गांडेय विधानसभा: 1977 में साइकिल से प्रचार कर लक्ष्मण स्वर्णकार ने जीता था चुनाव, 10 हजार खर्च कर बने थे विधायक
1977 में साइकिल से प्रचार कर लक्ष्मण स्वर्णकार ने गांडेय विधानसभा का चुनाव जीता था. इस दौरान उन्होंने 10 हजार खर्च किए थे और विधायक बन गए थे.
गिरिडीह, सूरज सिन्हा: वर्तमान दौर में चुनाव प्रचार हाइटेक हो गया है. चुनाव लड़ना महंगा होने के साथ-साथ इसमें तामझाम बढ़ गया है. नेताजी हेलीकॉप्टर व वाहनों के काफिला के साथ क्षेत्र का दौरा कर चुनाव प्रचार करते हैं. झंडा, होर्डिंग व बैनर का भी खूब इस्तेमाल होता है. लेकिन, आज से लगभग साढ़े चार दशक पहले साधारण तरीके से चुनाव प्रचार किया जाता था. बावजूद पार्टियों के कार्यकर्ताओं व जनता में चुनाव के प्रति उत्साह रहता था. लोग बढ़-चढ़कर मताधिकार का प्रयोग करते थे. बात वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव की है. इस वर्ष गांडेय विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया और यहां पर पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ. 1977 के विस चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी लक्ष्मण स्वर्णकार ने साइकिल से चुनाव प्रचार कर जीत हासिल की थी. अहम बात यह है कि महज दस हजार रुपये खर्च कर लक्ष्मण स्वर्णकार गांडेय विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक बने थे.
चुनाव में दस हजार खर्च कर बन गए थे विधायक
लक्ष्मण स्वर्णकार को इस चुनाव में श्री स्वर्णकार को 12692 वोट प्राप्त हुआ था. दूसरे स्थान पर इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी मो. मुस्लिम अंसारी रहे थे जिन्हें कुल 8379 वोट मिला था. उन दिनों के चुनाव को याद करते हुए लक्ष्मण स्वर्णकार कहते हैं कि वर्ष 1977 में गांडेय विधानसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने पर वह यहां से पहली बार चुनाव लड़े और जीत हासिल की. वह गरीब परिवार से थे. उनके पिता स्व गनौरी स्वर्णकार लालटेन की मरम्मत करते थे. चुनाव लड़ने से पहले वह जेपी आंदोलन में जेल भी जा चुके थे. जेल से निकलने के बाद जनता पार्टी ने काफी उम्मीद से उन्हें गांडेय विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया. इसमें पार्टी के डा. स्वामीनाथ तिवारी, कैलाशपति मिश्र व कमलापति राम तर्वे की अहम भूमिका थी. उस वक्त कमलापति राम तर्वे ने चुनाव लड़ने के लिए आर्थिक सहयोग किया था. लक्ष्मण स्वर्णकार कहते हैं कि चुनाव प्रचार में महज दस हजार रुपये खर्च हुए थे.
रात में कार्यकर्ता के घर ठहरते थे
विधानसभा चुनाव को लेकर वह कहते हैं कि गांडेय विधानसभा क्षेत्र के गांवों में वह साइकिल से घूम-घूमकर चुनाव प्रचार करते थे. उनके साथ कुछ लोग और होते थे. प्रचार अभियान के दौरान जहां रात हुई, वहीं किसी कार्यकर्ता के घर पर ठहर जाते. वहीं पर खाना खाते थे. साथ ही भजन-कीर्तन भी होता था. सुबह पुन: उठकर प्रचार अभियान में जुट जाते थे. लंबी दूरी तय करते थे और सबों से मिलते थे. बताया कि 70 के दशक में वह ज्वलंत मुद्दों समेत जनता के अधिकार की लड़ाई लड़ते थे. इसलिए जनता उन्हें भली-भांति जान रही थी. कई बार शिबू सोरेन की नीतियों के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलन किया था.
छोटी-छोटी सभा होती थी
लक्ष्मण स्वर्णकार कहते हैं कि वर्ष 1977 के विस चुनाव में बड़ी सभा नहीं बल्कि छोटी-छोटी सभा होती थी. उस समय कैलाशपति मिश्र और डॉ स्वामीनाथ तिवारी उनके पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए यहां आये थे. उस दौर में जनसंपर्क पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था. प्रचार अभियान में कोई भी खर्चा नहीं मांगता था, बल्कि, सहयोग करने की बात कहता था. उस वक्त सेवा भाव से नेता बनते थे. समर्पण के साथ जनता खड़ी रहती थी. तब के चुनाव में महिलाएं काफी कम संख्या में वोट देने के लिए घरों से बाहर निकलती थीं. वर्तमान में महिलाएं बढ़-चढ़कर मताधिकार का प्रयोग करती है. यह अच्छी बात है. कहा कि वर्ष 1977 के बाद वह 1995 के गांडेय विस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की टिकट से जीत हासिल की थी.
अब निष्ठा में आयी है कमी
पहले जिस तरह से जनता और नेता के बीच एक दूसरे के प्रति निष्ठा होती थी, उसमें अब कमी आयी है. इसके पीछे कई कारण हैं. माहौल में बदलाव आया है. पूर्व की भांति उत्साह नहीं दिखता है. निश्चित रूप से इस पर सोचने की जरूरत है. उन्होंने सभी से लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़-चढ़कर मतदान करने की अपील की.