विडंबना. जंगे आजादी के सेनानी बैजल बाबा की सुधि नहीं ले रही सरकार
झोपड़ी में जिंदगी काट रहे परिजन इतिहास के पन्नों पर भले ही आजादी के महानायक बैजल बाबा को भुला दिया है. भूगोल व उनके नाम पर लगनेवाले मेला इस बात की गवाही दे रहा है. सरकार की उदासीनता के कारण उनके वंशज आज फूस की झोपड़ी में जीवन काट रहे हैं. गोड्डा : जंगे आजादी […]
झोपड़ी में जिंदगी काट रहे परिजन
इतिहास के पन्नों पर भले ही आजादी के महानायक बैजल बाबा को भुला दिया है. भूगोल व उनके नाम पर लगनेवाले मेला इस बात की गवाही दे रहा है. सरकार की उदासीनता के कारण उनके वंशज आज फूस की झोपड़ी में जीवन काट रहे हैं.
गोड्डा : जंगे आजादी में सिदो कान्हू के साथ मिलकर अंगरेजों से लोहा लेनेवाले सुंदरपहाड़ी के बैजल बाबा के वंशजों की सुधि न तो प्रशासन ले रहा है और ना ही सरकार ले रही है. इतिहास के पन्नों में भले ही उनका जिक्र न हो.
पर उनके नाम पर पिछले 16 बरस से कालाझोर में लगनेवाला मेला उनके योगदानों की गवाही देता है. उन्होंने महाजनी प्रथा का विरोध कर अंगरेजों के साथ जंग लड़ा था. बैजल बाबा के वंशज तंगहाली व फटेहाली में जीवन गुजार रहे हैं. छठी पीढ़ी के वंशज मुफलिसी, बीमारी तथा अपनी पहचान के मारे फिर रहे हैं. इनके नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकनेवाले नेताओं ने बैजल बाबा का मेला तो लगा दिया. पर उनके वंशजों को अदद एक घर व चापानल तक नहीं दे पाया.
कोई सौ सवा सौ साल पहले जंगलों तथा पहाड़ की कंदराओं में रहकर भारत मां की आजादी के लिये संघर्ष करनेवाले शरीर से सुडौल व सुंदर घुघराले बाल वाले बैजल बाबा हाथ में बांसुरी तथा सारंगी लेकर आजादी की तान छेड़ा था. उनकी बासुरी की धुन के अंगरेज भी कायल थे. परिजनों की मानें तो बैजल बाबा के बासुरी तथा सारंगी की धुन को सुनकर उस वक्त के अंगरेज पदाधिकारी की बेटी भी दीवानी हो गयी थी.