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चिरूवाबेड़ा बिजली-पानी, सड़क व शौचालय की सुविधा नहीं

गिरिडीह जिला की मधुबन पंचायत में पहाड़ी पर जंगल के बीच बसे आदिवासी बहुल चीरूवाबेड़ा गांव आजादी के सातवें दशक में भी विकास के किरण से कोसों दूर है.

विडंबना. गिरिडीह जिले के पीरटांड़ प्रखंड के चिरूवाबेड़ा गांव तक नहीं पहुंची विकास की किरण

दाड़ीचुआं से बुझती है प्यास, गांव में किसी के पास नहीं है टीवी

सबसे पढ़ा लिखा है महावीर बास्के, इस वर्ष पास की है इंटर आर्ट्स की परीक्षा

वेंकटेश शर्मा/भोला पाठक, गोमो-

पीरटांड़.

गिरिडीह जिला की मधुबन पंचायत में पहाड़ी पर जंगल के बीच बसे आदिवासी बहुल चीरूवाबेड़ा गांव आजादी के सातवें दशक में भी विकास के किरण से कोसों दूर है. ग्रामीणों को पेयजल, बिजली, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा भी मयस्सर नहीं है. कोई जनप्रतिनिधि भी इस गांव के लोगों को सुध नहीं ली. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 21आदिवासी परिवार रहते हैं. गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर कुछ दूर पीसीसी सड़क है. एक सोलर जलमीनार लगाया गया है, जिससे महज तीन-चार परिवार को नाम मात्र का पानी मिलता है. तीन-चार परिवार को प्रधानमंत्री आवास मिला है. एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय है. गांव में एक भी सरकारी चापाकल या कुआं नहीं है. कहा कि वह गांव से सटे आमडाडी नाला में दाड़ीचुआं के गंदा पानी को पेयजल तथा स्नान के लिए इस्तेमाल करते हैं. विद्यालय का एमडीएम भी दाड़ीचुआं के पानी से बनाया जाता है. गर्मी के मौसम में जब दाड़ीचुआं सूख जाता है, तो उन्ग्राहें तीन किमी दूर तरवाटांड़ से पानी लाना पड़ता है. गांव से मुख्य सड़क एनएच-14 के बीच करीब आधा किमी बोल्डर युक्त कच्ची सड़क है. इससे आने-जाने पर हमेशा दुर्घटना का संभावना बनी रहती है.

गांव तक नहीं पहुंची है बिजली

गांव में बिजली की सुविधा नहीं है. कागजी खानापूर्ति के लिए विद्यालय में बिजली का वायरिंग की गयी है. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में किसी के पास टीवी नहीं है. हमलोग देश-दुनिया की खबर से अंजान रहते हैं. अपने-अपने घरों में छोटा सोलर प्लेट लगा रखे हैं, जिससे मोबाइल चार्ज करते है. प्रतिकूल मौसम में सोलर काम नहीं करता है तो दो किमी दूर बाजार में मोबाइल चार्ज करवाने पर दस रुपये देने पड़ते हैं. सरकारी योजना के तहत गैस का लाभ किसी को नहीं मिला. लकड़ी जला कर खाना बनाना पड़ता है. बंदराचुआं टोला निवासी बाबूचंद बास्के ने बताया कि हमारे टोला में छह घर है. टोला का हाल बिल्कुल चिरूवाबेड़ा जैसा है. ग्रामीणों को नाला का पानी पीना पड़ता है.

खुले में जाते हैं शौच

ग्रामीणों ने बताया कि किसी परिवार को शौचालय का लाभ नहीं मिला है. खुले में शौच जाना पड़ता है. केवल विद्यालय में शौचालय है. विद्यार्थी शौच महसूस होने पर दाड़ीचुआं से पानी लाकर शौचालय जाते हैं. विषेश स्थिति में बच्चे खुले में शौच चले जाते हैं. विद्यालय बंद रहने पर शौचालय में ताला लगा रहता है.

पंचायत तथा प्रखंड 50 किमी दूर

मधुबन पंचायत व पीरटांड प्रखंड कार्यालय जाने के लिए ग्रामीणों को 50 किमी का सफर तय करना पड़ता है. छोटे काम के लिए भी पंचायत सचिवालय या प्रखंड मुख्यालय जाने पर आधा दिन बर्बाद हो जाता है. आधा दिन के बाद काम नहीं मिलता है. गांव में कोई बीमार पड़ा तो दस किमी दूर तोपचांची ले जाना पड़ता है. मध्य विद्यालय के लिए दो किमी दूर करमाटांड़ तथा उच्च विद्यालय के लिए 10 किमी दूर तोपचांची के उत्क्रमित उच्च विद्यालय दुमदुमी जाना पड़ता है.

रोजगार के लिए कर रहे पलायन

गांव के एक भी लोग सरकारी नौकरी नहीं करते हैं. ग्रामीण पूरी तरह से मजदूरी पर निर्भर पर हैं. कुछ ग्रामीण पत्थर खदान में मजदूरी कर रहे है. वहीं कई लोग रोजगार की तलाश में गोवा, मुंबई, पुणे आदि जगहों पर पलायन कर चुके हैं.

महावीर बास्के पर है ग्रामीणों को नाज

चिरूवाबेड़ा गांव के युवक महावीर बास्के इस वर्ष कला संकाय से बारहवीं की परीक्षा पास किया है. वह बीए में नामांकन कराने वाला है. वह गांव में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है. ग्रामीणों को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महावीर पढ़ाई कर भविष्य में गांव का नाम रोशन करेगा. इसलिए ग्रामीणों को महावीर पर नाज है.

क्या कहते हैं ग्रामीण

सांसद तथा विधायक चुनाव के समय गांव में वोट मांगने तक नहीं आते है. इसके बाद किसी का दर्शन नहीं मिलता है. अब उनसे क्या उम्मीद रखें.

संतोष बास्के

मुखिया चुनाव के समय केवल वोट मांगने प्रत्याशी आते हैं. गांव के विकास का आश्वासन देकर चले जाते हैं. चुनाव जीतने के बाद फिर नजर नहीं आते हैं.

मनोज बास्के

सभी जगह पानी तथा बिजली के लिए लिखित आवेदन दे चुके है. इसके बावजूद गांव की समस्या पर ना तो कोई अधिकारी और ना ही जनप्रतिनिधि ध्यान देते हैं.

महावीर बास्के

पीडीएस दुकान से खाद्यान उठाव के लिए तीन किमी दूर डहिया जाना पड़ता है. गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है. बच्चे व महिलाओं को कोई सुविधा नहीं मिल रही है.

सुकुरमुनी देवी

शौचालय के अभाव में गांव का महिला-पुरुष तथा बच्चे खुले में शौच जाते है. यह बहुत शर्म की बात है. फिर भी किसी का ध्यान गांव पर नहीं है.

बहामुनि देवी

गांव में गर्भवती महिलाओं को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. सहिया दीदी बच्चों को इंजेक्शन लगाने की तय तिथि पर ही गांव आती है.

सजंती देवी

पंचायत में है बिजली की समस्या : मुखिया

मुखिया कविता देवी ने कहा कि चिरूवाबेड़ा में बिजली की समस्या है. एससीए मद से कुछ दूर सड़क बनी है. वहीं, कुछ दूर सड़क बनना बाकी है.

बिजली व सड़क के लिए लिखा जायेगा पत्र : बीडीओ

बीडीओ मनोज कुमार मरांडी ने कहा कि चिरूवाबेड़ा में बिजली व सड़क के लिए संबंधित विभाग से पत्राचार किया जायेगा. पानी की सुविधा के लिए कूप निर्माण कराने को लेकर प्रक्रिया शुरू की जायेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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