मनरेगा कर्मी व पंचायत सचिवों की हड़ताल से पंचायत में मनरेगा की योजनाएं ठप, मुखिया भी हैं हड़ताल पर

गांव-गांव में मजदूरों को रोजगार मुहैया कराना प्रशासन के लिए बना चुनौती

By Prabhat Khabar News Desk | August 28, 2024 11:03 PM
an image

गोड्डा जिले में एक बार फिर से मनरेगा की कई योजनाओं पर ब्रेक लग जाएगा. मनरेगा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से मनरेगा की योजनाओं पर ब्रेक लग गया है. मनरेगा कर्मियों में जेइ से लेकर प्रखंड स्तर पर मनरेगा को संचालित करने वाले बीपीओ, पंचायत स्तर पर रोजगार सेवक बीते 38-39 दिनों से एक सूत्री मांग नियमितिकरण को लेकर हड़ताल पर है. इससे मानव दिवस सृजन की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है. इसमें मनरेगा चालित कई योजनाएं हैं, जिसमें बिरसा बागवानी योजना सहित टीसीबी, समतलीकरण, पोखर जीर्णोद्धार, कुएं की खुदाई आदि योजनाओं बंद हो गयी है. ऐसे में मनरेगा में मजदूरों को नहीं के बराबर रोजगार मिल रहा है. मनरेगा के अलावा पंचायत के मजदूरों को आवास निर्माण कार्य में लगाया गया था, जिसमें भी विभाग द्वारा मानव दिवस सृजन को गिनाने का काम किया जा रहा था. वह भी पंचायत सचिव व मुखिया के हड़ताल के बाद से कामकाज ठप हो जाएगा. इसका कारण है कि आवास आदि में मनरेगा के तहत भुगतान की प्रक्रिया को लेकर पंचायत सेवक ही पंचायत स्तर पर मुखिया के साथ सिग्नेटरी हैं. ऐसे में मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार सृजन की योजना पर असर पड़ना स्वाभाविक है. मनरेगा की रफ्तार स्वत: नहीं के बराबर बच जाएगी. क्योंकि रोजगार सेवक ही मनरेगा के अंदर मजदूरों को रोजगार पर लगाने के साथ भुगतान करने के मामले में महत्वपूर्ण कड़ी हैं. ऐसे में यह योजना मजदूरों के लिए फिलहाल मृतप्राय हो जाएगी. इसके अलावा पंचायतों में चलने वाली 15वें वित्त सहित, अबुआ आवास योजना, मंईयां योजना आदि भी पंचायत सचिव के हड़ताल के कारण प्रभावित होगी. एक तो पहले से ही जिले में मनरेगा की रफ्तार धीमी थी. ऊपर से हड़ताल के कारण और भी रफ्तार कम हो गयी है. मालूम हो कि मार्च माह में लोस चुनाव की अधिसूचना लागू होने के बाद से नयी योजनाओं को मनरेगा के तहत लिए जाने की पाबंदी हो गयी थी. इसके बाद गांव-गांव मनरेगा में बचे-खुचे कामों को ही किया जा सका. नयी योजनाओं को नहीं लेने से मजदूरों को रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं हो पाये. फलत: भारी संख्या में जिले से मजदूरों का पलायन हुआ. इसका परिणाम लोस चुनाव में भी देखा गया. इस बार पुरुष से ज्यादा महिला वोटरों के मतदान का प्रतिशत देखा गया. हालांकि जून में चुनाव समाप्त होने के बाद जिला प्रशासन द्वारा मनरेगा को रफ्तार पकड़ाने की कवायद की गयी. योजनाओं को धरातल पर उतारे जाने का निर्देश दिया गया, लेकिन जब तक गति दी जाती तब तक बारिश का आगाज हो गया था. ऐसे में कई मिट्टी वर्क को बंद करने का आदेश दिया गया. लेकिन टीसीबी आदि की योजना व बिरसा बागवानी योजना का संचालन किया जा रहा था. परंतु हड़ताल पर चले जाने के कारण योजना के संचालन पर ग्रहण लग गया. इसका असर मानव दिवस सृजन पर पड़ना लाजिमी है.

मनरेगा में विभिन्न कारणों से ग्रामीण मजदूरों के रोजगार का ट्रेंड घटा

मनरेगा में दिनों-दिन रोजगार का ट्रेंड घटता चला गया. पहले जिले में एक्टिव लेबर को काम पर लगाये जाने का दवाब अधिकारी अधीनस्थ कर्मियों पर बनाते थे. रोजगार देना भी प्राथमिकता थी. इसे शुरूआती दिन तो मिशन मोड पर लिया गया, लेकिन कालांतर में मनरेगा में रोजगार मुहैया कराये जाने का काम बस एमआइएस एंट्री तक सिमट कर रह गया. अब सब कुछ आंकड़ों का खेल होता है. पूरे जिलेभर में एक्टिव लेबर की संख्या 1.49 लाख है. जबकि जिलेभर में मात्र 19 हजार के आसपास मनरेगा की विभिन्न योजनाओं में मजदूरों को काम पर लगाया गया है, जो 10 प्रतिशत से भी कम हैं. इतने लगाये गये मजदूरों को काम पर लगाकर मनरेगा से जुड़े पदाधिकारी व कर्मी अपनी पीठ थपथपाते हैं. अभी तो मनरेगा में प्रति पंचायत 100 मानव दिवस प्रतिदिन सृजन करने का मानक कम ही नहीं हो गया हैं, बल्कि चिंताजनक भी है. हालांकि इसके कई कारक जिम्मेवार हैं. कई पंचायत व गांव में मनरेगा में मजदूर नहीं मिल रहे हैं. मजदूरों का जिले से बड़ी संख्या में पलायन जो हो गया है. इसलिए योजनाओं पर समय पर पूरा करना चुनौती भी है. तीसरा मनरेगा में रफ्तार कम पड़ने का मुख्य कारण देरी से मजदूरी भुगतान होना भी है. यह समस्या अब आम हो गयी है. इसके लिए भी कई फैक्टर हैं, जिसके कारण अब मनरेगा में मजदूर नहीं मिल रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Exit mobile version