण भोजन का भी आयोजन किया गया. शास्त्रों के मुताबिक करवा चौथ व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत कोई दूसरा नहीं है. यह व्रत बेहद प्राचीन है. करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं, जिससे चंद्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है, किया जाता है. पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है. करवा चौथ से संबंधित अनेक कथाएं प्रसिद्ध माता पार्वती ने भी किया था व्रत : करवा चौथ के दिन शिव-पार्वती और स्वामी कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. शैलपुत्री पार्वती ने भगवान शिव को कठिन व्रत से पाया था. इस दिन गौरी पूजन से जहां महिलाएं अखंड सुहाग की कामना करती हैं, वहीं अविवाहित कन्या, सुयोग्य वर पाने की प्रार्थना करती हैं.द्रौपदी ने रखा था करवा चौथ : कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने करवाचौथ का व्रत रखा था. मान्यता है कि इसी करवा चौथ व्रत के प्रभाव से महाभारत युद्ध में द्रौपदी के पांचों पति सुरक्षित रहे और पांडवों को विजय मिली थी. चौथ माता का प्राचीन मंदिर राजस्थान में : मारवाड़ी महिलाएं करवा चौथ के मौके पर चौथ माता की पूजा-वंदना करती हैं और उनसे अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं. भारत में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है. चौथ माता के नाम पर इस गांव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया. चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमिसंह चौहान ने की थी.चंद्रमा को अर्घ्य क्यों?भारतीय सभ्यता-संस्कृति में आदि काल से महिलाएं हर अग्नि परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध रहती हैं. लगभग हर नारी की ख्वाहिश रहती है कि उसका पति चांद की तरह खूबसूरत, शीतल, ऊर्जावान, मनमोहक, सौंदर्य प्रेमी और गगन को चूमने वाला हो. भावनाओं का कारक चंद्रमा स्त्रियों के मन और मस्तिष्क पटल पर विशेष अधिकार जमाये रहता है, तभी तो स्त्रियों में भावनाओं की नदियां बहती रहती है. करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को रखा जाता है. कार्तिक महीना हेमंत ऋतु में पड़ता है और इस समय आकाश एकदम साफ रहता. इस कारण चंद्रमा का अधिक प्रकाश पृथ्वी पर पड़ता है. चंद्र मन का प्रतिनिधित्व करता है. माना जाता है कि स्त्रियों का मन अधिक चंचल होता है, इसलिए मन को स्थिर और शक्तिशाली बनाने के लिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है.
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चौथ माता से अखंड सुहाग का वर मांगा करवा चौथ. दिन भर उपवास रख कर सुहागिनों ने रात को चांद का दीदार करने के बाद की पूजा-अर्चनाचित्र परिचय : 125, 126 – पूजा-अर्चना करतीं सुहागिन महिलाएं गिरिडीह. भारतीय स्त्रियों की महान आध्यात्मिक व सांस्कृतिक परंपरा का महापर्व करवा चौथ को लेकर शुक्रवार की सुबह से […]
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