पंचायत स्तर पर मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराने के मामले में गोड्डा फिसड्डी
औषत से भी नीचे है गोड्डा का ग्राफ, आचार संहिता के कारण नयी वित्तीय योजना में नहीं ली जा सकी मनरेगा योजना
गोड्डा जिले में इन दिनों पंचायत स्तर पर मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराये जाने में फिसड्डी साबित हुआ है. जिले में मनरेगा के तहत संचालित स्कीम भी लगभग बंद है. ऐसे में मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार मिलने की कवायद लगभग बंद हो गयी है. मजदूरों को इन दिनों काम नहीं मिल रहा है. काम के अभाव में मजदूरों का जिले में बदस्तूर पलायन दूसरे राज्यों में हुआ है. हाल के दिनों में जिले भर से सैकड़ों की संख्या में मजदूरों का पलायन दूसरे राज्य हुआ है. दूसरे राज्यों में श्रमिकों को रोजगार सहित उचित मेहनताना मिलता है. ऐसे में इतनी भारी संख्या में गांव आदि छोड़कर मजदूर पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडू, बैंगलोर, दिल्ली व हरियाणा गये हैं. वहां मजदूरों को बहुमंजिले इमारत सहित फैक्ट्रियों में काम मुहैया कराया जाता है. मालूम हो कि मनरेगा रोजगार मुहैया कराये जाने की बेहतर योजना है. यह एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसमें गांव स्तर पर मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराया जाता है. लेकिन बीते कई महीने से जिले में मनरेगा के तहत जितना रोजगार मुहैया कराया जाता है, उतना पंचायत स्तर पर नहीं हो पाया है. इस मामले में गोड्डा जिला फिसड्डी साबित हुआ है. इसके कारण बाहर में काम करने गये मजदूरों की काम करने के दौरान मौत हुई है. अकेले सदर प्रखंड के नेपुरा पंचायत में जनवरी माह में हरियाणा में काम कर रहे मजदूर जय हिंद राय की मौत हो गयी थी. काम करने के दौरान सीढ़ियों से नीचे गिर गया था. वहीं कुछ दिन बाद ही मछिया सिमरडा पंचायत के लालपुर गांव के मजदूर की भी कन्याकुमारी में मौत हो गयी थी. इस मामले में तो मृतक मजदूर का दर्शन भी परिजनों को नसीब नहीं हो पाया था. मृतक के पुत्र द्वारा कन्याकुमारी जाकर जैसे-तैसे दाह संस्कार किया गया. यह जिले में मजदूरी को लेकर त्रासदी हैं. जिले में एक्टिव मजदूरों की संख्या 177889 हैं, जिसमें वर्तमान में 8-10 हजार से भी कम मजदूर कार्यरत हैं. प्रति गांव में मुश्किल से प्रति दिन कुछेक मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. वहीं आवास आदि की योजनाओं में कार्य कराया जा रहा है. मालूम हो कि सरकारी मापदंड के अनुसार जिले के प्रति पंचायत में प्रतिदिन 100 मजदूरों को काम मुहैया कराया जाना है. लेकिन यहां मुश्किल से 20 मजदूर प्रति पंचायत की दर से भी पंचायत में रोजगार मुहैया नहीं कराया जा सका है. गांव-गांव मनरेगा के तहत एक भी काम संचालित नहीं है. आवास योजना में केवल मजदूरों का एमआइएस इंट्री दिखाकर श्रमिक दिवस गिनाया गया है. पूरे राज्य में इस मामले में गोड्डा का ग्राफ नीचे है. एक तो पहले से ही जिले में मनरेगा योजना का बंटाधार किया गया था. ऊपर से आचार संहिता मार्च महीने में ही लागू हो गया. ऐसे में नये वित्तीय वर्ष में मनेरगा की एक भी योजना वार्षिक कार्ययोजना में नहीं ली जा सकी. पुरानी योजना के तहत छिटपुट काम किया जा रहा है. वह भी कमोबेश बंद होने के कगार पर है. इसलिए पंचायत स्तर पर योजनाएं संचालित नहीं है. दूसरा कई कर्मियों को चुनाव संबंधी कार्यों में इंगेज कर दिया गया है. ऐसे में मनरेगा के तहत रोजगार मिलने की योजना खटाई में पड़ गयी है. वर्तमान में प्रति गांव काम खोले जाने का प्रतिशत 1.50 से भी कम रह गया है. जनवरी महीने तक जिले में कुल 14122 मजदूर कार्यरत थे. इसकी संख्या घटकर और भी कम हो गयी है. जनवरी से अभी और भी आंकड़ा नीचे गिर गया है. जनवरी तक प्रति पंचायत 72 मजदूर को खपाये जाने की संख्या थी, जो घटकर अभी 20 से नीचे चला गया है.
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