नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व आज से

लोक आस्था का महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अुनष्ठान की शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ होगी.

By Prabhat Khabar News Desk | April 11, 2024 10:59 PM

गिरिडीह. लोक आस्था का महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अुनष्ठान की शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ होगी. शहर से लेकर गांव तक व्रतियों ने नहाय-खाय के साथ व्रत की तैयारी लगभग पूरी कर ली है. शहरी क्षेत्र के घाटों पर शुक्रवार को छठ व्रर्ती व श्रद्धालु स्नान करेंगे. स्नान करने के बाद व्रर्ती शुद्ध पानी से नहाय-खाय का प्रसाद तैयार करेंगे. दिन में व्रती महिलाएं अपने-अपने घरों में गेहूं को धोकर सुखायेंगी. बता दें कि चार दिनों तक चलने वाले इस आस्था के महापर्व को मनोकमना का पर्व भी कहा जाता है. खास तौर पर चैती छठ का काफी महत्व होता है. इसके महत्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती है. इसलिए शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है. चैती छठ को लेकर शहर के अरगाघाट, शास्त्रीनगर, पचंबा बुढवा आहर समेत विभिन्न छठ घाटों में नगर निगम सफाई करवा रहा है.

नहाय-खाय का प्रसाद लेने व्रतियों के घर पहुंचेंगे श्रद्धा

शुक्रवार को व्रतियों व उनके घरवाल घर की साफ-सफाई करेंगे. नदी, तालाब, चापाकल में स्नान कर शुद्ध साफ वस्त्र पहन कर व्रती महिलाओं ने चने की दाल, अरवा चावल व कद्दू की सब्जी बनायेंगी. इसके बाद गणेश जी व सूर्य भगवान को भोग लगाकर व्रर्ती प्रसाद ग्रहण करेंगी. नहाय-खाय का प्रसाद ग्रहण करने के लिए शुक्रवार को छठ व्रतियों के यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा.

खरना कल, दिनभर का निर्जला उपवास रखेगी व्रती

शनिवार को व्रत के दूसरे दिन खरना में व्रती महिलाएं दिन भर का निर्जला उपवास रखेंगी. शाम को भगवान का भोग लगाकर भोजन करेंगी.इस दौरान किसी भी तरह का आवाज आने पर व्रती खाना छोड़ देती हैं. खरना वाले दिन खास तौर पर ख्याल रखा जाता है कि व्रती के कानों तक का शोर ना पहुंचे. खरना के दिन खीर का भोग लगाने का रिवाज है.

12 अप्रैल शुक्रवार : नहाय-खाय

नहाय-खाय पर व्रती पवित्र जल से स्नान कर घर में शुद्ध भोजन तैयार करती है. ईश्वर की आराधना के बाद कद्दू-भात के रूप में खाना ग्रहण करती हैं. इसके बाद लोग भी प्रसाद ग्रहण करते हैं.

13 अप्रैल शनिवार : खरना

सुबह से उपवास रहने के बाद शाम में धरती की पूजा कर खीर-रोटी का भोग चढ़ाया जायेगा. व्रती भोग को प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करेंगी. इसके बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होगा.

14 अप्रैल रविवार : अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य

इस दिन व्रती तालाब, नदियों व पोखर में शाम में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी. रात में पांच गन्ने से कवर कोसी सजा कर छठी मइया के गीत गाने की भी परंपरा है.

15 अप्रैल सोमवार : उदीयमान सूर्य को अर्घ्य

इस दिन व्रती उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगी. जल के अलावा दूध से भी अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा है. घाटों से लौटकर व्रती घरों में पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण कर पारण करेंगी.

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