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संताल में केवल गोड्डा में है मुसलिम कैंडिडेट, दुमका व राजमहल पहले से ही है एसटी रिजर्व सीट

गोड्डा : संताल परगना में केवल गोड्डा लोकसभा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. संताल परगना के तीन में से दो सीटें दुमका व राजमहल शुरू से ही एसटी सीट रही है. इस बार गोड्डा सीट से दो मुसलमान कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं. एक राष्ट्रीय पार्टी बसपा ने जफर ओबैद को अपना […]

गोड्डा : संताल परगना में केवल गोड्डा लोकसभा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं. संताल परगना के तीन में से दो सीटें दुमका व राजमहल शुरू से ही एसटी सीट रही है. इस बार गोड्डा सीट से दो मुसलमान कैंडिडेट चुनाव लड़ रहे हैं. एक राष्ट्रीय पार्टी बसपा ने जफर ओबैद को अपना उम्मीदवार बनाया है. तो वहीं नूर आलम निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं.

आजादी के बाद देश के पहले आमचुनाव 1952 में गोड्डा संताल परगना-पूर्णिया सीट का ही हिस्सा था. तब इस संयुक्त सीट पर पाउल जुझार सोरेन सांसद चुने गये थे. फिर तीसरे आमचुनाव 1962 के दौरान गोड्डा लोकसभा सीट अलग से बना. तब पहली बार प्रभुदयाल हिम्मत सिंहका कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. जबकि इससे पहले 1957 में ही दुमका और राजमहल सीट भी अलग से सृजित हो चुका था. जो शुरू से ही एसटी रिजर्व सीट रहा. अस्सी के दशक में लगातार 1980 व 1984 में मुस्लिम कैंडिडेट के रूप में समीनुद्दीन लोकसभा पहुंचे. फिर 2004 में भी कांग्रेस की टिकट पर एमपी बने थे.

पिछले दो चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहे : 2009 एवं 2014 में बीजेपी कैंडिडेट के रूप में निशिकांत दुबे ने जीत दर्ज की थी. पिछले चुनाव में बीजेपी के निशिकांत दुबे ने फुरकान अंसारी को 60 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया था. तब बीजेपी का वोट प्रतिशत 36. 25 कांग्रेस का 30. 47 तो जेवीएम का 18. 44 और बसपा का 1. 99 था.

फुरकान अंसारी दूसरे स्थान पर थे. अपने इसी प्रदर्शन के हिसाब से वे इस बार भी गोड्डा सीट कांग्रेस को देने की मांग लगातार कर रहे थे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ और जेवीएम के प्रदीप यादव चुनाव लड़ रहे हैं.

इधर रांची के एनजीओ आमया ( ऑल मुस्लिम यूथ एसोसिएशन ) के अध्यक्ष एस अली ने महागठबंधन के प्रमुख पॉलिटिकल पार्टियों को पत्र लिखकर राज्य में मुसलमान नेताओं को टिकट देने की मांग भी की थी. जिसमें गोड्डा,चतरा, धनबाद, गिरिडीह और जमशेदपुर में से किसी एक पर मुसलमान को प्रत्याशी बनाये जाने की बात कही गयी थी. दरअसल, जातीय समीकरणों के हिसाब से झारखंड में मुसलमान बिहार के हिसाब से थोड़े ही कम हैं.

राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहे हैं मुस्लिम नेता : झारखंड में तकरीबन 15 फीसदी तो बिहार में 17 फीसदी हैं. एक अनुमान के मुताबिक हर सात लोगों पर एक मुस्लिम है.

दूसरी ओर राजनीतिक भागीदारी के रूप में देखें तो झारखंड में मुसलमान हाशिये पर हैं. 15 वीं लोकसभा चुनाव में राज्य की किसी भी सीट पर मुसलमान कैंडिडेट को जीत नहीं मिली थी. तो 16 वीं लोकसभा ( 2014-19 ) में भी एक भी मुस्लिम सांसद दिल्ली नहीं पहुंचे थे. विधानसभा चुनावों में भी ये हाशिये पर ही रहे हैं. 2009 में केवल तीन मुस्लिम कैंडिडेट विधायक बने थे. जबकि 2005 में यह संख्या केवल दो थी. तो 2014 में राज्य के कुल 81 सीटों में केवल जामताड़ा और पाकुड़ सीट मुसलमान उम्मीदवारों की झोली में गयी थी. एक तरह से समझिये कि झारखंड बनने से अब तक महज सात मुसलमान नेता ही विधानसभा पहुंचे हैं.

एक बात गौर करने वाली है कि राज्य में सबसे अधिक पाकुड़ में 35.8 प्रतिशत और साहेबगंज में 34.6 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. जो राजमहल लोकसभा सीट में आता है. किन्तु यह सीट एसटी रिजर्व है. आबादी के जोड़-घटाव से देखें तो राज्य की किसी भी सीट की बनावट ऐसी नहीं है कि जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक हों. यहां जाहिर सा सवाल है कि राज्य में बिहार जितनी आबादी होने के बावजूद मुसलमान राजनीतिक रूप से उपेक्षित हैं.

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