16 अक्तूबर को शुरू होगी पूजा, 18 को होगा प्रतिमा विसर्जन
गांडेय-बेंगाबाद के हृदयस्थली महेशमुंडा में ब्रिटिश काल से ही लक्खी पूजा हो रही है. तीन दिवसीय लक्खी पूजा व मेला सांप्रदायिक सौहार्द्र का मिसाल है. यहां दोनों समुदाय के लोग मिलकर लक्खी पूजा मनाते आ रहे हैं. जानकारी के अनुसार आजादी के पूर्व वर्ष 1942 में बंधाबाद के यदुनंदन गोस्वामी ने सर्वप्रथम बंधाबाद में लक्खी पूजा की शुरुआत की थी. वर्ष 1947 से इस पूजा व मेला को महेशमुंडा स्टेशन मैदान में स्थानांतरित किया गया. यहां यदुनंदन गोस्वामी, बेनी राणा, साखो मियां आदि के सहयोग से पूजा व मेला का दायरा बढ़ गया. इसके बाद यहां पदस्थापित स्टेशन प्रबंधक पदेन अध्यक्ष मनोनीत हुए और यह पूजा भव्य रूप लेने लगा. महेशमुंडा स्टेशन मेला के नाम से विख्यात लक्खी पूजा देखने गिरिडीह, मधुपुर, जगदीशपुर, फुलजोरी, आसनसोल तक लोग पहुंचते थे.2019 में बदल गया स्वरूप
कोडरमा-गिरिडीह रेल लाइन निर्माण कार्य शुरू होने के बाद वर्ष 2019 में रेल विभाग ने स्टेशन परिसर में सिर्फ पूजा की अनुमति दी. यहां मेले के आयोजन पर रोक के बाद जिप सदस्य धनंजय राणा व पूजा सह मेला के संस्थापक स्व. यदुनंदन गोस्वामी के पुत्र विजय गोस्वामी आदि के नेतृत्व में पूजा व मेला को पुनः बंधाबाद-रघेडीह स्थानांतरित कर दिया. इस वर्ष 16 अक्तूबर से पूजा शुरू होगी. इस दिन जागरण भी होगा. 18 अक्तूबर को प्रतिमा विसर्जित की जायेगा. इसकी तैयारी अंतिम चरण में है. पूजा व मेला को सफल बनाने के लिए समिति अध्यक्ष धनंजय राणा, सचिव विजय गोस्वामी समेत अन्य सक्रिय हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है