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आस्था का केंद्र है मंझलाडीह मंदिर, 1970 से हो रही चैती दुर्गापूजा

बगोदर प्रखंड के मंझलाडीह में वासंतिक दुर्गोत्सव का इतिहास काफी पुराना है. यहां पर वर्ष 1970 से पूजा शुरू हुई. 54 सालों से पूरे विधि-विधान के पूजा हो रही है.

बगोदर (गिरिडीह). बगोदर प्रखंड के मंझलाडीह में वासंतिक दुर्गोत्सव का इतिहास काफी पुराना हैं. यहां पर वर्ष 1970 से पूजा शुरू हुई. 54 सालों से पूरे विधि-विधान के पूजा हो रही है. वर्ष 1970 से पहले बगोदर में चैती दुर्गा पूजा नहीं होती थी. गांव के लोग पूजा करने डुमरी व हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ जाते थे. लोगों को गांव में पूजा की कमी खलती थी. ग्रामीणों ने बैठक कर तिरपाल घेर व प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की. धीरे-धीरे गांव के लोगों का सहयोग बढ़ता है. पूजा शुरू कराने में स्व. ज्ञानी मिस्त्री, स्व. रेशो मिस्त्री, स्व. रीतलाल नायक, स्व. त्रिभुवन मिस्त्री, स्व. चिंतामन मिस्त्री, स्व. शिवलाल मिस्त्री, स्व. माधो साव, स्व. परमेश्वर राय, तोखो साव, साधु साव ने शुरू करायी थी. वर्तमान में मंझालाडीह में भव्य दुर्गा मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. स्थानीय लोगों के सहयोग से निर्माण कार्य प्रगति पर है. मंदिर परिसर में विभिन्न भगवान विश्वकर्मा, हनुमान, शंकर व शीतला माता का मंदिर है. चैती दुर्गापूजा की शुरुआत कलश स्थापना के साथ हो जाती है. प्रतिदिन पाठ व संध्या में कुंवारी कन्याओं व महिलाओं के द्वारा आरती की जाती है. वहीं, सप्तमी को को मां दुर्गा का पट खुलता है. चार दिनों तक मेला भी लगता है. इस दौरान लोगों की भीड़ जुटती है. पूजा के दौरान मांसाहार पर रहता है रोक बता दें कि वैष्णव तरीके से पूजा की परंपरा रही है. नवरात्र के शुरू होते ही मंझलाडीह गांव में मांस, मदिरा की बिक्री और सेवन नहीं किया जाता है. वहीं एकादशी के दिन भव्य शोभा यात्रा निकाल कर मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थानीय पिपरा बांध में विसर्जित किया जाता है. रामनवमी पर खड़ा होता है महावीरी झंडा इसके अलावा दुर्गा मंदिर परिसर में रामनवमी झंडा भी खड़ा होता है. रामनवमी को महावीरी झंडा का जुलूस निकाला जाता है. ब्रिटिश काल से ही रामनवमी मनायी जाती है. वर्ष 1952 में स्व. निर्मल मिस्त्री के नाम से लाइसेंस निर्गत किया गया था. रामनवमी के अवसर पर यहां भव्य अखाड़ा का आयोजन होता है. लाठी का हैरतअंगेज खेल प्रदर्शन युवा करते है. कमेटी उन्हें पुरस्कृत करती है.

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