वर्षाकालीन चतुर्मास की शुरुआत व जगह-जगह धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन से मधुबन गुलजार हो गया है. विभिन्न संस्थाओं में विधिवत कलश स्थापना के साथ साधु-संतों के सानिध्य में श्रद्धालु भक्ति भावना में लीन हैं. संतों के प्रवचन के माध्यम से श्रावक श्राविका नित प्रतिदिन साधना आराधना के अलावा धर्म का मर्म आत्मसात करेंगे. बताया जाता है कि जैन धर्म के चौबीस में से बीस तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि सिद्धक्षेत्र सम्मेद शिखर जी मधुबन में एक बार फिर धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन से श्रद्धालु भक्ति भाव में लीन हो गए हैं. श्वेतांबर संप्रदाय के साधु संत वर्षाकालीन चतुर्मास को लेकर कलश स्थापना कर तप साधना में जुट गए है. वहीं दिगम्बर संप्रदाय के साधु संत का चातुर्मासिक कलश स्थापन का दौर चालू हो गया है. चातुर्मास यानी वर्षा ऋतु के चार महीने साधु संत व श्रावक एक ही स्थान पर रहकर धर्म का ज्ञान अर्जित करेंगे. साधु संतों के द्वारा श्रावकों को जैन धर्म का महत्व व दिनचर्या बताया जायेगा. श्रावक श्राविका भी लगातार चार महीने साधु संतों के सानिध्य में नित प्रतिदिन पूजा आराधना तप व साधु संतों के प्रवचन को आत्मसात करेंगे. कहते हैं कि वर्षा ऋतु में अनगिनत जीव जंतु का जन्म होता है. साधु संतों के विचरण के दौरान जीव हत्या न हो इसलिए जैन साधु संत एक ही जगह रहकर चार महीने बिताते हैं. साधु संत एक ही जगह रहकर न केवल साधना आराधना करते हैं, बल्कि श्रावकों को धर्म से जुड़े संस्कार तथा ज्ञान भी बांटते है. चार महीने एक ही जगह रहने से जैन अनुयायियों को साधु संतों का सानिध्य मिल जाता है. श्रद्धालु साधु संतों के दिनचर्या के साथ धर्म ज्ञान व संस्कार आत्मसात करते हैं.
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