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किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं डुमरी प्रखंड के जलस्रोत

डुमरी प्रखंड के किसानों को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने को लेकर प्रखंड में कई जल स्रोत उपलब्ध हैं. यदि इन जलस्रोतों का समझदारी से उपयोग किया जाये तो किसानों की मॉनसून पर से निर्भरता कम हो सकती है.

प्रखंड में 17 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य, महज 736 हेक्टेयर में ही हो पाती है सिंचाई

शशि जायसवाल, डुमरी (गिरिडीह). डुमरी प्रखंड के किसानों को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने को लेकर प्रखंड में कई जल स्रोत उपलब्ध हैं. यदि इन जलस्रोतों का समझदारी से उपयोग किया जाये तो किसानों की मॉनसून पर से निर्भरता कम हो सकती है. खेती के लिए बारिश का पानी वरदान है, तो अभिशाप भी है. डुमरी प्रखंड में करीब 17 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है. इस कृषि योग्य भूमि में महज 736 हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई हो पाती है. यदि प्रखंड के जलस्रोत का उपयोग सही तरीके से किया जाये, तो उनमें जमा पानी से सालों भर हजारों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है. जरूरत इस दिशा में ईमानदारी भरे प्रयास की.

मुरझाए चेहरे पर आ सकती है चमक : प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध जलस्रोत का समुचित उपयोग हो तो संबंधित क्षेत्र के किसान को खेती के लिए सालों भर पानी मिल सकता है, साथ ही लोगों को पेयजल संकट से भी मुक्ति दिलायी जा सकती है, उपलब्ध जल स्रोत पर सही स्थान पर डैम बना कर उद्वह सिंचाई योजना को मूर्त रूप देकर किसानों की मॉनसून पर निर्भरता कम की जा सकती है. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों को मनोरम पिकनिक स्थल के रूप में भी बदला जा सकता है. मधगोपाली का डेलिया डैम, रंगरंगी पहाड़ी का झरना, पारसनाथ पहाड़ से निकलने वाला सीता नाला सहित कई अन्य जल स्रोत में हमेशा पानी रहता है. इन जल स्रोतों से क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में सिंचाई की व्यवस्था कर किसानों के चेहरे पर खुशहाली लायी जा सकती है.

पांच सौ फीट ऊंचा है पुत्रीगढ़ जलाशय :

पारसनाथ पहाड़ से निमियाघाट की ओर बहने वाला सीता नाला हेठ नगर होते हुए जमुनिया नदी में मिल जाता है. इस नाले में वर्ष भर पानी बहता है. लेकिन, किसान इसका उपयोग सिंचाई के लिए नहीं कर पाते हैं. पुतलीगढ़ा नामक स्थान पर इस नाले का पानी से एक प्राकृतिक जलाशय बन गया है. जीटी रोड से चार किमी की दूरी पर पारसनाथ पहाड़ की दो छोटी-छोटी पहाड़ी से घिरे पुतलीगढ़ा की ऊंचाई करीब पांच सौ फीट है. यदि पुतलीगढ़ा में डैम बनाकर सीता नाला का पानी संचित किया जाये, तो प्रखंड के एक बड़े भाग में सिंचाई के साथ पेयजल की समस्या भी खत्म हो जायेगी. ऊंचाई पर जल संग्रह होने के कारण पानी को दूर तक ले जाने में अतिरिक्त खर्च भी नहीं करना होगा. हरे भरे जंगल और सुंदर घाटियों के बीच स्थित इस जलाशय को आकर्षक पिकनिक स्पॉट के रूप में भी विकसित किया जा सकता है.

रंगरंगी पहाड़ी के झरने में सालों भर रहता है पानी :

मधगोपाली के समीप रंगरंगी पहाड़ी का झरना प्रखंड का एक मुख्य जल स्रोत है. इसमें सालों भर पानी बहता है, लेकिन इस पानी का उपयोग सिंचाई के लिए नहीं हो पाता है. गर्मी में यहां के पानी का उपयोग कर किसान खेती कर सकते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी, पूंजी का अभाव और ग्रामीणों की कृषि कार्यों में कम रूचि के कारण यहां का पानी बर्बाद हो रहा है. संबंधित विभाग आधुनिक तकनीक और सहकारी कृषि को प्रोत्साहित कर संबंधित क्षेत्र के किसानों काे समृद्धि बनाया जा सकता है.

प्रखंड में सबसे बड़ा है जितकुंडी तालाब जितकुंडी तालाब :

डुमरी प्रखंड का सबसे बड़ा तालाब है. 14 एकड़ भूमि में यह तालाब फैला हुआ है. जितकुंडी गांव के किसानों के लिए यह तालाब किसी वरदान से कम नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि 1967 के अकाल के समय इस तालाब का निर्माण किया गया था. बड़े क्षेत्रफल में जल संग्रह होने के कारण यहां के आसपास के खेतों में सिंचाई हो जाती है. इस तालाब के पानी का सैकड़ों किसान वर्षों भर उपयोग करते हैं, बरसात में तालाब भरने से क्षेत्र के किसान एक वर्ष तक अच्छी फसल के लिए आश्वस्त हो जाते हैं, लेकिन अब इस तालाब के जीर्णोद्धार की जरूरत है. गाद भरने से तालाब की क्षमता कम हो गयी है. गर्मी में जलस्तरकाफी नीचे चला जाता है. जीर्णोद्धार से अधिक किसान इसका लाभ उठा सकेंगे.

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