एतिहासिक तालाब का नहीं हो सका सौंदर्यीकरण, आवंटित राशि का होता रहा बंदरबांट
बसंतराय प्रखंड में एतिहासिक तालाब के नाम पर सिर्फ होती रही है राजनीति
बसंतराय प्रखंड मुख्यालय स्थित ऐतिहासिक तालाब के सौंदर्यीकरण के नाम पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किया गया. मगर तालाब का सौंदर्यीकरण नहीं हो सका. अब तो हालत यह है कि तालाब अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोता जा रहा है. मालूम हो कि बहुत बड़े भूभाग में फैले तालाब का पिंड भाग 28 बीघा 29 कट्ठा 17 धूर और जल भाग 19 बीघा 29 कट्ठा एक धूर है. प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को हजारों की संख्या में सफाहोड़ और झारखंड व बिहार से लाखों की तादाद में श्रद्धालु मन्नतें मांगने और स्नान करने आते हैं. जानकारों का कहना है कि मन्नतें पूरी होने पर पाठा चढाते हैं. इस तालाब के जीर्णोंद्धार व सौंदर्यीकरण को लेकर वन प्रमंडल विभाग द्वारा 2015 में 65 लाख 64 हजार रुपये की लागत से चार हजार पौध रोपण का कार्य किया गया था. मगर विभागीय लापरवाही के कारण आधे से अधिक पौधा लगने से पहले मर गया. 80 लाख रुपये की लागत से अतिथिशाला का निर्माण कराया गया, मगर निर्माण कार्य में भारी पैमाने पर अनियमितता बरती गयी. इतना ही नहीं, आज तक बिजली पानी की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी है. न ही भवन की दोबारा रंगाई-पुताई ही की गयी है. वहीं 2015 में तत्कालीन विधायक स्वर्गीय रघुनंदन मंडल ने विधायक निधि से 14 लाख की राशि सौंदर्यीकरण के नाम पर दिया था, जिसमें जलकुंभी निकालने, घाट मरम्मत, सोलर स्ट्रीट लगाने के नाम पर बिचौलियों द्वारा पैसे का बंदरबांट किया गया. स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2013 में पर्यटन सचिव सजल चक्रवर्ती और तत्कालीन विधायक संजय प्रसाद यादव की उपस्थिति में सौंदर्यीकरण को लेकर शिलान्यास भी किया गया था, जिसमें तीन करोड़ 64 लाख की लागत से घाट, पार्क, गेट, गार्ड रुम, पार्क केफिट एरिया, पीसीसी पथ, सेनेटरी पार्क आदि का निर्माण होना था. इस संबंध में जिला प्रशासन द्वारा उदासीन रवैया आज तक रहा और सिर्फ शिलान्यास होकर ही रह गया. इतना ही नहीं, तालाब की जमीन को एक सौ चार लोगों द्वारा लगभग तीन बीघा अतिक्रमण किया हुआ है. मगर आज तक प्रशासन द्वारा अतिक्रमण मुक्त कराने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की गयी है.
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