।। दुर्जय पासवान ।।
यह परंपरा कोई एक दिन की नहीं है. बल्कि वर्षो से यह परंपरा चली आ रही है. लगभग 200 वर्षो पहले बरवे स्टेट के नरेश राजा हरिनाथ साय के समय से यह परंपरा शुरू हुई है. परंपरा का निर्वाह आज भी हो रहा है. हनीफ मिंया झंडा लिए आगे-आगे और पारंपरिक हथियार, गाजे बाजे के साथ जुलूस में शामिल लोग पीछे -पीछे चलते हैं. इस बाबत हनीफ मिंया बतलाते हैं कि यह परंपरा मेरे दादा परदादा के समय से ही चली आ रही है.
अगर राजा साहब की ओर से कोई रोक नहीं होती है तो यह परंपरा मेरे बाद में खानदान निभायेंगे. मुझसे पहले मेरे दादा मोहम्मद जैरकु खान इस परंपरा का निर्वाह करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि यह सिलसिला उनके दादा के परदादा के समय से लगातार चल रहा है. उस समय बरवे स्टेट के नाम से यह क्षेत्र जाना जाता था, जो सरगुजा के महाराजा चामिंद्र साय को सौंपा गया था.
राजा भानुप्रताप नाथ साहदेव के निधन के पश्चात वर्तमान में इस परंपरा की देखरेख नये राजा अवधेश प्रताप शाहदेव कर रहे हैं. श्री शाहदेव के अनुसार जब तक हनीफ मिया यहां पर झंडे का फातिहा नहीं करते हैं. तब तक विजया दशमी का जुलूस नही निकलता है.
सिकरी निवासी हनीफ मियां को पूजा का प्रसाद बनाने के लिए सारी सामग्री हिन्दू भाई देते हैं. फातिहा के बाद प्रसाद का वितरण सभी मिलजुल कर करते हैं. प्रसाद वितरण के बाद ही जुलूस सह शोभायात्रा की शुरुआत होती है और शोभायात्रा रावण दहन स्थल तक पहुंचता है.
अवधेश प्रताप शाहदेव ने यह भी बताया कि मेरी जानकारी में मेरे 48 साल की जीवन में आज तक यहां कभी तनाव उत्पन्न हुआ, और न पहले कभी हुआ था. यह हिन्दू -मुस्लिम के आपसी भाईचारे का एक मिशाल है.