बेसहारा हो गया मछुआरा उमेश का परिवार

गोड्डा : सदर प्रखंड के मारखन पंचायत क्षेत्र के मोहनपुर आदिवासी टोला के एक मछुवारे उमेश मुर्मू की मौत के बाद उसका परिवार बेसहारा हो गया है. दो जून की रोटी के भी लाले पड़ गये हैं. 27 सितंबर को पंचायत के एक तालाब में मछली मारने के दौरान मछुवारा उमेश मुर्मू (37) की तालाब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 4, 2017 5:11 AM

गोड्डा : सदर प्रखंड के मारखन पंचायत क्षेत्र के मोहनपुर आदिवासी टोला के एक मछुवारे उमेश मुर्मू की मौत के बाद उसका परिवार बेसहारा हो गया है. दो जून की रोटी के भी लाले पड़ गये हैं. 27 सितंबर को पंचायत के एक तालाब में मछली मारने के दौरान मछुवारा उमेश मुर्मू (37) की तालाब में डूब कर मौत हो गयी थी. मामले को लेकर मुफस्सिल थाना में थाना प्रभारी विरेंद्र सिंह ने यूडी केस दर्ज कर शव का पोस्टमार्टम कराने की औपचारिकता पुलिस रिकॉर्ड हेतु दर्ज कर लिया है.

उमेश मुर्मू गंभीर बीमारी से ग्रसित था. इसके बाद भी कई वर्षों से मछली बेच कर परिवार को दो जून की रोटी खिला रहा था. पालनहार के चले जाने के बाद बीबी मरांगमय हांसदा, बड़ा बेटा अभिलाल मुर्मू , मंझली बेटी डेयमय, तालाबाबू के भरण-पोषण तथा चार माह का छोटे-बेटे के परवरिश की चिंता सताने लगी है. मौत के बाद अंचल प्रशासन से अब तक कोई सहायता राशि नहीं मिल पायी है.

बेसहारे परिवार को मदद की दरकार
मोहनपुर गांव में सेवानिवृत्त बीएसएफ जवान नरेश मुर्मू का घर है. उन्होंने कहा कि उमेश मुर्मू के असमय देहांत हो जाने के बाद यह परिवार पूरे तौर पर बेसहारा हो गया है. उसकी पत्नी को चार बच्चाें की परवरिश की चिंता सता रही है. मछली बेच कर किसी तरह उमेश मुर्मू बच्चों व बीबी का भरण पोषण कर रहा था. सामाजिक व प्रशासनिक दृष्टिकोण से बेसहारा हो चुके इस परिवार को मदद की जरूरत है. स्थिति इतनी विकट है कि समाज के लोग एक दो टाइम का खाना दे रहे हैं, तो बच्चों की गुजर-बसर हो रही है. सरकारी सुविधा दिये जाने की मांग प्रशासन से करते हैं.
योजनाओं से वंचित है आदिवासी परिवार
राज्य सरकार कल्याणकारी योजनाओं मत्स्य बीज वितरण, मत्स्य बीज उत्पादकों को फॉरमूलेेटेड फीड, उनके प्रशिक्षण, बीमा योजना, तालाब निर्माण योजनाओं से मछुआरों को विकास के मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास कर रही है. बावजूद इसके मुफलिसी में गुजर-बसर कर रहे मरांगमय का परिवार सरकारी योजनाओं से वंचित है. उसे सरकारी दाना तक नसीब नहीं है. आदिवासी के उत्थान के नाम पर ढोल पीटनेवाले महकमा व सरकारी नुमाइंदों का भी ध्यान उसके परिवार पर नहीं पड़ा है.

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