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सेवानिवृत्त शिक्षक ने लगाये हैं तीन एकड़ जमीन पर पेड़

अंग्रेजी की कहावत ‘चैरिटी बिगींस एट होम’ (सदाचार की शुरुआत घर से) को चरितार्थ करता है बिरनी प्रखंड की कपिलो पंचायत अंतर्गत सरखी टोला के सेवानिवृत्त शिक्षक डेगन महतो का प्रकृति प्रेम. राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डेगन महतो ने अपनी तीन एकड़ जमीन हरियाली के नाम कर दी है.

21 प्रकार के एक हजार पेड़ लगाये गये हैं प्लॉट में

पटवन के लिए 14 कट्ठा जमीन पर बनवाया तालाब

बिरनी.

अंग्रेजी की कहावत ‘चैरिटी बिगींस एट होम’ (सदाचार की शुरुआत घर से) को चरितार्थ करता है बिरनी प्रखंड की कपिलो पंचायत अंतर्गत सरखी टोला के सेवानिवृत्त शिक्षक डेगन महतो का प्रकृति प्रेम. राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डेगन महतो ने अपनी तीन एकड़ जमीन हरियाली के नाम कर दी है. इस प्लॉट पर इन्होंने 21 प्रकार के करीब एक हजार पेड़ लगाये हैं. यह सब वह कर रहे हैं बगैर किसी सरकारी सहायता के.

निजी खर्चे से किया पौधरोपण :

सेवानिवृत्त शिक्षक श्री महतो का कहना है कि सरकारी योजना लेने पर विभाग का चक्कर काटते-काटते थक जाते. इसी परेशानी से बचने के लिए निजी खर्च पर पेड़ लगाकर पर्यावरण सुरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है. कहा कि 20 से लेकर 350 रु तक प्रति पौधा खरीदकर उन्होंने लगाये हैं. पेड़ों में मुख्य रूप से कुसुम, चंदन, मोहगनी, आम, अमरुद, शीशम, गमहार, कटहल, सखुवा, पीपल, लीची, महुवा, काजू, आंवला, तेजपत्ता, पाकर, बरगद, नारियल, इमली शामिल हैं. गर्मी के मद्देनजर वर्षों पूर्व 14 कट्ठा जमीन पर तालाब बना लिया है. उसी से गर्मी में पटवन होता है.बचपन के प्रकृति प्रेम बना सरोकार : पेड़ से ऑक्सीजन तो मिलती ही है, दूसरी ओर फल की प्राप्ति होती है. साथ ही पशु-पक्षियों के भोजन को भी ध्यान में रखा गया है. श्री महतो ने कहा कि बचपन से पेड़-पौधा लगाते आ रहे हैं. बचपन के इसी शौक का नतीजा है कि सेवानिवृत्ति के बाद पर्यावरण को बढ़ावा देते हुए कई तरह के पेड़ लगाये. अब सभी पौधे धीरे-धीरे तैयार हो रहे हैं.

बंजर जमीन पर लहलहा रहे पेड़ :

आज जिस तीन एकड़ प्लॉट पर एक हजार पेड़ लहलहा रहे हैं, दरअसल वह पहले पूरी तरह से बंजर थी. कठोर परिश्रम से उन्होंने जमीन को उपज के लायक बनाया. इसी मिशनरी भाव का नतीजा है कि यहां हरियाली की छटा बिखेर रही है.

संघर्ष से भरा रहा है डेगन का जीवन :

डेगन महतो 1985 से 1988 तक शिक्षक रहे और इस्तीफा देकर सेवा भाव से सामाजिक कार्यों से जुड़ गये. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 2003 में परीक्षा उत्तीर्ण कर फिर शिक्षक बन गये. जनवरी 2021 में सेवानिवृत्त हुए. इस दौरान उन्होंने कृषि को बढ़ावा दिया और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाकर सभी को योग्य बनाया. आज सभी बच्चे अलग-अलग क्षेत्र में सेवारत हैं.

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