दुर्जय पासवान, कमलेश साहू, गुमला
पुलवामा में शहीद हुए एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सोरेंग अपने पिता बृज सोरेंग से प्रेरणा लेकर फौज में भर्ती हुए थे. यह जानकारी खुद शहीद के परिजनों ने दी. परिजनों के अनुसार, पिता बृज सोरेन भी फौज में थे. 1973 में बृज फौज में भर्ती हुए थे और 1990 में सेवानिवृत्त हुए थे. अपने पिता को फौज में नौकरी करता देख विजय भी फौज में जाने काे इच्छुक थे. यह इच्छा बचपन से उनमें थी.
इंटर की पढ़ाई के दौरान 1993 में विजय की सीआरपीएफ में बहाली हुई. अपने काम के प्रति ईमानदार रहने वाले विजय कई अभियान में शामिल रहे हैं. उनके निशाना के सामने हर कोई फेल था. इस कारण विजय को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता था. आज विजय के नहीं रहने से पूरा फरसामा गांव उन्हें याद कर रहा है, क्योंकि जब भी वह गांव आते थे, हर कोई से मिलते थे.
खास कर अपने बचपन के साथी जगतपाल साहू से वह जरूर मिलते थे. हॉकी खेल के वे दीवाने थे. बचपन में वे अपने दोस्त जगतपाल के साथ ही जंगल व खेत में बकरी चराने जाया करते थे. इसलिए ड्यूटी के बाद जब भी समय मिलता विजय अपने दोस्त जगतपाल को जरूर फोन कर बात करते थे.
मुझे अपने बेटे पर गर्व है : पिता
पिता बृज सोरेंग ने कहा है कि मुझे अपने बेटे विजय सोरेंग पर गर्व है. वह मुझे ही अपना प्रेरणा पुरुष मान कर फौज में भर्ती हुआ था. आज वह मुझे छोड़ कर चला गया. अक्सर ड्यूटी में कहीं भी जाता था, वह मुझे फोन करता था. अभी बीते मंगलवार को ही उसने फोन कर हाल चाल पूछा था. अक्सर अपनी मां के बारे में पूछता था.
देश के लिए शहीद हुआ बेटा : मां
मां लक्ष्मी देवी ने कहा कि मेरा बेटा विजय सोरेंग बचपन से जुझारू था. गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद कुम्हारी स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. रांची में इंटर पढ़ रहा था, तभी उसकी नौकरी लग गयी. उसने अपने काम के बूते नाम कमाया था और आज देश के लिए शहीद हो गया.
पिता की तरह बनना चाहता हूं : बेटा
बेटा अरुण सोरेंग ने कहा कि मैं अभी बिरसा कॉलेज खूंटी में अंग्रेजी ऑनर्स की पढ़ाई कर रहा हूं. पार्ट वन में हूं. मुझे अपने पिता पर गर्व है. मेरे पिता ने देश के लिए जान दी है. मैं भी अपने पिता की तरह देश की सेवा करना चाहता हूं.