स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले ईश्वरी प्रसाद गुप्ता को आज भी याद करते हैं लोग

देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गये आंदोलन में भाग लेने वाले देवरी प्रखंड के ढेंगाडीह निवासी स्वतंत्रता सेनानी ईश्वरी प्रसाद गुप्ता भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, किंतु उनका कृतित्व जन-जन में स्मरणीय है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 14, 2024 9:17 PM

देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गये आंदोलन में भाग लेने वाले देवरी प्रखंड के ढेंगाडीह निवासी स्वतंत्रता सेनानी ईश्वरी प्रसाद गुप्ता भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, किंतु उनका कृतित्व जन-जन में स्मरणीय है. देवरी प्रखंडवासियों को आज भी उन पर नाज है. वह देवरी प्रखंड के एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी थे. ईश्वरी प्रसाद गुप्ता रामगढ़ में अपने मामा मन्नू प्रसाद व रामेश्वर प्रसाद के घर में रहकर शिक्षा ग्रहण किया था.वर्ष 1940 में रामगढ़ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया. सम्मेलन में आये महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर महज 16 वर्ष की आयु में वह अपने सहपाठियों के साथ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. इसमें उन्होंने अंग्रेजों का डटकर सामना किया. 1942 के आंदोलन में वह नरसिंह प्रसाद भगत के साथ डटे रहे. इस दौरान कई बार जेल जाना पड़ा. अंग्रेजों ने उन पर गर्म चाय भी उड़ेली. बावजूद वह पीछे नहीं हटे. आजादी के आंदोलन में लोगों को अधिक से अधिक संख्या में जोड़ने के उद्देश्य से उन्होंने रामगढ़ के साथ-साथ हजारीबाग, गिरिडीह और चतरा का दौरा किया. ईश्वरी प्रसाद गुप्ता ने लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध जारी लड़ाई में एकजुट बने रहने के लिए प्रेरित किया करते थे.

स्वतंत्रता के बाद बने प्रखंड कल्याण पदाधिकारी

ईश्वरी प्रसाद गुप्ता को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देवरी प्रखंड कार्यालय में नौकरी मिली. उन्हें प्रखंड कल्याण पदाधिकारी बनाया गया. वह वर्ष 1984 तक देवरी के प्रखंड कल्याण पदाधिकारी रहे. 1984 में सेवानिवृत्त होने के बाद वह ढेंगाडीह स्थित अपने पैतृक निवास स्थान में रहकर समाज सेवा में जुट गये. सरकार ने कई बार उन्हें सम्मानित किया. वर्ष 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उन्हें सम्मानित किया था. फरवरी 2014 में ढेंगाडीह स्थित आवास पर उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली. उनके निधन के बाद परिवार के सदस्य ढेंगाडीह में रहना छोड़ दिया. वर्तमान समय में उनके आवास में ताला लटका हुआ है.

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