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पश्चिम बंगाल के दूसरे सीएम वीसी राय का गिरिडीह से था खास नाता, सरिया में जमीन खरीद बनाया था बंगला

बंगाल के राजघराने से संबद्ध इस परिवार के लोग अपनी छुट्टियों में यहां आया करते थे. फिजां में तैरते किस्से बताते हैं कि प बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय भी सरिया आया करते थे.

लक्ष्मीनारायण पांडेय, गिरिडीह : हर इलाके का अपना एक लोकल स्पॉट होता है, जैसे समीकरणों में कोइफिशिएंट (गुणांक) होता है. इसकी गुणवत्ता इलाके का मान तय करती है. यही हैसियत एक जमाने में गिरिडीह के बाद बंगाली कोठियों के कारण सरिया को हासिल थी. गिरिडीह का सूत्र एक तरफ कविगुरु रवींद्रनाथ, भारतीय सांख्यिकी के पितामह पीसी महालनोबिस व सर जेसी बोस से जुड़ता था तो डालमिया इस्टेट, थन सेनाध्यक्ष का शांतिकुंज, बंगाल के मेयर हेमचंद नस्कर के कुमार आश्रम, डॉ श्यामाचरण मुखर्जी के मुखर्जी भवन से सरिया का स्टेटस सिंबल बने हुए थे. इसी दौर में आजादी के बाद प बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री वीसी राय के परिजनों ने यहां राय विला बनाया हुआ था.

1930 के दशक में दो बीघा जमीन खरीदी थी राय परिवार ने :

20वीं सदी का मध्य काल सरिया का स्वर्णकाल था. यहां बसी लगभग सारी बड़ी हस्तियों ने इसी दौर में यहां अपना ठौर बनाया था. बंगाली भोद्रो मानुष की उपस्थिति एक परिदृश्य रचती थी जो वहां की खुशहाली में झलकती थी. बाजार में रौनक रहती थी. इन्हीं हस्तियों में शामिल थे विधान चंद्र राय, जिनके परिजनों ने सरिया में वर्ष 1930-35 के मध्य लगभग दो बीघा जमीन खरीदी थी और बंगला बनाया था. इस बंगले में विभिन्न प्रकार के फूलों से सुसज्जित बगीचे, फलदार वृक्ष, साग-सब्जियों की क्यारियां लगायी गयी थी.

बंगाल की उप राजधानी के रूप में देखा जाता था :

बंगाल के राजघराने से संबद्ध इस परिवार के लोग अपनी छुट्टियों में यहां आया करते थे. फिजां में तैरते किस्से बताते हैं कि प बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय भी सरिया आया करते थे. सभ्य, शांत तथा ईमानदार प्रवृत्ति के लोगों की अधिकता के कारण मंत्रियों के पास सुरक्षा कर्मी कम हुआ करते थे. बावजूद एक मुख्यमंत्री का सरिया जैसे छोटे कस्बे में आना-जाना मायने रखता था. लोग सरिया को बंगाल की उप राजधानी के रूप में भी देखे थे.

सीएम बनने के बाद भी सरिया आते रहे :

मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनका सरिया आना-जाना लगा रहा. उनके यहां आगमन पर सरिया बाजार की रौनक ही अलग हो जाती थी. स्टेशन से लेकर पूरे सरिया बाजार की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था. बदलते समय के साथ सरिया की फीकी पड़ती चमक के बीच राय विला का भी अपना अस्तित्व बनाये रखना मुश्किल होता गया. परिजन उस भवन को बेच चुके हैं. खरीदारों ने अपने हिसाब से मकान का रूपांतरण कर लिया है.

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