दलहन व तिलहन की पैदावार बने पर तैयार करें रोडमैप
दो दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला में पहुंचे कृषि वैज्ञानिकों ने कहा
गोड्डा जिले के तिलका मांझी कृषि कॉलेज में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. उक्त कार्यशाला भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोन-4, पटना एवं कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा तिलका मांझी कृषि महाविद्यालय के सहयोग से किया जा रहा है. सेामवार की सुबह कृषि कॉलेज में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें बिहार एवं झारखंड के 66 कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान वैज्ञानिकों ने शिरकत किया. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सुनील चंद्र दुबे, विशिष्ट अतिथि आइसीआर मुख्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ अरविंद कुमार एवं अटारी पटना के डीवी सिंह एवं डॉ मोहम्मद मोनाबुल्लाह शामिल थे. कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित करने के बाद गणेश वंदना से की गयी. इसके बाद केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अमृत कुमार झा ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सबसे पहले उपस्थित मुख्य अतिथियों और वरीय वैज्ञानिकों का स्वागत किया. आइसीएआर अटारी पटना से आये प्रमुख वैज्ञानिक डॉ डीवी सिंह एवं डॉ मोहम्मद मोनाबुल्लाह ने आयोजन की रूपरेखा सबके सामने रखी. साथ ही उन्होंने कार्यक्रम के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा की. इफको से आये मुख्य कृषि अधिकारी डॉ तरुणेंदु सिंह ने बताया कि पूरे देश में जितना उर्वरक उत्पादन होता है, उसमें 25% इफको द्वारा उत्पादित किया जाता है. इसके साथ ही उन्होंने इफको के नये उत्पाद जैसे नैनो डीएपी नैनो यूरिया के उपयोग एवं सकारात्मक परिणाम के बारे में चर्चा की. आइसीएआर मुख्यालय (कृषि प्रसार विभाग) से आये प्रमुख वैज्ञानिक डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र एक तकनीक प्रसार का माध्यम है, जिसके तहत किसानों को क्षेत्र के आधार पर नयी-नयी तकनीकी और इनपुट वितरण के सहयोग से दलहन एवं तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी की जानकारी दी जा रही है. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सुनील चंद्र दुबे ने बताया कि कोई भी तकनीक जो किसानों को बतायी जाये, वो सस्टेनेबल के साथ-साथ लंबे समय के लिए अनुकूल हो. उन्होंने आये सभी वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि जो भी तकनीक किसानों तक पहुंचायी जाये, वह उनकी समस्याओं के अनुकूल हो और इससे उन्हें उत्पादन और उत्पादकता दोनों में फायदा हो. कहा कि किसानों से आ रही समस्याओं से अवगत होकर नयी तकनीक का प्रयोग करने का निर्देश दिया गया. कहा कि कृषि वैज्ञानिकों को हरेक क्षेत्र का अध्ययन करना जरूरी है, नहीं तो उस क्षेत्र के जलवायु व मौसम के अनुरूप बीज आदि का उपयोग नहीं किया जा सकेगा, जिससे उत्पादन व उत्पादकता दोनों में कभी भी बढ़ोत्तरी नहीं होगी.
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