अतीत के झरोखे से सरिया की बंगाली कोठियां 13
स्वीडन में बैरिस्टर थे पन्नालाल के पौत्र अमरनाथ वर्ष 1915 में राजधनवार रोड में छह बीघा जमीन खरीद ‘मायापुरी कोठी’ बंगला का कराया निर्माण
सरिया.
20वीं सदी का शुरुआती वर्ष सरिया जैसे छोटे कस्बे के लिए न सिर्फ स्वर्णिम रहा, बल्कि तत्कालीन बिहार का यह इलाका मिनी कोलकाता के रूप में विख्यात हुआ. बंगाल के सैकड़ों संभ्रांत परिवार तथा उच्च पदस्थ लोग सरिया में जमीन लेकर अपना बंगला बनाकर रहने लगे थे. इसी दौरान वर्ष 1915 ई में कोलकाता के प्रसिद्ध वकील रहे पन्नालाल मलिक ने राजधनवार रोड सरिया में उस समय के एक जमींदार परिवार से छह बीघा जमीन खरीदी. यहीं पर उन्होंने ‘मायापुरी कोठी’ नाम से एक भव्य बंगला बनवाया.चिकित्सकों की सलाह पर आते थे लोग
सरिया में सुव्यवस्थित ठिकाना बन जाने के कारण मल्लिक परिवार दुर्गा पूजा (अक्तूबर) तथा जनवरी-फरवरी में यहां घूमने के लिए आते थे. पन्नालाल के प्रपौत्र अभिजीत मल्लिक बताते हैं कि किसी की भी तबीयत खराब होने पर कोलकाता के चिकित्सक हवा बदलने की सलाह देते थे. गिरिडीह जिले की आबोहवा स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होने के कारण उनके पूर्वजों ने भी सरिया में अपना बंगला बनवाया था. बंगला के चारों ओर विभिन्न प्रकार के फूलों की क्यारियां बनायी गयी थीं. फलदार वृक्ष तथा इमारती पौधे लगाये गये थे. वह उद्यान आज भी मौजूद हैं.
आगंतुकों का स्वागत करती है खुशबू
मायापुरी कोठी में टगर, गुलाब, रंगन, चंपा, कटहरी चंपा, बेली, कड़वी, शिवली, कैना, वैजयंती, डलिया, सर्पगंधा, रजनीगंधा, रातरानी, उडहूल, कंचन, लिली, अपराजिता, नयन तारा, माधवी लता, बोगेनवेलिया, जिनिया, कामिनी जबकि फलदार वृक्षों में आम, इमली, जामुन, बेल, कटहल, अमरूद, सहजन, जमरूल,चालता, पपीता, महुआ, शरीफा, नारियल, नींबू, बेर, केंदू जैसे कई अन्य पेड़ आज भी मौजूद हैं. इमारती लकड़ियों में यूकेलिप्टस, शीशम, गम्हार, सेमल, सागवान, पलाश औषधीय पौधों में तुलसी, कालमेघ, कड़ी पत्ता, हड़ जोड़, पथलचट्टा, लेमनग्रास, तेजपत्ता, घृतकुआंर आदि के पौधे आज भी देखने को मिलते हैं. बंगले के मुख्य दरवाजे पर माधवी लता बंगले में प्रवेश करने वालों का स्वागत अपनी भीनी खुशबू से नहलाकर करती थी.
चार पुत्र थे पन्नालाल के :
अभिजीत मल्लिक ने अपने वकील प्रपितामह पन्नालाल की खासियत बतायी कि वकालत के अपने पेशे में वह एक भी मुकदमा नहीं हारे. पन्नालाल मलिक के चार पुत्र थे और सभी अलग-अलग क्षेत्र में थे. उन्हीं में से एक पुत्र के पुत्र अमरनाथ मल्लिक ने अपने दादा की धरोहर (वकालत) को संभाला. बाद में वह स्वीडेन में बैरिस्टर बने. आज उनके वंशज नहीं हैं, परंतु उनकी धरोहर के रूप में सरिया में मायापुरी बंगला आज भी कायम है.परिवार के लोग आज भी आते हैं सरिया
उन्होंने बताया कि कुछ स्थानीय जमीन कारोबारी वर्षों पूर्व उनपर बंगले को बेचने का दबाव बनाने लगे थे. जमीन संबंधी कुछ विवाद भी हुआ था. बताया कि आज भी उनके परिवार के लोग छुट्टियां बिताने यहां आते हैं. हवा-पानी बदलने तथा ऐशो-आराम के लिए उनके परिवार ने इस बंगले को सहेज कर रखा है. बंगले की हिफाजत तथा रंग-रोगन परिवार के लोग समय-समय पर करते रहते हैं. केयरटेकर बाबूलाल यादव व उनके परिवार कोठी में ही रहते हैं.(लक्ष्मीनारायण पांडेय)
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