यहां हनीफ मियां के ”फातिहा” के बाद निकलता है विजया दशमी की शोभायात्रा

।। दुर्जय पासवान ।। गुमला : गंगा, यमुना तहजीब देखना है, तो गुमला जिले के अलबर्ट एक्का जारी प्रखंड आइये. आज भी जारी प्रखंड के श्रीनगर में हर साल विजया दशमी के दिन इसकी एक मिशाल देखने को मिलती है. श्रीनगर में विजया दशमी के दिन शाम को जुलूस निकलने के ठीक पहले दुर्गा मंदिर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 14, 2018 7:22 PM

।। दुर्जय पासवान ।।

गुमला : गंगा, यमुना तहजीब देखना है, तो गुमला जिले के अलबर्ट एक्का जारी प्रखंड आइये. आज भी जारी प्रखंड के श्रीनगर में हर साल विजया दशमी के दिन इसकी एक मिशाल देखने को मिलती है.
श्रीनगर में विजया दशमी के दिन शाम को जुलूस निकलने के ठीक पहले दुर्गा मंदिर के सामने सिकरी गांव निवासी मोहम्मद हनीफ मिंया हरे रंग का झंडा गाड़ते हैं. फातिहा पढ़ते हैं. मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार उस झंडे की इबादत की जाती है. उसके बाद हनीफ मिंया झंडे को जमीन से उखाड़कर अपने कंधे पर रखते हैं. इसके साथ विजय दशमी की शोभायात्रा निकाली जाती है.

यह परंपरा कोई एक दिन की नहीं है. बल्कि वर्षो से यह परंपरा चली आ रही है. लगभग 200 वर्षो पहले बरवे स्टेट के नरेश राजा हरिनाथ साय के समय से यह परंपरा शुरू हुई है. परंपरा का निर्वाह आज भी हो रहा है. हनीफ मिंया झंडा लिए आगे-आगे और पारंपरिक हथियार, गाजे बाजे के साथ जुलूस में शामिल लोग पीछे -पीछे चलते हैं. इस बाबत हनीफ मिंया बतलाते हैं कि यह परंपरा मेरे दादा परदादा के समय से ही चली आ रही है.

अगर राजा साहब की ओर से कोई रोक नहीं होती है तो यह परंपरा मेरे बाद में खानदान निभायेंगे. मुझसे पहले मेरे दादा मोहम्मद जैरकु खान इस परंपरा का निर्वाह करते थे. उन्होंने यह भी बताया कि यह सिलसिला उनके दादा के परदादा के समय से लगातार चल रहा है. उस समय बरवे स्टेट के नाम से यह क्षेत्र जाना जाता था, जो सरगुजा के महाराजा चामिंद्र साय को सौंपा गया था.

राजा भानुप्रताप नाथ साहदेव के निधन के पश्चात वर्तमान में इस परंपरा की देखरेख नये राजा अवधेश प्रताप शाहदेव कर रहे हैं. श्री शाहदेव के अनुसार जब तक हनीफ मिया यहां पर झंडे का फातिहा नहीं करते हैं. तब तक विजया दशमी का जुलूस नही निकलता है.

सिकरी निवासी हनीफ मियां को पूजा का प्रसाद बनाने के लिए सारी सामग्री हिन्दू भाई देते हैं. फातिहा के बाद प्रसाद का वितरण सभी मिलजुल कर करते हैं. प्रसाद वितरण के बाद ही जुलूस सह शोभायात्रा की शुरुआत होती है और शोभायात्रा रावण दहन स्थल तक पहुंचता है.

अवधेश प्रताप शाहदेव ने यह भी बताया कि मेरी जानकारी में मेरे 48 साल की जीवन में आज तक यहां कभी तनाव उत्पन्न हुआ, और न पहले कभी हुआ था. यह हिन्दू -मुस्लिम के आपसी भाईचारे का एक मिशाल है.

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