कुछ समझ में नहीं आ रहा आगे क्या होगा

राकेश सिन्हा, गिरिडीह : 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की अवधि रहेगी, यह सोचकर झारखंड के अप्रवासी मजदूर कुछ राहत महसूस कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की घोषणा के साथ ही इन मजदूरों की बेचैनी एक बार फिर बढ़ गयी है. एक आकलन के मुताबिक गिरिडीह के लगभग ढाई लाख मजदूर देश के […]

By Prabhat Khabar News Desk | April 15, 2020 2:28 AM

राकेश सिन्हा, गिरिडीह : 14 अप्रैल तक लॉकडाउन की अवधि रहेगी, यह सोचकर झारखंड के अप्रवासी मजदूर कुछ राहत महसूस कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की घोषणा के साथ ही इन मजदूरों की बेचैनी एक बार फिर बढ़ गयी है. एक आकलन के मुताबिक गिरिडीह के लगभग ढाई लाख मजदूर देश के विभिन्न राज्यों के विभिन्न शहरों में रोजगार से जुड़े हुए थे. कोरोना के संकट को देखते हुए पूरे देश भर में लॉकडाउन की घोषणा अचानक कर दी गयी. जो मजदूर विभिन्न फैक्ट्रियों में या संस्थानों में रोजगार से जुड़े हुए थे, वे रातों-रात बेरोजगार हो गये.

कई फैक्ट्रियों के संचालकों ने मजदूरों को मदद देना तो दूर उन्हें अपने परिसर से भी बाहर निकाल दिया. बाहर फंसे मजदूरों को एक ओर कोरोना से बचाव के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं दूसरी ओर भूख से भी लड़ना पड़ रहा है. ऐसे मजदूर यह सोच रहे थे कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म हो जायेगा और वे वापस अपने घर लौट जायेंगे, लेकिन लॉकडाउन की अवधि बढ़ने की घोषणा से मजदूरों की मुसीबतें बढ़ गयी है. सूरत में रह रहे जमुआ के भूदेव प्रसाद वर्मा कहते हैं कि अब तक तो किसी तरह काम हम लोगों ने काम चला लिया. इस दौरान कई दिन हमलोगों को भूखा भी रहना पड़ा. आगे क्या होगा, यह कुछ भी समझ में नहीं आता. भुदेव इम्ब्रॉडरी बनाने का काम करता है. इसी प्रकार सूरत के एक कपड़ा दुकान में मजदूरी कर रहे नारायण कहते हैं कि हमलोगों को लग रहा था कि लॉकडाउन खत्म होगा और हमलोग अपने गांव चले जायेंगे. लॉकडाउन के बढ़ने से हमलोगों की मुसीबतें अब बढ़ गयी है. अब तक किसी तरह गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन अब धैर्य भी जवाब दे रहा है. यहां खाने-पीने व रहने की व्यवस्था ही नहीं है.

हमलोग कई बार झारखंड के मुख्यमंत्री के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर चुके हैं. शुरुआती दौर में तो वहां के अधिकारी फोन उठाते थे और किसी तरह एक टाइम का भोजन की व्यवस्था यहां की सरकार से करवा देते थे. अब तो ये लोग फोन भी नहीं उठाते है. जो लोग एक टाइम का भोजन भी देते थे, उनलोगों ने भी चुप्पी साध ली है. अब न झारखंड की सरकार कुछ कर रही है और न ही गुजरात की सरकार. मुंबई के बांद्रा में रह रहे डुमरी के तौफिक अंसारी कहते हैं कि हमलोग लगभग 100 लोग गिरिडीह जिले से बांद्रा में विभिन्न फैक्ट्रियों में काम कर रहे थे. हमलोगों को काम से हटा दिया गया और अब फैक्ट्री वाले फोन तक नहीं उठाते हैं. इससे परेशानी बढ़ गयी है. तौफिक का कहना है कि 26 मार्च को झारखंड एकता संघ के माध्यम से दस किलो चावल और दो किलो दाल मिला था जो खत्म हो गया. अब हमलोगों के समक्ष भूखे मरने की स्थिति आ गयी है.

मुंबई व अन्य राज्यों में फंसे हैं मुडरो के 700 मजदूरचित्र परिचय : 13. मुंबई में फंसे मजदूरों की तसवीरबगोदर. लॉकडाउन में बगोदर प्रखंड की मुंडरो पंचायत के गम्हरिया, बिहारो आदि विभिन्न गांवों से करीब 765 मजदूर देश के विभिन्न महानगरों में फंसे हुए हैं. इस बाबत मुखिया प्रतिनिधि उमेश मंडल ने बताया कि प्रखंड के मुडरो पंचयात के मजदूर मुंबई, गुजरात, कोलकाता में फंसे हैं. इन सभी मजदूरों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या राशन व पैसे की है. कई मजदूरों को घर के लोगों द्वारा पैसा भेजा गया है, लेकिन जिन मजदूरों के घर वालों द्वारा पैसा नहीं भेजा गया इसकी हालात खराब होने लगी है. फंसे मजदूरों ने अपनी व्यथा को सोशल मीडिया के माध्यम से मुंडरो पंचायत के बिहारो के अर्जुन मंडल ने बताया कि कई जगह पर हम लोगों द्वारा काम चल रहा था.

अचानक देश भर में लगे लॉकडाउन में हमारी मजदूरी भी बकाया रह गयी है. कई मजदूर साथी तो लॉकडाउन में पैदल या फिर सड़क के माध्यम से अपने गांव भी चले भी गये. हालांकि कई मजदूर फंसे हुए हैं. लॉकडाउन के दौरान शुरुआत में मुंबई में कई सामाजिक संगठन ने राहत सामग्री दी, लेकिन वह भी अब मिलना बंद हो गया है. बॉक्स- देर भी हुआ, दुरुस्त भी नहीं : विनोद सिंह चित्र परिचय : 34. विनोद सिंह, विधायक, बगोदर बगोदर विधायक विनोद सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री से व्यक्तिगत तौर पर मिलकर मजदूरों की समस्याओं से अवगत कराया था. बताया था कि लॉकडाउन से सबसे ज्यादा झारखंड के प्रवासी मजदूरों को समस्याएं होगी. हालांकि सरकार ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. सोमवार को झारखंड की सरकार ने कहा है कि प्रत्येक विधायक 25 लाख रुपये तक मजदूरों पर खर्च कर सकते हैं. सरकार का यह निर्णय अदूरदर्शितापूर्ण है. देर भी हुआ और दुरुस्त भी नहीं है.

उन्होंने कहा कि गिरिडीह जिले के लगभग ढाई लाख मजदूर अलग-अलग राज्यों के शहरों में फंसे हुए हैं. एक तो यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. वहीं दूसरी ओर इस मामले को एमपी-एमएलए पर छोड़कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रही है. विधायक और सांसद के पास प्रवासी मजदूरों की मॉनीटरिंग का कोई सिस्टम नहीं है. सरकार के पास न सिर्फ सिस्टम है, बल्कि उनके पास कर्मचारी भी है. सरकार खुद कोई ऐसा सिस्टम विकसित करे जिससे इन मजदूरों को लाभ मिल सके. प्रवासी मजदूरों का गिरिडीह की अर्थव्यवस्था पर काफी योगदान है. यह सिर्फ बगोदर का मामला नहीं है, बल्कि यह समस्या संपूर्ण झारखंड के उन मजदूरों का है जो दूसरे राज्यों में अपनी रोजी-रोटी के लिए गये हुए थे. श्री सिंह ने कहा कि झारखंड सरकार केंद्र सरकार से सहयोग लेकर अविलंब कोई कदम उठाये. अन्यथा हमें ठोस निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. सुबह से लेकर देर रात तक मजदूरों का फोन आता है और वे मदद की गुहार लगा रहे हैं. इसे सरकार गंभीरता से ले.

अपना प्रतिनिधि भेजे झारखंड सरकार : बाबूलाल

बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड धनवार विधायक बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड सरकार ने विधायक कोटे से 25 लाख रुपये देने का प्रावधान किया है. सरकार का यह निर्णय सुनने में बहुत अच्छा है, पर टफ है. व्यावहारिक रूप से इसे हकीकत में नहीं बदला जा सकता. उन्होंने कहा कि राशि प्रवासी मजदूरों के खाते में भेजने की बात हो रही है. कई लोगों के पास बैंक में खाता नहीं है. साथ ही इससे धोखाधड़ी होने की भी पूरी गुंजाइश है. संगठित मजदूरों में से कई के पास खाते तो होंगे, परंतु असंगठित मजदूरों यानी दिहाड़ी मजदूरों के पास खाता भी नहीं होगा. इससे कई तरह के संकट व्यावहारिक तौर पर उत्पन्न होंगे. झारखंड सरकार को प्रवासी मजदूरों के हितों का ध्यान रखते हुए विभिन्न राज्य के उन शहरों में अपना प्रतिनिधि प्रतिनियुक्त करना चाहिए जिन शहरों में झारखंड के मजदूर फंसे हुए हैं. प्रशासन व सरकार से तालमेल कर ही इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.

श्री मरांडी ने कहा कि राज्य सरकार को तुरंत एक चार्टर्ड प्लेन के जरिये झारखंड से अधिकारियों को विभिन्न राज्यों में भेजना चाहिए. ताकि वे वहां मजदूरों की समस्याओं को समझकर उसका निदान कर सके. श्री मरांडी ने कहा कि 25 मार्च से अब तक लगभग 27-28 हजार कॉल रिसीव किये गये हैं. उनकी समस्याओं को सुनकर संबंधित राज्य के मुख्य सचिव, श्रम आयुक्त को तो पत्र लिखा ही गया, इसके अलावा भाजपा ने राज्यों में जिन लोगों को को-ऑर्डिनेटर नियुक्त किया है, उन्हें भी पूरी सूची के साथ राहत के लिए सूचित किया गया है. कई स्थानों पर भाजपा के को-ऑर्डिनेटर द्वारा मदद का भी काम किया गया. साथ ही कई वैसे लोगों ने भी मदद की है जिनसे उनके व्यक्तिगत संबंध रहे हैं. हालांकि अभी भी समस्याएं हैं. वर्तमान में भी लगभग 20 प्रतिशत फोन कॉल्स आ रहे हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. सरकार को इस मामले पर पहल करनी चाहिए.

राहत कैंपों की सूची जारी करे सरकार : अन्नपूर्णा देवी चित्र परिचय : 35. अन्नपूर्णा देवी, सांसद, कोडरमा कोडरमा सांसद अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि प्रवासी झारखंड मजदूरों की समस्याएं और विकराल होती जा रही है. विभिन्न राज्यों से लगातार शिकायतें मिल रही है कि उन्हें रहने, खाने की समस्याएं हो रही है. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार इस मामले को गंभीरता से ले. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिखकर उन्होंने कहा है कि सरकार द्वारा यह बताया गया है कि 7,049 जगहों पर फंसे 4,10,388 मजदूरों के खाने एवं रहने की व्यवस्था की गयी है. साथ ही विज्ञप्ति में यह भी जानकारी दी गयी है कि राज्य में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार द्वारा 679 राहत कैंप चलाये जा रहे हैं.

मेरे द्वारा भी राज्य सरकार को विभिन्न राज्यों में फंसे हजारों प्रवासी झारखंडी मजदूरों की सूची उपलब्ध करायी गयी है. अभी भी विभिन्न राज्यों से मुझे लगातार प्रवासी मजदूरों का फोन आ रहा है और वे आवश्यक सुविधाओं से वंचित होने की बात कह रहे हैं. पत्र में उन्होंने अनुरोध किया है कि झारखंड से बाहर किन-किन जगहों पर झारखंडी मजदूरों के खाने और रहने की व्यवस्था की गयी है तथा राज्य में प्रवासी मजदूरों के लिए कहां-कहां राहत कैंप चलाये जा रहे हैं, इसकी सूची राज्य सरकार सार्वजनिक करे. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार प्रवासी मजदूरों को बचाने के लिए अविलंब कदम उठाये और उनके रहने व खाने की व्यवस्था करे. विभिन्न राज्यों के मजदूर रोजी-रोटी छीन जाने के कारण काफी परेशान हैं.

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