Loading election data...

Giridih News :हर बार पलायन बनता है मुद्दा, फिर भी रोजगार देने की ठोस पहल नहीं

Giridih News :जिले में रोजगार के अभाव में पलायन एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. हर चुनाव में राजनीतिक दल इस मुद्दे का इस्तेमाल भी अपने-अपने तरीके से करते हैं, लेकिन कोई नतीजा निकल नहीं पाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | November 11, 2024 11:03 PM

राज्य में सबसे अधिक पलायन गिरिडीह जिले से होता है

सरकारी रिपोर्ट में गिरिडीह जिले के प्रवासी मजदूरों की संख्या है सबसे अधिक

जिले में रोजगार के अभाव में पलायन एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. हर चुनाव में राजनीतिक दल इस मुद्दे का इस्तेमाल भी अपने-अपने तरीके से करते हैं, लेकिन कोई नतीजा निकल नहीं पाता है. प्रवासी मजदूरों की सुविधाओं को लेकर पक्ष और विपक्ष में खींचतान होता रहता है, लेकिन मजदूरों को इसी जिले में रोजगार मिल जाये, इसकी ठोस पहल अभी तक नहीं हुई. जिले में कोरोना काल में आधिकारिक तौर पर आंकड़ें संग्रह किये गये थे. इन आंकड़ों के मुताबिक लगभग 10,40,560 प्रवासी मजदूरों ने राज्य सरकार से संपर्क किया था और सरकार ने सूची तैयार कर महानगरों के साथ-साथ विदेशों से भी प्रवासी झारखंडी मजदूरों को लाने की तैयारी की थी. इसी क्रम में यह भी बात सामने आयी कि गिरिडीह जिले में प्रवासी मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है. गिरिडीह जिले में 13 प्रखंड हैं, जो छह विधानसभा क्षेत्र में बंटे हुए हैं. सभी विधानसभा क्षेत्र के लिए यह एक गंभीर समस्या है. लोगों का मानना है कि रोजगार का वादा कर सरकार बनती है, लेकिन ईमानदारी से पहल नहीं होती है. इसलिए गिरिडीह जिले में संभावना रहते हुए भी कई उद्योग धंधे मरनासन्न स्थिति में पहुंचते जा रहे हैं.

कोविड के दौरान गिरिडीह जिले के लिए चली थी कई ट्रेनें

प्रवासी मजदूरों की संख्या गिरिडीह जिले में सबसे ज्यादा रहने के कारण यहां के लिए सबसे ज्यादा स्पेशल ट्रेनें चली थीं. उसी दौरान गिरिडीह जिला प्रवासी मजदूरों को लेकर सुर्खियों में भी आया. अहम बात यह है कि गिरिडीह जिले के कई बड़े-बड़े नेताओं ने प्रवासी मजदूरों को वोट बैंक बनाने के लिए महानगरों में सम्मेलन भी कराया. इन सम्मेलनों में प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और सुविधाओं को लेकर बयानबाजी भी की गयी. वहां की सरकारों की आलोचनाएं भी हुई, लेकिन किसी ने इस पलायन को रोकने के लिए अपनी नीति को स्पष्ट नहीं की.

बिचौलियों के कारण नहीं हो पाता है रजिस्ट्रेशन

जब कोरोना काल में राज्य सरकार को जानकारी मिली कि विदेशों के साथ-साथ देश के महानगरों में काम करने वाले मजदूरों की सबसे ज्यादा संख्या झारखंड से है तो सरकार की कान खड़ी हो गयी. सही-सही आंकड़ां के लिए राज्य सरकार ने प्रवासी मजदूरों के निबंधन के लिए श्रमाधान पोर्टल बनवाया और श्रम विभाग के अधिकारियों ने कंट्रोल रूम बनाकर निबंधन करना भी शुरू किया. पोर्टल के अनुसार राज्य भर में लगभग 1,70,800 मजदूरों का निबंधन अप्रैल, 2024 तक हो पाया. इस निबंधन सूची में भी सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर गिरिडीह जिले के थे. उस दौरान भी राज्य में ही रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कई घोषणाएं की, लेकिन तीन साल बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया. आज भी जिले के लिए यह बड़ी समस्या बनी हुई है.

उद्योग धंधे को नहीं बचाया गया तो बढ़ेगी और बेरोजगारी, होगा पलायन

गिरिडीह जिले में कई उद्योग धंधे ऐसे हैं जिसकी चमक दूर-दूर से भी देखी गयी है. माइका, कोयला, लोहा और रेशम उद्योग की चर्चा देश-विदेश तक होती रही है. वर्ष 1980 के पूर्व तक माइका की मांग उच्च गुणवत्ता के कारण विदेशों तक रही है. कोडरमा, गिरिडीह और हजारीबाग के इलाके को माइका की राजधानी कहा जाता था. इसी प्रकार कोयले की गुणवत्ता के कारण गिरिडीह की सीसीएल इकाई की भी अपनी एक अलग पहचान रही है. हाल के दिनों में लोहा, रेशम उद्योग के साथ-साथ राइस मिलों के उत्थान की असीम संभावनाएं हैं. लेकिन, सरकारों में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं देखी गयी. फलस्वरूप मरनासन्न होते उद्योग धंधों की स्थिति और भी खराब होती जा रही है. यदि इन उद्योग धंधों को समय रहते नहीं बचाया गया तो जिले में बेरोजगारी बढ़ेगी और पलायन की समस्या और भी विकराल हो जायेगी.

उद्योग बचाने की कोई पहल नहीं : निर्मल झुनझुनवाला

गिरिडीह डिस्ट्रिक्ट चेंबर ऑफ कॉमर्स के निर्मल झुनझुनवाला का कहना है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार माइका उद्योग को बचाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं हुई. बताया कि फरवरी 2015 में केंद्र सरकार ने 31 खनिजों को मेजर से माइनर मिनरल की सूची में शामिल किया. इस सूची में माइका भी है. माइका खनन के लिए आंध्र प्रदेश, तेलांगना, राजस्थान समेत कई राज्य सरकारों ने अधिसूचना जारी की. लेकिन, झारखंड में कोई पहल नहीं हुई. वर्तमान में राजस्थान में कई खदानें संचालित हैं. स्थिति यह है कि कई व्यवसायी गिरिडीह से राजस्थान चले गये और वहां माइका से संबंधित फैक्ट्रियां खोल लीं. गिरिडीह जिले में 90 प्रतिशत माइका वन क्षेत्र में है. गैर वाणिकी कार्य के लिए केंद्र सरकार को अनुमति देनी है और राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव भेजा जाना है. लेकिन, राज्य सरकार ने अभी तक प्रस्ताव ही नहीं भेजा.

माइका की आज भी है मांग :

श्री झुनझुनवाला ने कहा कि माइका की डिमांड आज भी है. माइका यहां रहते हुए आज भी विदेशों से इसे मंगाया जा रहा है. किसी जमाने में भारत से माइका का निर्यात किया जाता था. सरकार की उदासीनता के कारण निर्यात करने के बजाय माइका का आयात किया जा रहा है. अफ्रीका से और तंजानिया से माइका मंगाया जाता है और फिर प्रोसेस कर उसे विदेश भेजा जाता है. रंग, पाउडर, टाइल्स समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स यंत्र में इसका इस्तेमाल होता है, जिसके कारण माइका का डिमांड है.

चोरी-छिपे चलता है धंधा :

उन्होंने कहा कि राज्य में कई राजनीतिक दलों की सरकारें बनी है. सरकार बनने के बाद उद्योग धंधों को बचाने की पहल भी शुरू होती है. लेकिन ब्यूरोक्रेट ऐसा नहीं चाहते. माइका उद्योग चोरी-छिपे आज भी चलता है. इससे कहीं न कहीं ब्यूरोक्रेट को लाभ होता है, इसलिए वह नहीं चाहते हैं कि माइका उद्योग को वैधानिक दर्जा मिले. उनके हस्तक्षेप से मामला ठंडे बस्ते में है. माइका उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार अंतिम निर्णय लेने की स्थिति में आयी, तो इस मामले को एटोमिक एलिमेंट के नाम से उलझा दिया गया. हर चीज के लिए नेता या जनप्रतिनिधि दोषी नहीं है. ब्यूरोक्रेट चाहते हैं कि अवैध रूप से धंधा चलता रहे.

डीवीसी पावर सब स्टेशन स्थापित हो, तो उद्योगों को मिलेगी निर्बाध बिजली :

श्री झुनझुनवाला ने कहा कि यदि डीवीसी धनबाद-गिरिडीह की सीमा पर ताराटांड़ या टुंडी, बेंगाबाद, बगोदर व देवरी के इलाके में पावर सब स्टेशन स्थापित करे, तो उद्योग धंधे बढ़ सकते हैं. निर्बाध बिजली मिलने से ही व्यवसायी अपने धंधे में निवेश करेंगे और उद्योग स्थापित होगा. बरही में बिजली की सुविधा रहने के कारण ही 150 से भी ज्यादा इंडस्ट्रीज वहां स्थापित हुई है. डीवीसी का पावर सब स्टेशन बनने से जहां व्यवसायियों को निर्बाध बिजली मिलेगी, वहीं बिजली सस्ती भी होगी. गिरिडीह जिले में क्वार्टज पत्थर काफी मात्रा में है. इससे टाइल्स आदि बनाये जाते हैं. लेकिन, गिरिडीह में इससे संबंधित इंडस्ट्रीज नहीं है. रेशम भी यहां उपलब्ध है, लेकिन उद्योग नहीं है. सीसीएल की गिरिडीह में स्थित ओपेनकास्ट परियोजना वर्षों से बंद पड़ी हुई है, जिसे चालू करने के प्रति सरकार में गंभीरता नहीं दिखा रही है.

(राकेश सिन्हा, गिरिडीह)

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version