दुर्जय पासवान, गुमला
गुमला शहर की लाइफ लाइन बाइपास सड़क अभी तक निर्माणाधीन है. निर्माण कार्य कछुए की गति से चल रही है. अधूरे बाइपास सड़क के कारण गुमला शहर की 51 हजार आबादी खतरे में हैं. या कहा जाय तो पूरी तरह प्रभावित हो रही है. चूंकि गुमला शहर नेशनल हाइवे-43 व 78 के किनारे स्थित है. अभी जितनी भी बड़ी गाडि़यां हैं, सभी गुमला शहर में घुसती है. इसके बाद दूसरे राज्य आती-जाती है.
बड़ी गाड़ियों के शहर में घुसने से उड़ते धूलकण से लोगों के सेहत पर असर पड़ रहा है. खासकर बच्चे अक्सर बीमार हो रहे हैं. इसका हकीकत यह है कि अस्पताल में हर दिन शहरी क्षेत्र की मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऊपर से बड़ी गाड़ियों के कारण शहर में सड़क हादसे की संख्या भी बढ़ती जा रही है. आये दिन हादसे हो रहे हैं.
वहीं भारी भरकम गाड़ियों के कारण निम्न क्वालिटी की सड़क भी टूटकर गड्ढों में तबदील हो रही है. हादसे के कारण लोग मर रहे हैं. घायल भी हो रहे हैं. ऊपर से सड़क जाम ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है. गुमला शहर का व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है. लाख रुपये का बिजनेस करना वाला व्यापारी अब हजारों रुपये तक सिमट कर रह गया है. इसका मुख्य कारण शहर में पार्किंग की व्यवस्था नहीं है.
बड़ी गाड़ियां शहर में घुसती है तो जाम लगती है. जिससे लोग मेन रोड, जशपुर रोड, सिसई रोड व पालकोट रोड की कई दुकानों में जाने से कतराने लगे हैं. बाइपास सड़क के कारण गुमला शहर की 51 हजार आबादी खामियाजा भुगत रही है और जिन नेताओं को जनता ने चुना है. उन्हें जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है. आये दिन जाम झेलना पड़ रहा है. सड़क हादसे में लोगों की जान भी जा रही है.
18 अप्रैल 2016 को सीएम रघुवर दास ने 66 करोड़ 89 लाख रुपये की लागत से बनने वाली बाइपास सड़क का सिसई प्रखंड में ऑन-लाइन शिलान्यास किया था. अब ढाई साल गुजर गया. लेकिन काम की जो गति होनी चाहिए. वह नहीं दिख रही है. संवेदक की लापरवाही से सड़क का काम नहीं हो रहा है. कुछ स्थानों पर गड्ढा खोदकर छोड़ दिया गया है. हालांकि सड़क निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य के संवेदक मेसर्स संजय अग्रवाल द्वारा सिलम घाटी के समीप प्लांट की स्थापना की गयी है. लेकिन अभी तक जितने भी अधिकारी सड़क निर्माण की गति को देखने पहुंचे हैं. सभी अधिकारी काम की गति से नाराज हैं.
संवेदक द्वारा जिस प्रकार काम कराया जा रहा है. नहीं लगता है कि संवेदक काम पूरा करा सकेगा. ऐसे भी संवेदक ने पीसीसी सड़क बनाने वाले छोटे ठेकेदारों के बीच पेटी कॉन्ट्रैक्ट में काम बांट दिया है. जिससे काम की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़ा होने लगा है. जबकि, संवेदक ने काम के एवज में सरकार से करोड़ों रुपये प्राप्त भी कर चुका है. लेकिन जितना राशि की निकासी हुआ है. उतना काम भी नहीं हुआ है.
यहां बताते चलें कि गुमला में बाइपास सड़क अधूरा होने से जनता जाम से त्रस्त है. जब सीएम ने 18 अप्रैल को शिलान्यास किये थे तो उन्होंने काम में तेजी लाने के लिए कहा था. लेकिन इंजीनियर व संवेदक अपने मन से कछुए की गति से काम करा रहे हैं. सीएम के आदेश का कोई असर नहीं पड़ा है. अभी स्थिति यह है कि जब स्कूल छुट्टी होती है. या सप्ताहिक बाजार लगता है. उस समय जाम होती है. नेशनल हाइवे है. इस रूट से प्रत्येक दिन दो हजार से अधिक बड़ी मालवाहक गाड़ियां गुजरती है.
इसके अलावा 200 बस व हजारों छोटी गाड़ी है. शहर की सड़कें भी संकीर्ण है. जिससे एक गाड़ी के फंसने पर जाम लग जाती है. जाम के कारण शहर के व्यवसाय सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. इधर, कुछ दिन पहले डीसी शशि रंजन ने सड़क की स्थिति से अवगत हुए. वे खुद फील्ड जाकर सड़क को देंखे. उन्होंने धीमी गति पर नाराजगी प्रकट करते हुए मार्च माह तक पूर्ण करने का निर्देश दिये हैं. समाजसेवी शकुंतला उरांव बाइपास सड़क नहीं रहने के कारण शहर की सुंदरता खत्म हो गयी है. हर दिन जाम लगता है. सड़क पर निकलना दूभर हो जाता है. प्रशासन इसपर पहल कर सड़क बनवाये.
जानिए बाइपास सड़क को
लागत : 66.89 करोड़ रुपये
लंबाई : 12.8 किलोमीटर
चौड़ाई : दस मीटर
टोल प्लाजा की संख्या : आठ
पुल की संख्या : आठ बड़े पुल
कलभर्ट की संख्या : 33 कलभर्ट
जंक्शन की संख्या : तीन जंक्शन
अधिग्रहण : 160 एकड़ जमीन
मुआवजा : 600 ग्रामीणों को दी गयी
गांव : 12 गांव की जमीन ली गयी