21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मिट्टी की योजनाओं के बंद होने से मानव दिवस के सृजन पर पड़ेगा असर

बारिश से मनरेगा की रफ्तार पर लगा ब्रेक

गोड्डा जिले में एक बार फिर से मनरेगा की कई योजनाओं पर ब्रेक लग जाएगा. बारिश शुरू होने से अधिकांश मिट्टी वर्क को रोकने का निर्देश दिया गया है. इससे मानव दिवस सृजन की योजना की रफ्तार धीमी हो जाएगी. मनरेगा में बिरसा बागवानी योजना में गड्ढा करने सहित टीसीबी आदि की योजनाओं को केवल चालू रखे जाने का निर्देश दिया गया है. वह भी अधिकांश जगहों पर पूरा कर लिया गया है. अब उन गड्ढों में पौधों को लगाये जाने का इंतजार है. इसके अलावा मनरेगा की कई योजनाएं, जिसमें समतलीकरण, पोखर जीर्णोद्धार, कुआं खुदाई आदि कामों को अब बारिश खत्म होने के बाद ही चालू किया जा सकेगा. इसका असर मनरेगा के रोजगार सृजन योजना पर पड़ना तय है. एक तो पहले से ही जिले में मनरेगा की रफ्तार धीमी थी. ऊपर से बारिश के कारण और भी रफ्तार कम हो गयी है. मालूम हो कि मार्च माह में लोस चुनाव की अधिसूचना लागू होने के बाद नयी योजनाओं को मनरेगा के तहत लिए जाने की पाबंदी थी. इसके बाद गांव-गांव मनरेगा में बचे कार्यों को ही किया जा सका. नयी योजनाएं नहीं लेने से मजदूरों को रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं हो सके. फलत: भारी संख्या में जिले से मजदूरों का पलायन हुआ. इसका परिणाम लोस चुनाव में भी देखा गया. इस बार पुरुष से ज्यादा महिला वोटरों में मतदान का प्रतिशत देखा गया. हालांकि जून में चुनाव समाप्त होने के बाद जिला प्रशासन द्वारा मनरेगा को रफ्तार पकड़ाने की कवायद की गयी. योजनाअेां को धरातल पर उतारे जाने का निर्देश दिया गया लेकिन जब तक रफतार पकडायी जाती तब तक बारिश का आगाज हो गया था. जिसका असर मानव दिवस सृजन पर पडना लाजिमी है.

जून तक गांव-गांव योजनाओं को चालू रखे जाने की संख्या भी कम :

जून माह तक जिले में प्रति गांव मनरेगा की योजनाओं को उतारने का प्रतिशत भी कम ही था. मुश्किल से 01 या 02 स्कीम प्रति गांव संचालित गया था, जो बहुत कम है. सुंदरपहाड़ी व ठाकुरगंगटी में तो यह औसत से भी कम था. दूसरे अन्य प्रखंड में भी औसत मानक से कम ही था. दूसरा मनरेगा के तहत ली गयी डोभा व टीसीबी की अधिकांश योजनाएं किसानों के किसी काम का नहीं है. इस योजना से पटवन का उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता है. इन योजनाओं को केवल भूजल संरक्षण के लिए बनाया गया है. साथ ही मानव दिवस सृजन के लिए जिले में डोभा की अधिकांश योजना की कोई उपयोगिता नहीं है. योजना में मानव दिवस का सृजन किया जा सके, बस इतना ही उपयोगिता है. वहीं पूरे जिले में डोभा व टीसीबी की कई योजनाओं को संचालित किया गया है.

बचे मजदूरों को काम में लगाकर अधिकारी थपथपाते रहे पीठ :

मनरेगा में दिनों-दिन रोजगार का ट्रेंड घटता चला गया. पहले जिले में एक्टिव लेबर को काम पर लगाये जाने का दबाव अधिकारी अधीनस्थ कर्मियों पर बनाते थे. रोजगार देना भी प्राथमिकता थी. इसे शुरूआती दिन तो मिशन मोड पर लिया गया, लेकिन कालांतर में मनरेगा में रोजगार मुहैया कराये जाने का काम बस एमआइएस एंट्री तक सिमट कर रह गया. अब सब कुछ आंकड़ों का खेल होता है. पूरे जिले भर में एक्टिव लेबर की संख्या 1.49 लाख है, जबकि जिले भर में मात्र 19 हजार के आसपास मनरेगा की विभिन्न योजनाओं में मजदूरों को काम पर लगाया गया है. यह 10 प्रतिशत से भी कम है. इतने लगाये गये मजदूरों को काम पर लगाकर मनरेगा से जुड़े पदाधिकारी व कर्मी अपनी पीठ थपथपाते हैं. अभी तो मनरेगा में प्रति पंचायत 100 मानव दिवस प्रतिदिन सृजन करने का मानक घट ही नहीं गया है, बल्कि चिंताजनक भी है. हालांकि इसके कई कारक जिम्मेवार हैं. कई पंचायत व गांव में मनरेगा में मजदूर नहीं मिल रहे हैं. मजदूरों को जिले से बड़ी संख्या में पलायन हो गया है. इसलिए योजनाओं पर समय पर पूरा करना चुनौती भी है. तीसरा मनरेगा में रफ्तार कम पड़ने का मुख्य कारण देरी से मजदूरी भुगतान होना भी है. यह समस्या अब आम हो गयी है. इसके लिए भी कई फैक्टर हैं, जिसके कारण अब मनरेगा में मजदूर नहीं मिल रहे हैं. इस पर गहन मंथन व चिंतन करने की जरूरत है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें