सरिया में गुलाब कोठी के नाम से मशहूर कुमार आश्रम में आजादी के दीवाने बनाया करते थे योजना
कुमार आश्रम गुलाब कोठी के नाम से मशहूर है. गिरिडीह जिले के सरिया स्थित इस बंगले में आजादी के दीवाने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी योजना बनाया करते थे.
सरिया (गिरिडीह), लक्ष्मीनारायण पांडेय : गिरिडीह जिले के सरिया में बनायी गयी बंगाली कोठियां यूं ही मशहूर नहीं थीं. ये कोठियां शानो-शौकत की गवाह रही हैं. वक्त के साथ भले ही ये बदहाल हो गयीं या इनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है, पर अतीत स्वर्णिम रहा है.
कुमार आश्रम में अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाते थे स्वतंत्रता सेनानी
ऐसी ही एक कोठी कुमार आश्रम है. गुलाब कोठी के नाम से मशहूर इस बंगले में आजादी के दीवाने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी योजना बनाया करते थे. कोठी का निर्माण बंगाल के मेयर रहे हेमचंद्र नस्कर ने कराया था. नस्कर और उनका परिवार गर्मी की छुट्टियां बिताने या ठंड के महीने में यहां घूमने आता था. स्थानीय लोगों के हाथों बिक चुकी इस कोठी में इसका स्वर्णिम अतीत दफन है.
तालाब और बगान आज भी हैं मौजूद
सरिया की हवा में तैरते किस्सों और किंवदंतियों की गवाही कहती है कि वर्ष 1930-32 के बीच पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मेयर हेमचंद्र नस्कर द्वारा निर्मित कुमार आश्रम कोठी. नस्कर ने हजारीबाग रोड स्टेशन (सरिया) से महज 100 मीटर दूर पूरब की ओर चार एकड़ 21 डिसमिल जमीन की व्यवस्था की. इसके बीच सुंदर बंगला बनवाया. चहारदीवारी के अंदर ही सुंदर-सा तालाब खुदवाया. शौकीन नस्कर ने इस तालाब में मछलीपालन भी किया. उस परिसर में आम, इमली, अमरूद, बेर, गुलाब जामुन, लीची, कटहल, जामुन, बेल जैसे कई फलदार व इमारती पेड़ लगवाये, जो आज भी मौजूद हैं.
फूलों की क्यारियों से सजी थी कोठी
बंगले की सुंदरता के लिए गेंदा, हरसिंगार, सदाबहार, बेली, चमेली, जूही, रात रानी, रजनीगंधा, केवड़ा, डहेलिया, पारिजात, कामिनी, गुलाब आदि फूलों की क्यारियां लगवायी गयीं. इस परिसर में कई प्रजातियों के गुलाब लगाये गये थे. फूलों की क्यारी में खिले गुलाब बंगले की सुंदरता में चार चांद लगाते थे. इसी कारण से कुमार आश्रम को लोग गुलाब कोठी भी कहने लगे. इस उद्यान को देखने दूर-दूर से लोग आते थे. यहां से फूल कोलकाता भेजे जाते थे. कोठी के मालिक हेमचंद्र नस्कर अपने परिजनों के साथ यहां छुट्टियां बिताने आया करते थे.
नस्कर परिवार यहां बिताया करता था छुट्टियां
बताया जाता है कि आजादी की लड़ाई में इस परिवार ने अहम भूमिका निभायी. नस्कर के पुत्र अर्धेंदु शेखर नस्कर, पूर्णेंदु शेखर नस्कर, विमलेंदु शेखर नस्कर व अमरेंद्र शेखर नस्कर आजादी के अन्य दीवानों के साथ सरिया स्थित अपने बंगले में रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध योजना बनाया करते थे. आजादी के बाद पूर्णेंदु शेखर नस्कर 1952 से 1967 तक लगातार तीन बार लोकसभा के सांसद रहे. उनके अग्रज अर्धेंदु शेखर नस्कर 1962 में विधानसभा चुनाव में मगराहाट (पश्चिम) से कांग्रेस के विधायक बने.
नस्कर परिवार के आने से गुलजार हो जाता था सरिया
पूर्णेंदु शेखर नस्कर, अर्धेंदु शेखर व उनके परिवार के अन्य सदस्य जब छुट्टियां बिताने सरिया पहुंचते थे, तो मानो बाजार की मुरझाई कलियां भी खिल जाती थीं. बाजार हो या जंगल, हर जगह चहल-पहल व रौनक छा जाती थी. परिवार के सदस्य सुबह बाजार का आनंद लेने निकलते थे. प्रकृति प्रेमी होने के नाते वे शाम को सैर के लिए जंगल का रुख करते थे. बदली परिस्थितियों में इस परंपरा का निर्वाह मुश्किल होता गया, तो परिजनों ने कोठी बेच दी. फिलहाल इस बंगले का मालिक टेकलाल मंडल आज भी उस बंगले के अस्तित्व को संभाल कर रखे हैं. यहां कौशल विकास केंद्र संचालित हो रहा है.