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जंगल बचेगी, तो सभ्यता बचेगी : रोस

टुटुवापानी में फिर गूंजी आवाज, जान देंगे, जमीन नहीं देंगे, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द होने तक संघ जारी रखने का संकल्प लिया. गुमला : नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में केंद्रीय जनसंघर्ष समिति लातेहार-गुमला के तत्वावधान में शनिवार को टुटुवापानी मोड़ में सत्याग्रह सह संकल्प सभा का आयोजन किया गया. सभा […]

टुटुवापानी में फिर गूंजी आवाज, जान देंगे, जमीन नहीं देंगे, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द होने तक संघ जारी रखने का संकल्प लिया.

गुमला : नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में केंद्रीय जनसंघर्ष समिति लातेहार-गुमला के तत्वावधान में शनिवार को टुटुवापानी मोड़ में सत्याग्रह सह संकल्प सभा का आयोजन किया गया. सभा में शामिल लोगों ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना के रद्द होने तक संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया. मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता रोस खाखा ने कहा कि जहां-जहां आदिवासी बचे हैं, वहां जंगल बचे हुए हैं. अगर जंगल बचे रहेंगे, तो पूरी सभ्यता बची रहेगी.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने आदिवासियों को जंगल से विस्थापित करने को मजबूर कर दिया है. श्रीमती खाखा ने कहा है कि हालांकि बाद में इस निर्णय को जुलाई माह के अंत तक स्थगित कर दिया गया है, लेकिन उक्त फैसले के लागू हो जाने पर इसका असर वनों में रह रहे तकरीबन 11 लाख आदिवासी परिवारों पर पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन ने वनाधिकार कानून के अंतर्गत वन निवासियों को जमीन का पट्टा दिलाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है. लाखों की संख्या में वन पट्टा के दावों को निरस्त कर दिया गया है,जिसका असर सीधे-सीधे आदिवासियों और वन निवासियों पर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वनाधिकार के मामले में वन पट्टा दिलाने की जिम्मेवारी पर अंतिम मुहर ग्रामसभा द्वारा लगायी जानी है, परंतु सरकार ने इसे अपने हाथों में लेकर ग्रामसभा की शक्तियों को क्षीण कर दिया है.

सिर्फ कागजों में ग्राम वनाधिकार समिति का गठन कर दिया गया है और सारी शक्ति सरकार ने ले रखी है. विक्टोरिया एक्का ने कहा कि सरकार की स्थानीय नीति भी दोषपूर्ण है, जिससे यहां के आदिवासियों एवं मूलवासियों को छला जाने काम किया जा रहा है और यहां नौकरियों में बाहरियों को प्राथमिकता दी जा रही है.

हम इसका विरोध करते हैं. साबरी मुत्थु ने कहा कि केंद्रीय जनसंघर्ष समिति को नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से होने वाले संभावित विस्थापन के अलावा ऐसे और मुद्दों पर भी काम करने की जरूरत है जिससे आदिवासी प्रभावित हो रहे हैं. अल्फोंसा बेक ने कहा कि इस आंदोलन में महिलाओं की मजबूत भूमिका रही है, जिस कारण इस परियोजना को 27 वर्षों से रोक कर रखा जा सका है. समीर डुंगडुंग ने कहा स्वशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम सभा को मजबूत करने की जरूरत है, तभी आदिवासियों का विकास संभव है.

बिहार के बांका जिला से आये क्रांतिकारी साथियों ने बिहार में आदिवासियों द्वारा चल रहे संघर्षों के बारे बताया. सभा को जयप्रकाश मिंज, हेनरी तिर्की, समीर केरकेट्टा व वासवी किड़ो ने भी संबोधित किया. इससे पूर्व विजयपुर, पंडरा, डुंबरपाठ, जारी, गुमला, चोरमुंडा, पलामू छात्र संघ, हीरा बरवे छात्र संघ और आइकफ द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किया गया.

वहीं कोषाध्यक्ष प्लासिदियुस टोप्पो ने वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया. धन्यवाद ज्ञापन केंद्र सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में जयवंती बाड़ा, जोवाकीम टोप्पो, अनिल मनोहर, आशुतोष राहुल तिर्की, अचिता किंडो, अंकित कुजूर, अन्ना बेला एक्का, पवन तिर्की व अमन टोप्पो ने सराहनीय भूमिका निभायी.

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