24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विलुप्त होने के कगार पर मैना, अब कभी कभार ही होता है दर्शन

मैना की लगातार घटती संख्या से हानिकारक कीड़ों का लगातार बढ़ रहा प्रभाव

एक दशक पूर्व फिल्म में फरमाया गया गाना तोता-मैना की कहानी पुरानी हो गयी. भले ही तब यह गाना फिल्म के किरदार पर आधारित था, परंतु आज तोता-मैना के वजूद पर गाया यह गाना सटीक बैठ रहा है. गाने का एक किरदार तोता का वजूद तो पिंजरे में कैद होकर रह गया है. अब मैना का भी वजूद इसी राह में चल दिया है. परिणाम है कि खेत-खलिहानों में दिखने वाला मैना यदा-कदा ही दिख रही है.

फसलों की रक्षक थी मैना :

मैना का इस तरह विलुप्त होना पर्यावरण के लिए शुभ संकेत नहीं है. गोड्डा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ सतीश कुमार की मानें तो मैना की लगातार घटती संख्या से ही हानिकारक कीड़ों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. मैना का मुख्य आहार फसलों के हानिकारक कीड़े होते थे. ऐसे में कीड़ों का प्रकोप फसलों पर हावी हो रहा है. बताते हैं कि यही एक पक्षी है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाने की बजाये कीट-पतंगों को निवाला बना कर उपज बढ़ाने में मदद करती है. श्री कुमार बताते हैं कि मैना की संख्या घटने के गुणात्मक आंकड़ा तो नहीं है, परंतु यह जरूर कहा जा सकता है कि मैना की विलुप्त होने की अगर रफ्तार यही रही तो इस पक्षी को भी अगले कुछ वर्षो में केवल पिंजरे में ही देखा जा सकता है. पक्षी की घटती संख्या ने जिले के किसानों की परेशानी बढ़ा दी है. अब खेतों में लगे फसलों को हानिकारक कीड़े ज्यादे प्रभावित कर रहे हैं. पहले के मुकाबले अब कीड़ों का फसलों पर ज्यादा असर देखने को मिल रहा है. ऐसे में कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया है, जो फसलों की गुणवत्ता के लिहाजा से ठीक नहीं है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें