भाकपा माले नेता इबनुल हसन बसरु की 15वीं बरसी उनके पैतृक गांव बदडीहा ( मिर्जागंज) में रविवार को मनायी जायेगी. कार्यक्रम की सफलता को ले भाकपा माले नेताओं ने जमुआ विधानसभा क्षेत्र की सभी 69 पंचायतों में जनसंपर्क अभियान चलाया है. मालूम रहे कि 29 सितंबर 2009 को उनका निधन हुआ था. पार्टी के प्रखंड सचिव मनोव्वर हसन बंटी, विस नेता अशोक पासवान, इंनौस के जिला उपाध्यक्ष मो. असगर अली ने बताया कि स्व बसरु का जन्म 1944 को गोड्डा के असनबनी में हुआ था. उनके पिता सैयद इजहार हुसैन लंगटा बाबा हाइस्कूल में शिक्षक थे. उनकी प्रारंभिक से लेकर हाइस्कूल तक की शिक्षा मिर्जागंज में हुई. इंटर व ग्रेजुएशन पटना कॉलेज से की. उन्होंने राजनीतिक की शुरुआत वर्ष 1975 में की और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के सदस्य बने. गिरिडीह के विधायक चतुरानंद मिश्र उनके राजनीतिक गुरु थे. जमुआ में उन दिनों कांग्रेस का वर्चस्व था. स्व. बसरु ने ही बलदेव हाजरा को पार्टी से जोड़ा और उन्हें 1980 में पहली बार चुनाव लड़ाया. 1980 में उन्होंने सामंतियों से बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवा दान में भूमि दिलायी. दुधवा टोला उन्हीं का बसाया हुआ है. गरीब-गुरबों, शोषति- पीड़ितों की वह आवाज थे. उन्हें राजनीतिक का चाणक्य भी कहा जाता था. वर्ष 1985 में उनके नेतृत्व में पहली बार सीपीआई से बलदेव हाजरा विधानसभा के लिए चुने गये. स्व बसरु जिले में लगातार जनमुद्दों को लेकर संघर्ष जारी रखा. इसका नतीजा यह निकला की जमुआ व गिरिडीह विधानसभा सीट पर लाल झंडा का कब्जा हुआ. वर्ष 2000 चुनाव में सत्यनारायण दास को विधानसभा चुनाव में खड़ा किया, लेकिन परिणाम पक्ष में नहीं आने पर स्व बसरु वर्ष 2001 में सीपीआई को अलविदा कह भाकपा माले में शामिल हो गये. उन्होंने महेंद्र सिंह के साथ मिलकर पूरे गिरिडीह जिला में पार्टी का विस्तार किया.
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