Durga Puja: झारखंड की ऐसी शक्तिपीठ जहां 11 सौ वर्षों से हो रही है मां की अराधना, दशहरा में होती है तांत्रिक विधि से पूजा
गोड्डा के पथरगामा में स्थित मां योगिनी का मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. इस मंदिर का इतिहास 11 सौ वर्ष पुराना है. दो पहाड़ों के बीच माता का ऐतिहासिक मंदिर दूसरे राज्यों के भक्तों को भी आकर्षित करता है.
Durga Puja, निरभ किशोर(गोड्डा) : गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड के बारकोप गांव के पास पुरातन ऐतिहासिक माता योगिनी का मंदिर है. मंदिर के बारे में जानकारों की राय में यह करीब 1100 सौ साल पुरानी है. खेतोरी राजाओं से पहले नट राजाओं के अराधना का केंद्र योगिनी मंदिर रहा है. मंदिर दो पहाडों के बीच स्थित है.
मां योगिनी का गुफा आज भी करता है भक्तों को आकर्षित
मुख्य रूप से बारकोप के पास पहाड़ के नीचे बने मंदिर में मां योगिनी का मंदिर व पास सटे पहाड़ की चोटी पर मां योगिनी की गुफा आज भी भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इस मंदिर के बारे में बताया जाता हीै कि 1800 सौ इसवी में विदेशी पर्यटक फांसिसी यात्री हुकारन ने भी अपनी पुस्तक में योगनी मंदिर का वर्णन किया है. यह भी बताया जाता है कि 1100 सौ ईसवी में खेतोरी राजाओं का साम्राज्य के फैलाव से पहले नट राजाओं ने भी मंदिर में पूजा अराधना करते थे. बताते चले कि नट राजाओं को पराजित कर खेतोरी राजाओं ने अपनी शासन व्यवस्था कायम किया था.
मंदिर का इतिहास
मंदिर के बारे में वर्तमान में मुख्य पुजारी सह खेतोरी राज परिवार के सदस्य आशुतोष सिंह बताते है कि मां योगनी की पूजा अर्चना खेतोरी राज परिवार से पहले से चली आ रही है. बारकोप स्टेट के राजाओं ने मंदिर के बरामदा का निर्माण कराया था जबकि मुख्य मंदिर पहले से ही था. आशुतोष सिंह बताते है कि इस मंदिर में मां की पूजा पूरी तरह से तांत्रिक पद्धति से होती है.
दूसरे राज्यों से शक्तिपीठ मां योगिनी के दर्शन के लिए आते हैं
तंत्र साधना का केंद्र मां योगिनी स्थान में पहले असम , बंगाल से भी लोग आते थे. आज भी इस मंदिर में पूजा व दर्शन के लिये झारखंड के साथ बिहार,बंगाल ,असम आदि से भी बडी संख्या में लोग आते है.जिस स्थान पर आज मां की पूजा हो रही है वह सबसे पुराना है. बताया कि पहली पूजा को कलश स्थापना के साथ मां की हर दिन तांत्रिक विधि से पूजा होती है. हर दिन दुर्गा स्तुति होती है. अमावस्या के दिन से हवन आरंभ होकर नवमी तिथि तक किया जाता है. यहां आम दिन बडी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने आते है मगर नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं की भीड बढ जाती है. श्री सिंह ने बताया कि नवमी पूजा को बलि के बाद कुवांरी कन्या भोजन से पूजन कार्य का समापन होता है. श्री सिंह के अनुसार योगिनी मंदिर में बारह मास चौबीस घंटा अखंड दीप जलता रहता है.
मंदिर के पुजारी ने बताई मंदिर की दास्तान
मां योगिनी मंदिर के पुजारी आशुतोष सिंह ने कहा कि यह खेतोरी राजवंशजों की राजमाता है. राजपरिवार की ओर से इस मंदिर के सेवायत की व्यवस्था थी. अंतिम सेवायत समल देवन थे. 1975 में सेमलदेवन द्वारा मंदिर पूजा का कार्यभार उन्हें सोंपकर कटीहार में बस गये . तब से उनके द्वारा ही पूजा कार्य संचालित किया जा रहा है.