पोड़ैयाहाट प्रखंड में सोहराय की तैयारी शुरू, गांव में गूंजने लगे गीत
गांव में कुशल मंगल होने पर मांझी हड़ाम द्वारा पर्व मनाने का लिया जाता है निर्णय
पोड़ैयाहाट प्रखंड में सोहराय पर्व की तैयारी जोरों पर है. खासकर आदिवासी क्षेत्र होने की वजह से लोग 15 दिनों पूर्व से ही सोहराय पर्व मनाने की सारी तैयारियां करने में जुट जाते हैं. प्रखंड के सिदबांक, सकरी फुलवार, कितामकड़ा, महेधासा, सलैया, ठाकुरनहान, तरखुट्टा सहित अन्य क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ तैयारी में जुट गये हैं. बुजुर्ग जापान सोरेन व आसदेव सोरेन बताते हैं कि संथालों का सबसे बड़ा पर्व है. यह पूस महीने में नयी फसल के साथ मनाया जाता है. यह पर्व किसी खास तारीख या तिथि को नहीं मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने के लिए मांझी हाड़ाम द्वारा बैठक बुलायी जाती है और गांव में सभी व्यक्ति के कुशल-मंगल होने पर ही पर्व मनाने का निर्णय लिया जाता है. गांव में सभी के कुशल-मंगल होने पर सोहराय पर्व मनाने के लिए दिन तय किया जाता है, तब मांझी हाड़ाम, जोग मांझी को घर-घर जाकर सूचित करने का आदेश देते हैं. इसके बाद जोग मांझी घर-घऱ जाकर सूचित करते हैं कि इस दिन को सोहराय पर्व का ऊम (स्नान) है. सभी अपने-अपने रिश्तेदारों को सोहराय पर्व का न्योता देने की सभी औपचारिकता को पूरा करते हैं और पर्व के नाम पर मदिरा तैयार किया जाता है. आगामी सात जनवरी को प्रखंड मैदान में सोहराय मिलन समारोह का आयोजन किया गया है, जिसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है.
तीन दिनों तक चलता है पर्व, पहले दिन होती है साफ-सफाई
यह पर्व मुख्य रूप से तीन दिन का होता है. जिसमे पहला दिन को ऊम हीलोक (स्नान या साफ-सफाई का दिन) दूसरा दिन को दाकाय हीलोक (खाने पीने का दिन) और तीसरे या अंतिम दिन को अडाक्को हीलोक तय किये गये दिन सभी मेहमान जमा होते हैं. इस पर्व में खासकर होपोन एरा (शादी-सुदा बेटियों) और मिसरा (शादी-सुदा बहनों) को बुलाया जाता है, इसलिए यह खासकर इन्हीं (बेटी और बहनों) लोगों का पर्व है. इस पर्व में इनका खूब सेवा-सत्कार किया जाता है. ऊम हीलोक के पहले शाम गोडैत (नायके का सहायक) नायके को तीन मुर्गे सौंपते हैं, जिसमे दो पोंड सिम (सफेद- मुर्गा) और एक हेडाक सिम (एक प्रकार का मुर्गे का रंग) होता है. नायके तीनों मुर्गे को बांधने के पश्चात कुछ नियम-धर्म का पालन करते हैं. जैसे कि ऊम रात नायके (पुजारी) धरती पर चटाई बिछाकर सोते हैं.ऊम के दिन गोडेत घर-घर जाकर मुर्गा, चावल, नमक, हल्दी करते हैं एकत्रित
ऊम के दिन गोडेत घर-घर जाकर मुर्गा, चावल, नमक, हल्दी इत्यादि एकत्रित करते हैं और नायके एरा (पूजारिन) स्नान करने के पश्चात अरवा चावल पिसती है. उसके पश्चात नायके, गोडेत और कुछ ग्रामीण एकत्रित मुर्गों को लेकर नदी के किनारे पूजा करने के लिए प्रस्थान करते हैं. स्नान करने के पश्चात नायके उत्तर-दक्षिण दिशा में गोबर से लिप कर लंबा-लंबा एक-एक खोंड (खंड) बनाते हैं और प्रत्येक खंड में भिन्न-भिन्न स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा चावल रखते जाते हैं. चावल रखने के बाद उसके किनारे-किनारे तीन-तीन सिंदूर का टिका लगाते हैं. उसके बाद ऊम के पहले दिन पकड़े गये तीन मुर्गों में से हेडाक सिम पर जल छिड़क कर, सर्वप्रथम उसके सिर पर, उसके बाद उसके डैने और पैर पर सिंदूर करते हैं. तब नायके एक अंडा लेकर उस पर सिंदूर करते हैं और चावल पर स्थापित करते हैं. इसके बाद हेडाक सिम (मुर्गा) को चावल खिलाते हुए इस बाखेंढ (मंत्र) का उच्चारण करते हैं. इसके बाद उस मुर्गे की बलि दी जाती है. सभी खंडों में अन्य मुर्गों की बलि दी जाती है. बलि से प्राप्त मुर्गों का सूड़े (खिचड़ी) बनाया जाता है और गांव के सभी पुरुष उसका भोग करते है और गोट हंडी (मदिरा) पिया जाता है.गांव के लोगों से खैरियत पूछते हैं मांझी
इसके बाद मांझी गांव के लोगों से सब खैरियत हैं, का जायजा लेते हैं और उसके बाद यह उपदेश देते हैं. ठाकुर की कृपा से सब-कुछ ठीक-ठाक होने के कारण ही हम आज सोहराय पर्व मना पा रहे हैं और मरांग दई (सोहराय-पर्व) हमारे पास आयी है. सभी पांच दिन पांच रात नाच-गान के जरिए खुशी मनाएं, लडाई-झगडा, लोभ-लालच, इर्ष्या-द्वेश न करें आदि उपदेश के समाप्त होने पर चरवाहों को गाय लाने के लिए कहा जाता है. तब नायके चरवाहों से डंडा मांगते हैं और सभी डंडा को पूजा खंड में रखकर तेल सिंदूर देते हैं. इसके बाद चरवाहों को पूजा खंड पर गाय खदेड़ने का आदेश दिया जाता है और जो गाय पूजा खंड में स्थापित अंडा को सूंघती है या पैर लगाती है, उस गाय का पैर धोया जाता है. उसके सिंघों पर तेल लगाकर सिंदूर दिया जाता है.
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