जैन धर्मावलंवियों के पर्यूषण महापर्व के चौथे दिन बुधवार को स्टेशन रोड सरिया स्थित दिगंबर जैन मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. शांतिनाथ भगवान की प्रार्थना हुई. लोगों ने विश्व शांति की मंगल कामना की. प्रदोष काल में आरती के बाद उत्तम शौच धर्म की विशेष आराधना की गयी. इसके बाद प्रवचन हुआ. उत्तर प्रदेश के झांकलोन (ललितपुर) से आये प्रिंस जैन शास्त्री ने प्रवचन में उत्तम शौच धर्म के संबंध में बताया. कहा कि आज मानव धन-दौलत समेत अन्य भोग-विलास की वस्तुओं के प्रति आवश्यकता से अधिक आशक्त है. मनुष्य की इस प्रवृत्ति को लोभ कहा जाता है. कुछ प्राप्त करने की प्रबल लालसा की पूर्ति हो जाने के बाद भी अधिक पाने की चाहत लगी रहती है. ऐसा व्यक्ति जीवन भर असंतोषी व दुखी रहता है. उन्होंने कहा कि शौच का अर्थ शुचिभूत होना है. अनादि काल से आत्मा के साथ लगे हुए क्रोध, मन, माया लोभ तथा इंद्रिय जन्य दुष्ट वासनाओं को बढ़ाने वाले विषय, भोग रूपी विष को ज्ञान रूपी पानी से आत्मा के ऊपर लगे कर्म मल को धो देना चाहिए. वर्तमान समय में मनुष्य शरीर को पवित्र करने के लिए चंदन सुगंधित तेल, खुशबूदार साबुन आदि का उपयोग करते हैं. इससे वाह्य अंग भले शुद्ध हो जाये, लेकिन अंतरांग को शुद्ध करने के लिए आत्म तत्वों को जानना होगा. आशाओं और अपेक्षाओं के संसार से व्यक्ति को दूर होना चाहिए. लोभ रूपी मैल को जो संतोष रूपी जल से धोता है, वही व्यक्ति शौच धर्मी कहलाता है. क्रोध, मन, माया और लोभ के त्याग से आत्मिक शुद्धता आती है. अपने पास उपलब्ध वस्तुओं से ही संतोष करना और अधिक पानी की लालसा न करना ही उत्तम शौच धर्म है. वैसे संतोषी प्राणी जीवन भर परम सुख को प्राप्त करते हैं. कार्यक्रम में उपस्थित जैन धर्मावलंवियों ने उत्तम शौच धर्म को बरकरार रखने का संकल्प लिया. कहा कि लोभ पाप का कारण होता है, इससे हमें हमेशा दूरी बनाये रखना है. कार्यक्रम में सरिया जैन समाज के काफी संख्या में महिला-पुरुष उपस्थित थे.
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