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इवीएम की पीं ने थामी गोलियों की आवाज

गुमला : सुबह 7.15 बजे मैं संत पात्रिक स्कूल गुमला के बूथ नंबर 222 में वोट डाला. पहला वोट डालने के बाद प्रभात खबर की ड्यूटी में लग गया. बाइक से अपने दूसरे अखबार के तीन साथियों के साथ चैनपुर प्रखंड के घोर नक्सल प्रभावित सोकराहातू, उरू, बारडीह, तबेला व रोघाडीह होते हुए सिविल गांव […]

गुमला : सुबह 7.15 बजे मैं संत पात्रिक स्कूल गुमला के बूथ नंबर 222 में वोट डाला. पहला वोट डालने के बाद प्रभात खबर की ड्यूटी में लग गया. बाइक से अपने दूसरे अखबार के तीन साथियों के साथ चैनपुर प्रखंड के घोर नक्सल प्रभावित सोकराहातू, उरू, बारडीह, तबेला व रोघाडीह होते हुए सिविल गांव पहुंचा. रास्ते में ग्रामीणों की भीड़ बूथों की ओर जाती दिखी. कोई पैदल, तो कोई साइकिलसे बूथ जा रहा था. गांव के कुछ लोगों ने चंदा कर ट्रैक्टर बुक किया था. ट्रैक्टर में 40 वोटर वोट करने एक साथ पहुंचे.

सिविल में पांच बूथों का कलस्टर था. हर बूथ में वोटरों की भीड़, उम्मीद व विश्वास से अधिक थी. चिलचिलाती धूप के बावजूद वोटर कतार से नहीं हिले. पहले वोट दिया, तभी कतार से हटे. ज्ञात हो कि 2014 के चुनाव में जिस प्रकार इस क्षेत्र में नक्सलियों ने वोट बहिष्कार, बूथ पर गोलियों से हमला व बम फेंक कर दहशत पैदा किया था, इसे लेकर 2019 के चुनाव में कम वोट पड़ने की आशंका थी. लेकिन कलस्टर में पहुंचने के बाद हर आशंका निर्मूल साबित हुई.
यहां वोटर बेखौफ नजर आये. 9.30 बजे तक सभी बूथ में 30 प्रतिशत से अधिक वोट पड़ चुका था, जबकि इन्हीं बूथों में 2014 के चुनाव में 20 प्रतिशत से कम वोट पड़ा था. सिविल कलस्टर के मैनेजर शिवचरण भगत व चैनपुर प्रखंड के समन्वयक वीरेंद्र कुमार ने बताया कि इसबार 2019 के चुनाव में 50 प्रतिशत से अधिक वोट हुआ है. सिविल में 2018 बटालियन के इंस्पेक्टर पीआर गांगुली व मजिस्ट्रेट सुनील उरांव थे.
इन दोनों अधिकारियों ने कहा : हमलोग खुद सोच रहे थे कि कम वोट पड़ेगा, लेकिन जिस प्रकार सुबह से ही वोटर बूथों में पहुंचना शुरू किया, उम्मीद से बेहतर वोटिंग हुई. वह भी बिना कोई डर व भय के शांतिपूर्ण वोट पड़ा है. सिविल के बाद कुरूमगढ़ कलस्टर गया, जहां जहां दरकाना, कोटाम बहराटोली व कुरूमगढ़ का बूथ बना था. कुरूमगढ़ वही गांव है, जहां एक समय में नक्सलियों का राजकाज चलता था. 2014 के चुनाव में भी यहां हमला हुआ था, लेकिन इसबार वोटरों ने नक्सली के खौफ को बौना साबित कर दिया. लोग बेखौफ पहुंचे और वोट किया. यहां सीआरपीएफ के जवानों को वृद्ध वोटरों को बूथ तक ले जाते देखा गया.
कुरूमगढ़ के बाद पीपी बामदा बूथ पहुंचे. इस बूथ में भी 2014 में नक्सलियों ने हथगोला से हमला किया था. उस समय दोपहर में ही मतदानकर्मी वोटिंग बंद कर भाग गये थे, लेकिन 2019 के चुनाव में पीपी बामदा में लोग बेखौफ नजर आये. मतदानकर्मी भी पूरे उत्साह में दिखे. पीठासीन पदाधिकारी एमडी समद ने कहा कि यहां कोई डर नहीं है.
मुश्किल इस बात कि है कि सुबह साढ़े चार बजे कुरूमगढ़ कलस्टर से पीपी बामदा बूथ के लिए निकले थे. जंगल झाड़ से होते हुए बूथ पहुंचे और सात बजे से मतदान शुरू कराया. पूर्व में इस गांव में नक्सली हमले होते रहे हैं, लेकिन इसबार जनता की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि अब नक्सली खौफ खत्म हो गया है. इवीएम की पीं ने गोलियों की आवाज पर अंकुश लगा दी.
पीपी बामदा की बीएलओ राधा कुमारी ने कहा कि वोटरों की भीड़ देख लीजिये, कहीं लगता है कि अब नक्सली खौफ है. मैं इस इलाके में करीब तीन घंटे तक रहा. बूथों में वोटरों की भीड़ देखी. लोगों में लोकतंत्र के प्रति आस्था नजर आया. वोट क्यों डाल रहे हैं? इस सवाल पर कई वोटरों ने कहा : अच्छे नेता को चुनना है. हमारे गांव में सड़क बन रही है. अच्छा नेता चुनेंगे, तो हमारे गांव की तकदीर व तसवीर बदलेगी.

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