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2016 से जंग खा रही कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट की मशीनें

82 लाख की लागत से बना था प्लांट, पर्यावरणीय स्वीकृति न मिलने के कारण पड़ा है बंद

धर्मुडीह में 40-42 हजार मैट्रिक टन जमा हो गया है कचरा, ग्रामीणों को परेशानी गोड्डा. जिला मुख्यालय के शहर से तकरीबन 5-6 किमी दूर पर धर्मुडीह स्थित कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट में कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है. सुरक्षित कचरा निष्पादन को लेकर 82 लाख की लागत से वर्ष 2016 में रीसाइक्लिंग प्लांट का निर्माण नगर परिषद की ओर से किया गया था. पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिलने के कारण प्लांट बंद है. लाखों की लागत से लगायी गयीं मशीनें जग खा रही है. योजना की उपयोगिता पर लोग सवाल उठाने लगे हैं. कचरा प्लांट चालू नहीं करने से वहां केवल कचरे का ढेर जमा हो गया. कुछ दिनों तक शहर के पुराने बस स्टैंड परिसर में कचरा जमा किया गया, जब इसको लेकर हंगामा होना शुरू हुआ तो कचरा वहां से हटाया गया. एक अनुमान के मुताबिक धर्मुडीह स्थित कचरा प्लांट में तकरीबन 40-42 हजार मैट्रिक टन कचरे का अंबार लगा है. वहां कचरे का पहाड हो गया है. शहर के सभी गली मुहल्ले, नाली आदि का हजारों टन कचरा वहां जमा कराया जाता हैं. कचरे के रीसाइक्लिंग के लिए धर्मुडीह में बीते 7-8 पहले कचरा रिसाईक्लिंग प्लांट स्थापित किया गया था. यह गोड्डा नगर परिषद की महत्वाकांक्षी योजना थी. पर इन सालों में अब तक कचरा को रीसाइक्लिंग प्लांट चालू नहीं किया जा सका. आये दिन कचरे को जलाया जाता है. इससे गांव वालों को निकलने वाले धुएं से घुटन होती है. इसको देखने वाला कोई नहीं हैं. यदि लगाये जाने के साथ ही कचरा को रीसाइक्लिंग की जाती तो इसका दंश कम से कम आसपास के ग्रामीणों को नहीं झेलना पडता. चालू करने की नहीं मिल पायी पर्यावरणीय स्वीकृति जानकारी के अनुसार इन 7-8 सालों में नगर परिषद ने परियोजना को चालू करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं ले सकी. गोड्डा व पाकुड़ में एक साथ कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट की स्थापना जोर-शोर से की गयी थी. पाकुड़ में तो पर्यावरणीय स्वीकृति मिल गयी, जबकि गोड्डा में मशीनें धरी की धरी रह गयी. नतीजा यह हुआ कि अब लाखों की मशीनें जंग खा रही हैं. कचरा प्लांट में कचरा रीसाइक्लिंग नहीं होने से प्लांट से सटे गांव का जीना मुहाल है. कचरा कहीं और का तथा मक्खी व मच्छर का दंश ग्रामीणों को झेलना पड रहा है. बीते कई सालों से चालू करने की कवायद की जरूर जा रही है. पर वह भी केवल फाइलों तक सिमट कर रह गयी है. कंपनी के लिए यह योजना केवल पैसा कमाने का जरिया रह गयी है. विभाग के द्वारा कचरा को किलो के भाव से उठाने का काम दिया गया. पर सूखा तथा गीला कचरा का मैनेजमेंट कैसे किया जाना है. इस पर किसी का ध्यान नहीं गया. अब कचरा को वहां से हटाने के लिये अलग से नगर विकास विभाग के द्वारा टेंडर जारी किया गया है. आकांक्षा कंपनी को मिला था कचरा रीसाइक्लिंग करने जिम्मा योजना को आकांक्षा कंपनी के द्वारा संचालित किया जाना था. नगर विकास विभाग के द्वारा आकांक्षा कंपनी को कचरा रीसाइक्लिंग करने का जिम्मा दिया गया था. अभी भी आकांक्षा कंपनी ही शहर के डोर-टू-डोर कचरा उठाने का काम कर किया जा रहा है. नतीजा शहरवासी झेल रहे हैं. लेकिन बीते कई सालों में यह योजना अनुपयोगी साबित हो रही है. अब यदि पर्यावरणीय स्वीकृत मिल भी जाती हैं तो मशीनों को चालू कराने की कवायद करने में महीनाें समय लग जायेगा. मशीनों का क्या हाल है. यह किसी से छिपा नहीं है. कचरे के ढेर से परेशान ग्रामीणों ने प्लांट में जड़ दिया था ताला कचरे के ढेर से परेशान होकर धर्मुडीह के ग्रामीणों ने कई बार कचरा रीसाइक्लिंग प्लांट में ताला जड़ दिया था. ग्रामीणों ने इसको लेकर हंगामा भी किया था. मारपीट तक की नौबत आ गयी. वरीय अधिकारियों को हस्तक्षेप करना पडा. पलिस को बीच-बचाव करनी पड़ गयी थी. इसके बाद शहर के मांस बाजार से सटे स्थान पर कचरा का ढेर लगाया जाने लगा. इसका खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ा था. इसके बाद में कचरे का निष्पादन धर्मुडीह में कराया जाने लगा. तत्कालीन नगर परिषद अध्यक्ष गुड्डु मंडल ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया. तब जाकर डंप किया जाने लगा. लेकिन इसके बाद भी प्लांट को चालू नहीं कराया जा सका. अब जमा कचरे के ढेर का दंश वहां के स्थानीय लोग झेल रहे हैं. कोट इस बार कमोबेश सभी कमी पूरी कर ली गयी है. संभवत: अक्तूबर अथवा दूर्गापूजा के अंत तक प्लांट को चालू करने की कवायद की जायेगी. सभी प्रकार की स्वीकृति ले गयी है. कचरा वहां बहुत हट गया है. जल्द ही कचरे के ढेर को रीसाइक्लिंग कर हटाया जायेगा. परेशानी से निजात मिलेगी. -रोहित कुमार, सिटी मैनेजर, नगर परिषद

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