Giridih News:बांग्ला व मिथिला पंचांग विधि से होती है पूजा

बGiridih News:गोदर प्रखंड की चौधरीबांध पंचायत के झा मोहल्ला में बंगाली विधि विधान से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना ब्रिटिश काल से की जा रही है. पूजा को लेकर मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 6, 2024 10:36 PM

बगोदर.

बगोदर प्रखंड की चौधरीबांध पंचायत के झा मोहल्ला में बंगाली विधि विधान से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना ब्रिटिश काल से की जा रही है. पूजा को लेकर मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है. इस बार भी भव्य रूप से पूजा करने की तैयारी अंतिम चरण में है. चौधरीबांध के अलावा पांच पंचायत के महिला-पुरुष यहां पूजा करते आते हैं. बता दें कि बगोदर प्रखंड मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर बसे चौधरीबांध रेलवे फाटक के समीप बंगाली परिवार की एक बस्ती है. इस बस्ती को झा मुहल्ला के नाम से जाना जाता है. इस मुहल्ला में बांग्ला और मिथिला पंचांग के आधार पर आठ पीढ़ियों से विधि विधान से दुर्गापूजा की जा रही है. यहां पर स्थापित दुर्गा मंदिर कई किंवदंती जुड़ी है. जानकार बताते हैं कि पहले यहां स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा पश्चमी दिशा में थी, जो रातों रात दिशा बदल कर आपरूपी उत्तर दिशा में हो गयी. इसके बाद से पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाने लगी. किया जा रहा है. विमल झा बताते हैं कि यहां पर ब्रिटिश काल से ही दुर्गापूजा हो रही है. बताया कि यहां पूजा सबसे पहले पिता और पुत्र जयपान ओझा व पद्ममान ओझा ने शुरू की थी. आगे चलकर नौ पीढ़ियों से पूजा झा मुहल्ला के लोगों के द्वारा की जा रही है. उन्होंने बताया इस दुर्गा मंदिर में चैती दुर्गा पूजा भी होती है. इस मुहल्ले में 48 बंगाली परिवार हैं, जिसमें से एक परिवार हैं चैती दुर्गा पूजा करते हैं तो दूसरा शारदीय. बताया जाता है कि पूजा मुहल्ले के लोग आपसी सहयोग से करते हैं. बाहर से चंदा नहीं किया जाता है. पूजा में होने वाली खर्च अपने ही परिवार के लोगों से मिलकर किये जाने की परंपरा आज भी यहां के लोग निभा रहे है. पुरुलिया बंगाल के पुरोहित यहां आकर पांच दिनों तक पूजा करते है. पूजा षष्ठी तिथि से वेलभरण से शुरू होती है, जो दशमी तिथि तक चलती है. एकादशी को प्रतिमा विसर्जन के साथ दुर्गापूजा संपन्न होता है. उन्होंने यह भी बताया कि पहले के सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बकरे की बलि दी जाती थी. इस परंपरा को बंद करते हुए अब वैष्णव तरीके से पूजा की जा रही है. पूजा को लेकर लोगों में उत्साह है.

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